Sunday, November 25, 2018

सत्संगत्वे नि:संगत्वं, नि:संगत्वे निर्मोहत्वम्

भज गोविंदम नामक एक प्रसिद्ध, एवं सुंदर कविता रचना में जगद्गुरु आदि-शंकरचार्य ने मानव प्रकृति के सुंदर विश्लेषण - जो कि समय, स्थान या देश-काल से स्वतंत्र है - के साथ साथ सार्वभौमिक सत्य को जानने की प्रेरणा एवं इस परम सत्य की प्राप्ति के लिए मार्ग दर्शन भी किया है। 
निम्नलिखित छंद में - जो कि अंतिम चरण के छंदों में से एक है - जीवन-मुक्ति प्राप्त करने के लिए किन किन पड़ावों से गुजरना पड़ता है, ये समझाते हुए आदि शंकरचार्य कहते हैं :
                सत्संगत्वे नि:संगत्वं,  नि:संगत्वे निर्मोहत्वम् ॥    
                निर्मोहत्वे निश्चलतत्वं, निश्चलतत्वे जीवन मुक्तिः ||

संतों की संगत में रहते रहते भक्त अंततः संगविहीन हो जाता है  - अर्थात भ्रम एवं व्यर्थ के विचारों और गलत या अनावश्यक और अत्यधिक सांसारिक इच्छाओं - आशा, मंशा,अपेक्षा और तृष्णा इत्यादि की संगति से मुक्त हो जाता है।
नि:संगत्वं होने का एक अर्थ निर्विचार अथवा विचार रहित मनःस्थिति से भी है - जिसे मन से परे या मन से स्वतंत्र होना भी कहा जा सकता है।

नि:संगत्वं अथवा निर्विचार एवं अनावश्यक इच्छाओं से मुक्त होते ही मन से मिथ्या मोह का भी नाश हो जाता है और भक्त निर्मोहत्व की अवस्था प्राप्त कर लेता है। संसार एवं सांसारिक पदार्थों से अनावश्यक मोह से रहित - आशा, मंशा,अपेक्षा और तृष्णा इत्यादि वासनाओं से मुक्त जीव - गलत मान्यताओं, धारणाओं और कर्म-कांड में भ्रमित न हो कर सत्य मार्ग पर चलते हुए अपने वांछित गंतव्य की ओर बढ़ता रहता है। 
उपरोक्त मनःस्थिति को प्राप्त करके जीव निश्चल-तत्व में स्थित हो जाता है। 
निष्चल-तत्व अर्थात अपरिवर्तनीय सत्य को जान कर सदैव इस एकमात्र सार्वभौमिक परम सत्य में विचरण करता हुआ निश्चल मन जीवन-मुक्त हो जाता है। 
स्वतंत्र,अथवा किसी भी बंधन से मुक्त होना ही मुक्ति है। 
जब तक हम किसी वस्तु-विशेष, व्यक्ति-विशेष या किसी विशेष विचारधारा अथवा परिस्थिति से बंधे हुए हैं तो मुक्ति संभव नहीं है। 
'अपरिवर्तनीय सत्य' को जान कर - 'निष्चल तत्व' में स्थित हो कर मन का निश्चल हो जाना ही जीवन-मुक्ति कहलाता है। 

                                            ' राजन सचदेव '



1 comment:

  1. Wonderful explanation ..... very insightful .... pls keep sharing 🙏🙏

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