Wednesday, June 23, 2021

परिवर्तन ही संसार का नियम है

सृष्टि में कुछ भी स्थिर नहीं है
चंद्र 
सूर्य - रात दिन - धूप छाओं - सुख और दुःख आते जाते रहते हैं
परिवर्तन ही संसार का नियम है
                   दिनयामिन्यौ सायं प्रातः
                   शिशिरवसन्तौ पुनरायातः
                                       (आदि शंकराचार्य)
दिन और रात, सुबह और शाम, सर्दी गर्मी वसंत इत्यादि ऋतुएं बार बार आती जाती रहती हैं।
समय का चक्र चलता रहता है।
कल के सगे संबंधी एवं हितैषी मित्र आज अजनबी की तरह मिलते हैं।
हो सकता है कि आज के मित्र कल अजनबी बन जाएं।
आज के शुभचिंतक कल दुश्मन भी बन सकते हैं।
जब आशा के विपरीत कुछ होता है तो मन में दुःख और निराशा का भाव पैदा होना स्वभाविक है। 

लेकिन हर समय निराशा में डूबे रहने से कोई हल अथवा समाधान नहीं मिलता -
बल्कि निराशा और बढ़ जाती है - दुःख और बढ़ जाता है।

ऐसे में - अर्थात निराशा से बचने के लिए हमारे सामने दो ही विकल्प रह जाते हैं
या तो हिम्मत और लगन के साथ परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करें।
और अगर परिस्थितियों को बदलना संभव न हो - तो जो हो रहा है उसे स्वीकार कर लें।

बस - यह याद रहे कि परिवर्तन संसार का नियम है
यहां कोई भी चीज़ हमेशा एक सी नहीं रहती
इसलिए - अंततः, जो हो रहा है उसे स्वीकार कर लेने में ही शांति है।
                                          ' राजन सचदेव ' 

1 comment:

Itnay Betaab kyon hain - Why so much restlessness?

 Itnay betaab - itnay beqaraar kyon hain  Log z aroorat say zyaada hoshyaar  kyon hain  Moonh pay to sabhi dost hain lekin Peeth peechhay d...