Tuesday, June 8, 2021

खसम मरै तउ नारि न रोवै

जब तक हम जीवित रहते हैं -  हमें लगता है कि हमारे पास पर्याप्त धन नहीं है।
लेकिन जब हम चले जाते हैं - तो बहुत सा धन बिना ख़र्च किए हुए ही बच जाता है।
हमारा धन बैंक में ही पड़ा रह जाता है।

एक अमीर आदमी की मौत हुई। 
वो अपनी विधवा के लिये बैंक में दो मिलियन डालर छोड़ गया। 
उसने अपनी ज़िंदगी भर की कमाई से दो मिलियन डॉलर बचा कर बैंक में रखे थे जिस पर अब उसकी पत्नी का हक़ था। 

पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा ने अपने जवान नौकर से शादी कर ली। 
एक दिन उस नौकर ने कहा कि मैं हमेशा सोचता था कि मैं अपने मालिक के लिये काम करता हूँ  
आज समझ में आया कि असल में तो वो मेरे लिये काम करता था। 
उसने जो भी धन कमाया और बचा कर रखा, आज वो मेरा है।  
इसका मतलब है कि मैं उसके लिए नहीं, बल्कि वो सारी उमर मेरे लिए ही काम करता रहा। 
उसके कमाए हुए धन से आज मैं आनंद ले रहा हूँ। 

कबीर जी महाराज भी ऐसा ही फ़रमाते हैं --
                                खसमु मरै तउ नारि न रोवै ॥
                                उसु रखवारा अउरो होवै ॥
                                रखवारे का होइ बिनास ॥

यहां ख़सम एवं नारी शब्द संज्ञात्मक हैं।  
नारी अथवा पत्नी से अभिप्राय है माया - धन दौलत एवं सुख-सामग्री इत्यादि। 
और ख़सम अर्थात पति का भावार्थ है स्वामी - अर्थात धन का मालिक। 

कबीर जी महाराज कह रहे हैं कि जब धन का मालिक मरता है तो उसकी ज़मीन जायदाद अथवा धन-सम्पति इत्यादि नहीं रोते - मालिक के मरने से उनको कोई दुःख नहीं होता - तुरंत ही कोई और उनका मालिक बन जाता है।
फिर एक दिन वो नया मालिक भी मर जाता है और ये सिलसिला चलता रहता है। 

इस उदाहरण के साथ कबीर जी ये समझा रहे हैं कि जीवन का उद्देश्य केवल धन कमाना और सम्पति का विस्तार करना ही नहीं है - बल्कि सहज भाव में जीवन का आनंद लेना और परमार्थ की तरफ ध्यान देना भी आवश्यक है। 
                                      ' राजन सचदेव '

4 comments:

Jab tak saans chalti hai - As long as the breath continues

      Uthaana khud hee padta hai thakaa toota badan 'Fakhri'       Ki jab tak saans chalti hai koi kandhaa nahin detaa              ...