जीवन में कुछ भी पूरी तरह से हमारा अपना नहीं है।
जन्म दूसरों ने दिया।
नाम दूसरों ने दिया।
नौकरी और व्यवसाय दूसरों ने दिया।
तनख़्वाह, पगार और आय (इनकम) दूसरों ने दी।
मान सम्मान और पदवियां दूसरों ने दीं।
पहला और आखिरी स्नान दूसरों ने दिया।
जन्म के बाद पहले और मृत्यु के पश्चात अंतिम संस्कार दूसरों ने किए।
यहां तक कि मृत्यु के पश्चात हमारा धन, सम्पत्ति, स्थान एवं पदवी इत्यदि भी दूसरों को मिल जाते हैं।
जीवन में सब कुछ न तो पूरी तरह से हमारा अपना किया हुआ होता है और न ही हमारे नियंत्रण में होता है -
- न हमारा प्रारम्भ, न हमारा काम, नौकरी अथवा व्यवसाय, न हमें मिलने वाली पदवी एवं मान सम्मान।
यहाँ तक कि हमारी संसारिक यात्रा और प्रकरण को समाप्त कर देने वाली मृत्यु भी हमारे अपने हाथ में अथवा नियंत्रण में नहीं है।
हर चीज़ दूसरों पर आधारित है - दूसरों के द्वारा प्रदान की हुई एवं प्रभावित और संचालित होती है - औरों के द्वारा बनाई या चलाई जाती है।
दूसरों के द्वारा नियंत्रित की जाती हैं।
और जब हम इस संसार से चले जाते हैं - तो वो सब जिसे आज हम अपना कहते हैं - किसी और का हो जाता है।
सोचने की बात है कि जब अंततः कुछ भी वास्तव में हमारा नहीं है तो फिर किस बात का अभिमान है?
मिथ्या अभिमान का त्याग करें।
यथार्थ को समझें और सत्य का साथ दें।
विनम्रता, दयालुता, सत्यता, प्रेम एवं सेवाभाव ऐसे गुण हैं जो हमारे पश्चात भी लोगों के हृदय में जीवित रहेंगे।
" राजन सचदेव "
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