Sunday, July 10, 2022

कुछ रोज़ तो याद रखो एहसान किसी का

पलकें  उठा कर झुकाया न करो 
बात को युंही तुम उलझाया न करो 

ज़ख्म बन  जाते हैं नसूर की सूरत
दर्द जरा सा भी हो छुपाया न करो 

उलझा देंगी दस्त-शिनासों की बातें
अपना हाथ किसी को दिखाया न करो 

कुछ रोज़ तो याद रखो एहसान किसी का
इतनी जल्दी किसी को भूल जाया न करो 

चढ़े दरिया ख़ुद  उतर जाते हैं 'अंजुम '
ज़रा सी तुग़यानी देख कर घबराया न करो 
                                              'अंजुम '
                  
दस्त-शिनास   =  हाथ देखने वाला ज्योतिषी 
तुग़यानी          =  बाढ़, समंदरी तूफ़ान। 

2 comments:

When the mind is clear

When the mind is clear, there are no questions. But ... When the mind is troubled, there are no answers.  When the mind is clear, questions ...