Monday, June 28, 2021

किसको दोष लगाएं

                        दो बूँदें सावन की
इक सागर की सीप में टपके और मोती बन जाए
दूजी गंदे जल में गिरकर अपना आप गँवाए
किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष लगाए

                       दो कलियां गुलशन की
इक सेहरे के बीच गुँधे और मन ही मन इतराए
इक अर्थी की भेंट चढ़े और धूलि में मिल जाए
किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष लगाए

                     दो सखियाँ बचपन की
एक सिंहासन पर बैठे और रुपमति कहलाए
दूजी अपने रुप के कारण गलियों मे बिक जाए
किसको मुजरिम समझे कोई किसको दोष लगाए
                           " साहिर लुध्यानवी "

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