एक बार मैंने सत्संग में बाबा गुरबचन सिंह जी महाराज से निम्नलिखित कहानी सुनी --
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एक जौहरी के निधन के बाद उसका परिवार संकट में पड़ गया। खाने के भी लाले पड़ गए।
एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को एक हीरा देकर कहा -
"बेटा, ये हीरा मैंने संकट के समय के लिए छुपा कर रखा था। इसे अपने पिता के मित्र की दुकान पर ले जाओ।
और उसे कहना 'चाचा - इसे बेचकर कुछ रुपये दे दें"।
बेटा वह हीरा लेकर चाचा के पास गया।
चाचा ने हीरे को अच्छी तरह से देख परख कर कहा -
"बेटा - मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है। थोड़ा रुककर बेचना अच्छे दाम मिलेंगे।"
फिर उसे कुछ रुपये देकर कहा कि तुम कल से दुकान पर आकर मेरे साथ काम करना।
"इस से तुम्हें घर का ख़र्च चलाने के लिए तनख़्वाह भी मिलेगी और तुम धीरे धीरे हीरों की परख करना भी सीख जाओगे"।
अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान पर जाने लगा और वहां हीरों - रत्नो की परख का काम भी सीखने लगा।
एक दिन वह बड़ा अच्छा पारखी बन गया। लोग दूर-दूर से अपने हीरों की परख करवाने के लिए आने लगे।
एक दिन चाचा ने कहा,
"बेटा अपनी मां से वह हीरा लेकर आना और कहना कि अब बाजार बहुत तेज है - उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे"
घर जा कर उसने जब मां से वह हीरा लेकर परखा तो पाया कि वह तो नकली है।
वह उसे घर पर ही छोड़ कर दुकान पर लौट आया।
चाचा ने पूछा, हीरा नहीं लाए? उसने कहा, वह तो नकली था।
"जब मैं पहली बार वो हीरा लेकर आपके पास आया था तो आपने क्यों नहीं बताया कि वो असली हीरा नहीं था ?"
चाचा ने कहा- जब तुम उस दिन वो हीरा लेकर आये थे, अगर तब मैं उसे नकली बता देता तो तुम सोचते कि आज
हम पर बुरा वक्त आया है तो चाचा हमारी असली चीज को भी नकली बताने लगे। इनके मन में भी शायद खोट है।
आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो गया तो तुम्हें स्वयं ही पता चल गया कि वो हीरा सचमुच ही नकली है।
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ये कहानी सुना कर बाबा गुरबचन सिंह जी ने कहा कि इसी तरह अगर आप किसी को कर्मकाण्ड करते हुए देख कर उनकी आलोचना करेंगे -
उन्हें ग़लत कह कर उन पर टिक्का-टिप्पणी करेंगे तो उनका विश्वास भी आप से उठ जाएगा।
आप सिर्फ ज्ञान की चर्चा करें - सभी को ज्ञान मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।
वेदों शास्त्रों और ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मज्ञानी के हर प्रकार के कर्मकाण्ड स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं।
इसलिए किसी को भी ग़लत न कहें और उनके कर्म-काण्डों की आलोचना कर के उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।
सच तो यह है कि ज्ञान के बिना - निरंकार प्रभु के सिवाए इस संसार में हम जो भी देखते और जानते हैं - वो सब मिथ्या है।
"हम ठीक हैं और बाकी सब ग़लत हैं" - इस गलतफहमी का शिकार होकर हम सभी से रिश्ते बिगाड़ लेते हैं।
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एक जौहरी के निधन के बाद उसका परिवार संकट में पड़ गया। खाने के भी लाले पड़ गए।
एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को एक हीरा देकर कहा -
"बेटा, ये हीरा मैंने संकट के समय के लिए छुपा कर रखा था। इसे अपने पिता के मित्र की दुकान पर ले जाओ।
और उसे कहना 'चाचा - इसे बेचकर कुछ रुपये दे दें"।
बेटा वह हीरा लेकर चाचा के पास गया।
चाचा ने हीरे को अच्छी तरह से देख परख कर कहा -
"बेटा - मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है। थोड़ा रुककर बेचना अच्छे दाम मिलेंगे।"
फिर उसे कुछ रुपये देकर कहा कि तुम कल से दुकान पर आकर मेरे साथ काम करना।
"इस से तुम्हें घर का ख़र्च चलाने के लिए तनख़्वाह भी मिलेगी और तुम धीरे धीरे हीरों की परख करना भी सीख जाओगे"।
अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान पर जाने लगा और वहां हीरों - रत्नो की परख का काम भी सीखने लगा।
एक दिन वह बड़ा अच्छा पारखी बन गया। लोग दूर-दूर से अपने हीरों की परख करवाने के लिए आने लगे।
एक दिन चाचा ने कहा,
"बेटा अपनी मां से वह हीरा लेकर आना और कहना कि अब बाजार बहुत तेज है - उसके अच्छे दाम मिल जाएंगे"
घर जा कर उसने जब मां से वह हीरा लेकर परखा तो पाया कि वह तो नकली है।
वह उसे घर पर ही छोड़ कर दुकान पर लौट आया।
चाचा ने पूछा, हीरा नहीं लाए? उसने कहा, वह तो नकली था।
"जब मैं पहली बार वो हीरा लेकर आपके पास आया था तो आपने क्यों नहीं बताया कि वो असली हीरा नहीं था ?"
चाचा ने कहा- जब तुम उस दिन वो हीरा लेकर आये थे, अगर तब मैं उसे नकली बता देता तो तुम सोचते कि आज
हम पर बुरा वक्त आया है तो चाचा हमारी असली चीज को भी नकली बताने लगे। इनके मन में भी शायद खोट है।
आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो गया तो तुम्हें स्वयं ही पता चल गया कि वो हीरा सचमुच ही नकली है।
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ये कहानी सुना कर बाबा गुरबचन सिंह जी ने कहा कि इसी तरह अगर आप किसी को कर्मकाण्ड करते हुए देख कर उनकी आलोचना करेंगे -
उन्हें ग़लत कह कर उन पर टिक्का-टिप्पणी करेंगे तो उनका विश्वास भी आप से उठ जाएगा।
आप सिर्फ ज्ञान की चर्चा करें - सभी को ज्ञान मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें।
वेदों शास्त्रों और ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मज्ञानी के हर प्रकार के कर्मकाण्ड स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं।
इसलिए किसी को भी ग़लत न कहें और उनके कर्म-काण्डों की आलोचना कर के उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचाएँ।
सच तो यह है कि ज्ञान के बिना - निरंकार प्रभु के सिवाए इस संसार में हम जो भी देखते और जानते हैं - वो सब मिथ्या है।
"हम ठीक हैं और बाकी सब ग़लत हैं" - इस गलतफहमी का शिकार होकर हम सभी से रिश्ते बिगाड़ लेते हैं।
" राजन सचदेव "
Such a nice lesson. may I always remember this. Thank you as always.
ReplyDeleteThanks for sharing
ReplyDeletewhat a great and simple message ! My day started with a great lesson.
ReplyDeleteDr. Ram
I listen this vichar on that time.
ReplyDeleteSultan Singh
I hope and pray I implement this .... this happens a lot where we look down on others just because they follow certain rituals 🙏
ReplyDeleteitni saralta se ...itni badi baat....exemplary. Dhan Nirankar ji.
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