फ़ख़र बकरे ने किया मेरे सिवा कोई नहीं
मैं ही मैं हूं इस जहां में, दूसरा कोई नहींमैं मैं जब ना तर्क की उस महवे-असबाब ने
फेर दी चल कर छुरी गर्दन पे तब कस्साब ने
ख़ून - गोश्त - हड्डियां - जो कुछ था जिस्मे सार में
लुट गया कुछ पिस गया कुछ बिक गया बाज़ार में
रह गईं आंतें फ़क़त मैं - मैं सुनाने के लिए
ले गया नद्दाफ उसे धुनकी बनाने के लिए
ज़र्फ़ के झोंकों से जब वो आंत घबराने लगी
मैं के बदले तू ही तू ही की सदा आने लगी
रह गईं आंतें फ़क़त मैं - मैं सुनाने के लिए
ले गया नद्दाफ उसे धुनकी बनाने के लिए
ज़र्फ़ के झोंकों से जब वो आंत घबराने लगी
मैं के बदले तू ही तू ही की सदा आने लगी
(लेखक - अज्ञात अर्थात नामालूम)
फ़ख़र = अभिमान, ग़ुरुर Pride, Arrogance, Egotism
तर्क = त्याग, परित्याग, निवृत्ति abandonment, desertion, abdication, relinquishment
महव = Engrossed - Immersed, absorbed
असबाब = = साज़ो सामान, सामग्री Material, Belongings
कस्साब = कसाई Butcher
आंतें = अंतड़ियाँ intestines
नद्दाफ = धुनिया - रुई धुनने वाला - रुई पिंजने वाला Cotton Comber (person who separates cotton from seeds)
ज़र्फ़ = गहन, ज़ोरदार intense, vigorous (बर्तन और गहराई के लिए भी इस्तेमाल होता है)
Wah
ReplyDeleteWah 🪷🪷🙏🙏
ReplyDeleteAtti uttam!
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