कुछ लोग हमेशा दूसरों की गलतियाँ ढूँढने में लगे रहते हैं।
ऐसा लगता है कि वो लगातार दूसरों की —खासकर किसी व्यक्ति या किसी विशेष वर्ग की आलोचना करने में बहुत आनंद लेते हैं।
वे निरंतर दूसरों का मूल्यांकन करके अपनी राय देते रहते हैं, लेकिन जैसे ही कोई उन्हें आईना दिखा देता है, तो सब कुछ बदल जाता है।
जब कोई उनसे यह कहता है कि वो भी तो वही कर रहे हैं जिसकी वो आलोचना करते हैं, तो वे तुरंत आहत हो जाते हैं, क्रोधित हो जाते हैं, और मानो युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।
ये कैसी विडंबना है - वो ये नहीं चाहते कि कोई उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाए या उनकी मान्यताओं और धारणाओं पर सवाल उठाए, लेकिन दूसरों की आलोचना करना और उनकी भावनाओं को को ठेस पहुँचाना वे अपना संवैधानिक और विशेषाधिकार समझते हैं।
किसी को आहत करने से पहले — किसी की आलोचना करने और उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने से पहले — हमें अपने ही विचारों, शब्दों, धारणाओं और कर्मों पर विचार करना चाहिए।
जीवन के हर कदम पर हमें स्वयं से यह प्रश्न पूछना चाहिए:
कि यदि दूसरे लोग मेरे साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा मैं उनके साथ कर रहा हूँ -
अगर वे मेरे लिए वही शब्द इस्तेमाल करें जो मैं उनके लिए कर रहा हूँ — तो मुझे कैसा लगेगा?
सच्चाई यह है कि हमारे विचार, हमारे शब्द, और हमारे कर्म ही हमारा भाग्य निर्धारित करते हैं।
दूसरों में दोष ढूँढना आसान है — किसी की आलोचना और निंदा करना मुश्किल नहीं है - ये तो कोई भी कर सकता है।
लेकिन जब हम केवल दूसरों की कमियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हम अपने चारों ओर एक दीवार खड़ी कर लेते हैं जो हमें उनकी अच्छाइयों से अंधा कर देती है- जो हमें उनमें मौजूद कोई भी अच्छाई देखने से रोक देती है।
विवेक और बुद्धिमत्ता की असली परीक्षा दूसरों की नहीं, बल्कि अपनी कमियों को पहचानने में है।
जो लोग निरंतर अपनी कमजोरियों पर विचार करते हैं और दूसरों के गुणों की सराहना करते हैं, वही सच्चे अर्थों में सफल होते हैं। वो न केवल सांसारिक जीवन में, बल्कि आध्यात्मिक पथ पर भी सफलता प्राप्त करते हैं।
इसलिए, हमें दूसरों के साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा हम अपने साथ चाहते हैं।
" राजन सचदेव "
बिल्कुल सही है जी। यह तो सभी गुरु पीर समझाते आए हैं, परंतु बन्दा दूसरों की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ते, और अपनी आलोचना सुन नहीं सकते।
ReplyDeleteआशीर्वाद देना जी, आलोचना करने से दास बच सके जी।🙏🙏
Sunder
ReplyDeletebeautiful dhan nirankar ji
ReplyDeleteबिल्कुल सही फरमाया आपने कि जब हम दूसरों की बुराई कर रहे होते हैं, तो दरअसल अपने अवगुणों को छुपा रहे होते हैं।
ReplyDeleteगुरूमत का आईना हम सबको रहे दिखाते
हालांकि इसमें चेहरा अपना संवारना था।
🙏🙏Nirankar Sachchepaatshah hum sabko sadbuddhi bakhshe🙏
ReplyDelete