अधर्मेणैधते तावत् ततो भद्राणि पश्यति।
तत: सपत्नान् जयति समूलस्तु विनश्यति॥
अर्थात :
कुटिलता व अधर्म से मानव क्षणिक समॄद्वि व संपन्नता तो पा लेता है
कुछ समय के लिए सौभाग्य और सुख का भी अनुभव कर सकता है।
धन के कारण अपने शत्रुओं को भी जीत सकता है - शत्रु भी उसके मित्र बन जाते हैं।
परन्तु अन्त में उसका पतन एवं विनाश निश्चित है।
वह समूल अर्थात जड़ समेत नष्ट हो जाता है।
वह समूल अर्थात जड़ समेत नष्ट हो जाता है।
कुटिलता और अधर्म से - धोखे और फरेब से कमाया हुआ धन अंततः विनाश का ही कारण बनता है
धर्म के नाम पर ग़रीबों से धन ले कर उसे अपने विलास और ऐश्वर्य के साधनों के लिए इस्तेमाल करने वालों का समूल विनाश निश्चित है
बेशक कुछ समय के लिए तो वह सुखी समृद्ध एवं सम्पन्न जीवन जीने का आनंद ले सकते हैं लेकिन अंततः उन की कुल का भी नाश हो जाता है।
Khathor satya
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