Tuesday, November 20, 2018

मार डाला तूने जिन को ग़ैर समझ के -- स्कूल के बच्चों और मासूम लोगों की मौत पर

आज सुबह उठते ही वर्तमान की घटनाओं को देखते हुए पुरानी लिखी हुईं कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं 
जो कि मई 2018 में सैंटा-फे, टैक्सस के स्कूल में हुई शूटिंग में दस बच्चों के मरने पर और उस से पहले की ऐसी ही कुछ घटनाओं को देखते हुए लिखीं थीं।  
ये देख कर जहाँ एक तरफ़ निराशा होती है वहीं इस बात पर बहुत हैरानी होती है कि कुछ लोग दूसरों के दुःख दर्द की ज़रा सी भी परवाह नहीं करते। 
उनके मन में इस बात का ज़रा सा भी एहसास नहीं होता कि उनके द्वारा मारे गए सज्जनों के परिवारों और सगे संबंधियों पर क्या गुज़रेगी ? 
ये बात किसी भी तरह समझ से बाहर है कि छोटे छोटे बच्चों और शांति पूर्वक अपना काम कर रहे या सतसंग सुन रहे मासूम लोगों को मार कर उन्हें क्या मिलेगा।
काश कि हर इंसान के मन में दूसरों के प्रति प्रेम और संवेदनशीलता का भाव जागृत हो - वैर विरोध ईर्ष्या और नफ़रत का विनाश हो - इंसानियत का विकास हो। 
               " मा कश्चिद् दुःखभाग भवेत "

       " स्कूल के बच्चों की मौत पर "    

मासूम थे,कमसिन थे,वो कच्ची उमर के थे 
वो राही नई ज़िंदगी के नए सफर के थे 

मार डाला तूने जिन को ग़ैर समझ के 
ज़ालिम! वो बच्चे तेरेअपने शहर के थे 

किसी की बगिया के वो महकते फूल थे 
या चिराग़ वो किसी मुफ़लिस के घर के थे 

आँख के तारे किसी के दिल के नूर थे 
या रौशनी किसी मा'ज़ूर की नज़र के थे 

आज की मुस्कान थे, कल की उम्मीद थे 
वो अलम-बरदार इक नई सहर के थे 

लख़्ते-जिगर थे वो इक बिलखते बाप के 
टुकड़े वो 'राजन ' किसी माँ के जिगर के थे 
              " राजन सचदेव "


मुफ़लिस               ग़रीब 
मा'ज़ूर                  लाचार, बेबस,अपाहिज, Handicap  
सहर                     सुबह 
अलम-बरदार       ध्वज-वाहक, आगे-आगे झंडा उठा कर चलने वाला लीडर Leader

No comments:

Post a Comment

Itnay Betaab kyon hain - Why so much restlessness?

 Itnay betaab - itnay beqaraar kyon hain  Log z aroorat say zyaada hoshyaar  kyon hain  Moonh pay to sabhi dost hain lekin Peeth peechhay d...