अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते।
ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः॥
( ईशोपनिषद् 9)
अन्वय
ये अविद्याम् उपासते ते अन्धं तमः प्रविशन्ति।
ये उ विद्यायां रताः ते भूयः तमः इव प्रविशन्ति ॥
अर्थात :
जो अविद्या का - अज्ञान का अनुसरण करते हैं - गहन अंधकार में वह प्रवेश करते हैं ।
और जो केवल विद्या में ही रत रहते हैं -
जो केवल ग्रंथों एवं शास्त्रों को पढ़ने पढ़ाने में ही अपना जीवन समर्पित कर देते हैं -
वे उस से भी अधिक गहन अंधकार में हैं।
अज्ञान का अनुसरण करने का अर्थ है बिना सोचे समझे - बिना अच्छी तरह जाने बूझे
अनजाने में ही कर्मकांड का पालन करते रहना।
ज्ञान को - सत्य को पूर्ण रुप से समझे बिना केवल औपचारिक रुप से कर्मकांड - नियमों और संस्कारों का पालन करते रहने से -
और मात्र औपचारिक रुप से सत्संग एवं भक्ति इत्यादि करते रहने से ही जीवन प्रकाशमय नहीं हो जाता।
मन में अंधकार बना ही रहता है।
और दूसरी ओर - जो लोग केवल पढ़ने पढ़ाने और सिर्फ ज्ञान की बातें करने में ही व्यस्त रहते हैं -
जो न तो स्वयं ज्ञान को पूरी तरह से समझते हैं और न ही अपने अंदर ज्ञान का अनुभव कर पाते हैं -
ऐसे लोग अज्ञान का अनुसरण करने वालों से भी अधिक गहन अन्धकार में हैं।
क्योंकि वह सत्य - जो व्यावहारिक नहीं है - जिसे अनुभव न किया गया हो -
जिसे रोज़मर्रा के जीवन में अपनाया न गया हो - उसका कोई लाभ नहीं ।
वह किसी के लिए भी अच्छा नहीं है।
हम दिन भर ज्ञान का उपदेश कर सकते हैं - उच्च आदर्शों की बातें कर सकते हैं
लेकिन जो विचारधारा और सिद्धांत व्यावहारिक नहीं हैं -
और जो अंतःकरण में नहीं समाए - जो जीवन का अंग नहीं बने - वो कभी फलदायी नहीं हो सकते।
जैसा कि श्री शुकदेव मुनि ने भागवत पुराण में कहा है:
श्रवणम - मननम - स्मरणम
पहले सुनें - ज्ञान प्राप्त करें
फिर मनन - जो ज्ञान मिला है उसका विश्लेषण करें - उसे ठीक से समझें
और फिर स्मरण - ज्ञान को हमेशा याद रखें अर्थात अन्तःकरण में अनुभव करें और उसे जीवन में ढालें।
' राजन सचदेव '
Very true. This kind of behavior and rituals are very prevalent in today’s “religious” world
ReplyDeleteVery beautiful and insightful!!
ReplyDeleteAbsolutely True 🙏🏻🙏🏻
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