अर्थात: व्यक्तिगत गुण ही समाज में स्थान एवं पद, प्रतिष्ठा आदि निर्धारित करते हैं।
समाज तथा लोगों के हृदय में स्थान बनाना, प्रेम, सम्मान और प्रतिष्ठा पाना इंसान के व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर करता है।
अच्छे और बुरे - हर प्रकार के कर्म लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ते हैं।
चाहे वो किसी का भला करने वाले कर्म हों या दूसरों को मारने अथवा दुःख और कष्ट पहुँचाने वाले कर्म हों -
हर कर्म का समाज में स्थाई नहीं तो दूरगामी प्रभाव अवश्य ही पड़ता है।
जहां अच्छे कर्म प्रशंसा और प्रेरणा का स्तोत्र बनते हैं तो वहीं मारने और दुःख देने वाले कर्म निंदा एवं घृणा का कारण बन जाते हैं।
कभी कभी चंद लोगों के कुकर्म की वजह से उनके पूरे समाज को ही शंका एवं घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगता है।
और ऐसा होना स्वाभाविक भी है। कहते हैं कि एक मछली तालाब को गंदा कर देती है।
लेकिन यह भी सत्य है कि चंद लोगों के बुरे कर्म से शायद उतना नुक्सान नहीं होता जितना अच्छे और समझदार लोगो की ख़ामोशी से होता है।
दूसरों के लिए घृणा पैदा करने वाली विचारधारा के प्रति तटस्थ रहना और ग़लत लोगों का साथ देना भी उतना ही ग़लत है जितना कि स्वयं ग़लत कार्य करना।
जब अच्छे और बुद्धिमान लोग ग़लत विचारधारा के खिलाफ नहीं बोलते - ज़ुल्म के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठाते तो भविष्य में और भी अधिक नुक्सान होने का ख़तरा बना रहता है।
वेद कहते हैं -
सत्यमेव जयते - नानृतं
सत्य का साथ दें - असत्य का नहीं
" राजन सचदेव "
Very true!🙏
ReplyDelete👍🙏true ji
ReplyDeleteSATYEMEV JAYATE DHAN NIRANKAR JI
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteAbsolutely correct sant ji, Dhan nirankar ji
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