Tuesday, November 13, 2018

पुष्प और पत्थर

एक मंदिर में स्थापित प्रस्तर प्रतिमा पर चढ़ाए गए पुष्प ने क्रोधित होकर पुजारी से कहा:
"तुम प्रतिदिन इस प्रस्तर प्रतिमा पर मुझे चढ़ाकर इस​ पत्थर ​की पूजा करते हो। यह मुझे कतई पसंद नहीं है। 
पूजा तो मेरी होनी चाहिये क्योंकि मैं सुंदर, कोमल और ​सुवासित​-​​सुगन्धित ​हूँ। यह तो मात्र एक पत्थर की​ निर्जीव ​मूर्ति है।
मंदिर के पुजारी ने हँसते हुए कहा​ .... ​
हे पुष्प, तुम कोमल, सुंदर​ तथा ​सुवासित अवश्य हो पर तुम्हें ईश्वर अथवा प्रकृति ने ​ही ​ऐसा बनाया है। ये गुण तुम्हें ​सहजता से प्राप्त हुए हैं। इनके लिये तुम्हें कोई श्रम नहीं करना पड़ा है। पर देवत्व प्राप्त करना बड़ा कठिन काम है। इस देव प्रतिमा का निर्माण बड़ी कठिनाई से किया जाता है। एक कठोर पत्थर को देव प्रतिमा बनने के लिये हजारों चोटें सहनी पड़ती है। चोट लगते ही अगर यह टूट कर बिखर जाता तो यह कभी देव प्रतिमा नहीं बन सकता था। एक बार कठोर पत्थर देव प्रतिमा में ढल जाए तो लोग उसे बड़े आदर भाव से मंदिर में स्थापित करके प्रतिदिन उसकी पूजा अर्चना करते हैं। इस प्रस्तर​ (पत्थर)​ की सहनशीलता ने ही इसे देव प्रतिमा के रूप में पूजनीय तथा वंदनीय बनाया है।
यह सुनकर पुष्प मुस्कुरा दिया। 
वह समझ गया कि शुद्धिकरण की प्रक्रिया, एवं सहनशीलता की कठिन परीक्षा को सफलता पूर्वक पार करनेवाला ही देवत्व प्राप्त करता है।


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Jo Bhajay Hari ko Sada जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा

जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा  Jo Bhajay Hari ko Sada Soyi Param Pad Payega