एक जिले के डी एम साहब के ऑफिस की खिड़की सड़क की ओर खुलती थी।
रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रते थे।
डी एम साहब इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।
एक सुबह डी एम साहब ने खिड़की का परदा हटाया। भयंकर सर्दी, आसमान से गिरती बर्फ़, और भयंकर तेज़ ठंडी हवा । अचानक उन्हें दिखा कि सामने बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता जा रहा था ।
डीएम साहब ने पी ए को कहा - उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो !!!
वापिस आकर पी ए ने डी एम साहब को बताया - सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक कंबल की ज़रूरत है।
डीएम साहब ने कहा- ठीक है, उसे एक कंबल दे दो।
अगली सुबह डीएम साहब ने खिड़की से पर्दा हटाया। उन्हें ये देख कर घोर हैरानी हुई कि वो भिखारी अभी भी वहां बैठा है । उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है। डी एम साहब गुस्सा हुए और पी ए से पूछा -
उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया?
पी ए ने कहा- मैंने आपका आदेश तहसीलदार महोदय को पहुंचा दिया था। मैं अभी देखता हूं कि आपके आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।
थोड़ी देर बाद तहसीलदार साहब डी एम साहब के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले - सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी सब भिखारियों को भी देना पड़ेगा। अगर न दिया तो आम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।।।
डी एम साहब ने पूछा - तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए?
तहसीलदार साहब ने सुझाव दिया- सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है।।
प्रशासन की तरफ से एक 'कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ' योजना शुरू की जाये। उसके अंतर्गत जिले के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।
डी एम साहब बहुत खुश हुए और फ़ौरन ऐसा करने आदेश दे दिया ।
अगली सुबह डीएम साहब ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है।
डी एम साहब आग-बबूला हुए।
तहसीलदार साहब तलब हुए।
उन्होंने स्पष्टीकरण दिया- सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल ख़रीदे जा सकें।
डी एम साहब दांत पीस कर रह गए।
अगली सुबह डी एम साहब को फिर वही भिखारी वहां दिखा ।
तहसीलदार साहब की फ़ौरन पेशी हुई।
विनम्रता पूर्वक तहसीलदार साहब ने बताया- सर, बाद में ऑडिट ऑब्जेक्शन ना हो इसके लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है। बिड्स मांगी गई हैं। आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।
डी एम साहब ने कहा- यह आख़िरी चेतावनी है।।।
अगली सुबह डी एम साहब ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है।
डी एम साहब ने पी ए को पता लगाने के लिए भेजा।
पी ए ने लौट कर बताया- सर कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की आज सुबह ठंड से मौत हो गयी है।
गुस्से से लाल-पीले डी एम साहब ने फौरन तहसीलदार साहब को तलब किया।
तहसीलदार साहब ने बड़े अदब से सफाई दी-
सर, खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन हमने सारे कंबल बांट भी दिए, मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।।
डी एम साहब ने पैर पटके- आख़िर क्यों?
तहसीलदार साहब ने नज़रें झुका कर कहा- सर, भेदभाव के इल्ज़ाम से बचने के लिए हमने अल्फा-बेटिकल आर्डर (वर्णमाला) से कंबल बांटे। बीच में कुछ फ़र्ज़ी भिखारी भी आ गए। आख़िर में जब उस भिखारी का नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।
डी एम साहब चिंघाड़े- उसका नंबर आखिर में ही क्यों???
तहसीलदार साहब ने बड़े भोलेपन से कहा - क्योंकि सर, उस भिखारी का नाम 'ज्ञ' से शुरू होता था।
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ऐसे हो गए हैं हम और ये है हमारा आज का सिस्टम
यदि साहिब ख़ुद ही जा कर एक कम्बल चुपके से उस भिखारी को ओड़ा देते तो एक जान तो बच सकती थी।
अगर सच में कोई सेवा करनी है तो ख़ुद आगे बढ़ो।
किसी के आर्डर का - या किसी और का इंतजार मत करो
आपसे स्वयं जितना हो सके सेवा करते चलो ll
सरकार या किसी सिस्टम को दोष देने से उनकी इंतज़ार करने से तो अच्छा है कि हम स्वयं ही जो कर सकें वो कर दें।
"मुफलिस के बदन को भी है 'चादर ' की ज़रुरत
अब खुल के मज़ारों पे ये 'ऐलान ' किया जाए "
रोज़ाना हज़ारों आदमी और वाहन उस सड़क से गुज़रते थे।
डी एम साहब इस बहाने जनता की परेशानी और दुःख-दर्द को निकट से जान लेते।
एक सुबह डी एम साहब ने खिड़की का परदा हटाया। भयंकर सर्दी, आसमान से गिरती बर्फ़, और भयंकर तेज़ ठंडी हवा । अचानक उन्हें दिखा कि सामने बेंच पर एक आदमी बैठा है। ठंड से सिकुड़ कर गठरी सा होता जा रहा था ।
डीएम साहब ने पी ए को कहा - उस आदमी के बारे में जानकारी लो और उसकी ज़रूरत पूछो !!!
