Thursday, May 3, 2018

स्वर्ग क्या है

एक बार की बात है - एक युवा और एक वृद्ध भिक्षु संयोग से पंजाब के एक गांव के पास मिले।
वे विभिन्न मठों अर्थात दर्शन शास्त्र की विभिन्न विचारधारा के आश्रमों से थे। औपचारिक नमस्कार इत्यादि के बाद, युवा भिक्षु ने वृद्ध भिक्षु को शास्त्रार्थ (किसी ख़ास विषय पर बहस) के लिए चुनौती दी - जो उन दिनों में - विशेष रूप से विभिन्न मठों के बीच एक आम बात थी। वृद्ध साधु को शास्त्रार्थ अथवा बहस में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन छोटे भिक्षु ने उस पर जोर दिया।  
उसने कहा - "शास्त्रार्थ करें या प्रतियोगिता के बिना अपनी हार स्वीकार करें" 
"लेकिन शास्त्रार्थ के लिए हमें किसी फैसला करने वाले की भी ज़रूरत है। और यहाँ तो आसपास कोई भी नहीं है।" वृद्ध साधु ने कहा।
लेकिन नौजवान भिक्षु अपने ज्ञान के प्रदर्शन के लिए बहुत उत्सुक था। उस ने चारों ओर देखा तो उसे एक किसान अपने खेत में काम करता दिखाई दिया 
"हम उस से फ़ैसला करवाएँगे ।"
ऐसा कह कर वह उस किसान के पास गया और बोला "हम दोनों शास्त्रार्थ यानी शास्त्रों पर कुछ चर्चा करना चाहते हैं - आप हमारी चर्चा सुन कर फैसला करें कि हम दोनों में से कौन श्रेष्ठ है - किस के पास अधिक ज्ञान है"   
किसान ने कहा  "मैं शास्त्रों के बारे में कुछ भी नहीं जानता। मैं तो गाँव का रहने वाला एकअनपढ़ साधारण किसान हूं। मुझे इन बातों के बारे में कोई जानकारी नहीं  है"
लेकिन युवा भिक्षु बहस करने के लिए बहुत उत्सुक था और अपने ज्ञान प्रदर्शन का कोई भी अवसर खोना नहीं चाहता था।
किसान को मनाने के लिए, उन्होंने कहा "आपको सिर्फ इतना ही करना है कि हमसे एक प्रश्न पूछें। हम दोनों बारी बारी से आपके प्रश्न का उत्तर देंगे और फिर आप हमें बताइएगा कि आप को किसका उत्तर अधिक पसंद है।"
किसान ने एक पल के लिए सोचा और कहा: 
"ठीक है - मैं ज़्यादा कुछ तो नहीं जानता पर मैंने सुना है कि जो अच्छे कर्म करते हैं उन्हें स्वर्ग  मिलता है - यानि वह लोग स्वर्ग में जाते हैं। लेकिन मैं नहीं जानता कि स्वर्ग होता क्या है। क्या आप बताएंगे कि स्वर्ग क्या है और स्वर्ग का सुख कैसा होता है ?"
वृद्ध भिक्षु ने मुस्कुराते हुए युवा भिक्षु से कहा कि अगर वह चाहे तो पहले वह अपने तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं । 
युवा साधु ने तुरंत संस्कृत में भगवत गीता और कठोपनिषद के श्लोक, एवं वेदों और अन्य शास्त्रों के मंत्र सुनाने शुरू कर दिए। स्पष्ट था कि वह बहुत विद्वान और कई शास्त्रों का ज्ञाता था। बहुत से शास्त्र उसे कंठस्थ भी (याद) थे ।
बेचारा अनपढ़ किसान मुंह खोले हुए अत्यंत आश्चर्य से भिक्षु के चेहरे की और देखता रहा - लेकिन भिक्षु का एक भी शब्द उसकी समझ में नहीं आया। लगभग बीस मिनट तक शास्त्रों से उदाहरण देने के बाद नौजवान  भिक्षु ने अपनी बात समाप्त की और वृद्ध भिक्षु  की ओर देख कर बड़े गर्व से कहा:
"अब आपकी बारी है । देखते हैं कि आप कितने विद्वान हैं और कितने शास्त्र जानते हैं। "
वृद्ध भिक्षु शांतिपूर्वक मुस्कुराते हुए किसान की तरफ मुड़े और कहने लगे:
" प्रिय बंधु - आप हररोज़ सुबह जल्दी उठ कर अपने खेत में आ जाते हो और घंटों तक कड़ी मेहनत करते हो - गर्मियों की तेज गर्मी में तपते हुए  खेत में हल चलाते हो - बीज डालते हो और खेत की संभाल करते हो। दोपहर में, जब आपकी पत्नी आपके लिए भोजन लेकर आती है तो सूर्य आकाश के बीचों बीच आपके सिर के ऊपर चमक रहा होता है। सूर्य की उस असहनीय तपश से कुछ देर बचने के लिए आप एक पेड़ के नीचे छाया में बैठ जाते हो। आपकी पत्नी घर से लाई हुई मिट्टी की हांडी में से लस्सी - और बांस की टोकरी में से कपड़े में  लिपटी हुई रोटियां, साग और आचार निकाल कर देती है। 
माथे से बहते हुए पसीने को हाथ से झटक कर - अपनी धोती या गमछे से ही पसीने से लथपथ हाथों को पोंछ कर जब तुम पेड़ की ठंडी छाया में बैठे हुए रोटी खाते हो और ठंडी लस्सी पीने का आनंद लेते हो - तो मेरे दोस्त -वही स्वर्ग है - वही स्वर्ग का आनंद है "

ये सुन कर किसान की आँखें चमक उठीं - उसके पूरे चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। 
वह श्रद्धा भाव से दोनों हाथ जोड़ कर, सराहना पूर्ण दृष्टि से वृद्ध भिक्षु को देखते हुए बोला :
"आप जीत गए महाराज - आप ही विजेता हैं "
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अपना भाषण देने से पहले अपने श्रोताओं को समझें और उनकी भाषा में बोलने की कोशिश करें
उनकी समझ - उनकी बुद्धि के स्तर को परखें - अपनी बात को अपनी विद्वता के आधार पर नहीं बल्कि इस तरह से कहें कि 
श्रोताओं के लिए उसे समझना आसान हो ।
बहुत सारी किताबें और शास्त्र पढ़ कर जानकारी तो हो सकती है, लेकिन तत्व ज्ञान तो अनुभव से ही आता है।     
ज्ञान से जीवन में विनम्रता आनी चाहिए - घमंड नहीं।
                                            'राजन सचदेव' 

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