Wednesday, November 14, 2018

किसको दोष लगाएं

                          दो बूँदें सावन की  
इक सागर की सीप में टपके और मोती बन जाये
दूजी गंदे जल में गिरकर अपना आप गंवाये
             किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष लगाए

                       दो कलियां गुलशन की
इक सेहरे के बीच गुँधे और मन ही मन इतराये

इक अर्थी की भेंट चढ़े और धूलि में  मिल जाये
           किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष लगाए

                        दो सखियाँ बचपन की
एक सिंहासन पर बैठे और रूपमती कहलाये
दूजी अपने रूप के कारण गलियों मे बिक जाये
         किसको मुजरिम समझे कोई किसको दोष लगाए
                              

                    " साहिर लुध्यानवी "               
                      

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