वापिस आकर पी ए ने डी एम साहब को बताया - सर, वो एक भिखारी है। उसे ठंड से बचने के लिए एक कंबल की ज़रूरत है।
डीएम साहब ने कहा- ठीक है, उसे एक कंबल दे दो।
अगली सुबह डीएम साहब ने खिड़की से पर्दा हटाया। उन्हें ये देख कर घोर हैरानी हुई कि वो भिखारी अभी भी वहां बैठा है । उसके पास ओढ़ने का कंबल अभी तक नहीं है। डी एम साहब गुस्सा हुए और पी ए से पूछा -
उस भिखारी को अभी तक कंबल क्यों नहीं दिया गया?
पी ए ने कहा- मैंने आपका आदेश तहसीलदार महोदय को पहुंचा दिया था। मैं अभी देखता हूं कि आपके आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ।
थोड़ी देर बाद तहसीलदार साहब डी एम साहब के सामने पेश हुए और सफाई देते हुए बोले - सर, हमारे शहर में हज़ारों भिखारी हैं। अगर एक भिखारी को कंबल दिया तो शहर के बाकी सब भिखारियों को भी देना पड़ेगा। अगर न दिया तो आम आदमी और मीडिया हम पर भेदभाव का इल्ज़ाम लगायेगा।।।
डी एम साहब ने पूछा - तो फिर ऐसा क्या होना चाहिए कि उस ज़रूरतमंद भिखारी को कंबल मिल जाए?
तहसीलदार साहब ने सुझाव दिया- सर, ज़रूरतमंद तो हर भिखारी है।।
प्रशासन की तरफ से एक 'कंबल ओढ़ाओ, भिखारी बचाओ' योजना शुरू की जाये। उसके अंतर्गत जिले के सारे भिखारियों को कंबल बांट दिया जाए।
डी एम साहब बहुत खुश हुए और फ़ौरन ऐसा करने आदेश दे दिया ।
अगली सुबह डीएम साहब ने खिड़की से परदा हटाया तो देखा कि वो भिखारी अभी तक बेंच पर बैठा है।
डी एम साहब आग-बबूला हुए।
तहसीलदार साहब तलब हुए।
उन्होंने स्पष्टीकरण दिया- सर, भिखारियों की गिनती की जा रही है ताकि उतने ही कंबल ख़रीदे जा सकें।
डी एम साहब दांत पीस कर रह गए।
अगली सुबह डी एम साहब को फिर वही भिखारी वहां दिखा ।
तहसीलदार साहब की फ़ौरन पेशी हुई।
विनम्रता पूर्वक तहसीलदार साहब ने बताया- सर, बाद में ऑडिट ऑब्जेक्शन ना हो इसके लिए कंबल ख़रीद का शार्ट-टर्म कोटेशन डाला गया है। बिड्स मांगी गई हैं। आज शाम तक कंबल ख़रीद हो जायेगी और रात में बांट भी दिए जाएंगे।
डी एम साहब ने कहा- यह आख़िरी चेतावनी है।।।
अगली सुबह डी एम साहब ने खिड़की पर से परदा हटाया तो देखा बेंच के इर्द-गिर्द भीड़ जमा है।
डी एम साहब ने पी ए को पता लगाने के लिए भेजा।
पी ए ने लौट कर बताया- सर कंबल नहीं होने के कारण उस भिखारी की आज सुबह ठंड से मौत हो गयी है।
गुस्से से लाल-पीले डी एम साहब ने फौरन तहसीलदार साहब को तलब किया।
तहसीलदार साहब ने बड़े अदब से सफाई दी-
सर, खरीद की कार्यवाही पूरी हो गई थी। आनन-फानन हमने सारे कंबल बांट भी दिए, मगर अफ़सोस कंबल कम पड़ गये।।
डी एम साहब ने पैर पटके- आख़िर क्यों?
तहसीलदार साहब ने नज़रें झुका कर कहा- सर, भेदभाव के इल्ज़ाम से बचने के लिए हमने अल्फा-बेटिकल आर्डर (वर्णमाला) से कंबल बांटे। बीच में कुछ फ़र्ज़ी भिखारी भी आ गए। आख़िर में जब उस भिखारी का नंबर आया तो कंबल ख़त्म हो गए।
डी एम साहब चिंघाड़े- उसका नंबर आखिर में ही क्यों???
तहसीलदार साहब ने बड़े भोलेपन से कहा - क्योंकि सर, उस भिखारी का नाम 'ज्ञ' से शुरू होता था।
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ऐसे हो गए हैं हम और ये है हमारा आज का सिस्टम
यदि साहिब ख़ुद ही जा कर एक कम्बल चुपके से उस भिखारी को ओड़ा देते तो एक जान तो बच सकती थी।
अगर सच में कोई सेवा करनी है तो ख़ुद आगे बढ़ो।
किसी के आर्डर का - या किसी और का इंतजार मत करो
आपसे स्वयं जितना हो सके सेवा करते चलो ll
सरकार या किसी सिस्टम को दोष देने से उनकी इंतज़ार करने से तो अच्छा है कि हम स्वयं ही जो कर सकें वो कर दें।
"मुफलिस के बदन को भी है 'चादर ' की ज़रुरत
अब खुल के मज़ारों पे ये 'ऐलान ' किया जाए "
Impressive
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