अक़्सर हमारे अंदर कोई न कोई संघर्ष चलता ही रहता है।
न केवल दूसरों के प्रति -
बल्कि अपने विचारों - अपनी श्रद्धा और अपने विश्वासों के प्रति भी।
जिन बातों और धारणाओं को हम सच मानते हैं - उन के बारे में भी कभी-कभी हमारे मन में संदेह उठने लगते हैं।
और फिर - हम स्वयं से लड़ने लगते हैं ।
उन संदेहों या अजीबो-ग़रीब विचारों के लिए स्वयं को दोषी ठहरा कर अपने आप को ही कोसना शुरु कर देते हैं।
इस से मन में भ्रम, बेचैनी - उद्विग्नता और चिंता पैदा होती है।
हम चिड़चिड़े और क्रोधित हो जाते हैं।
हम सभी के साथ बहस करना और लड़ना शुरु कर देते हैं -
न केवल औरों के साथ बल्कि अपने साथ भी ।
लेकिन ...
अगर हम अपने विचारों के साथ सामंजस्य बना लें -
और साथ ही दूसरों की सोच - औरों के विचारों का भी आदर करें -
उन की भावनाओं और धारणाओं को स्वीकार करके उनके साथ भी सामंजस्य बनाए रखें -
तो हमारे अपने मन में शांति बनी रहेगी।
हम स्वयं को हमेशा शांत और आनन्दित पाएंगे।
" राजन सचदेव "
🙏Bahot hee uttam vichar ji.🙏
ReplyDeleteVery True. 🙏🙏
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