बहुत निकलीं मगर इक हसरत-ए-नाकाम बाकी है
हमारे सर नवर्द-ए-शौक़ का इलज़ाम बाकी है
बहुत सीखे,बहुत समझे, बहुत पढ़ लीं किताबें भी
समझना राह-ए-हक़ का पर अभी पैग़ाम बाकी है
अभी नफ़रत, कुदूरत दिल से रुख़सत हो नहीं पाई
अभी नज़रों में ऊँच और नीच, ख़ास-ओ-आम बाकी है
अभी छोटे बड़े का फ़र्क़ दिल से मिट नहीं पाया
कि हर इक शख़्स को देना अभी इकराम बाकी है
हज़ारों बार वाइज़ से सुनी 'उस दुनिया' की बातें
वो उतरे ग़ैब से जो रुह में इल्हाम - बाकी है
बहुत परवाज़ कर ली है ज़मीन-ओ-आस्मानों की
जहां मिलता हो दिल को चैन बस वो बाम बाकी है
बहुत दौड़े हैं पाने मंज़िलें ता-उम्र हम यारो
बस अब तो आख़िरी इक मंज़िल-ए-आराम बाकी है
अभी ताब-ओ-तवां है, होश है, हाथों में भी दम है
अभी देखो सुबू-ए-ज़िंदगी में जाम बाकी है
चलो अंजाम दें 'राजन ' उसे जो काम बाकी है
अभी सूरज नहीं डूबा अभी कुछ शाम बाकी है
" राजन सचदेव "
हसरत-ए-नाकाम = अधूरी लालसा, अपूर्ण इच्छा
नवर्द-ए-शौक़ = इच्छाओं की नगरी में भटकता राही
राह-ए-हक़ = सत्य की राह - धर्म का पथ - ईश्वर का मार्ग
कुदूरत = हृदय की मैल, मलीनता, दुर्भावना, बुरा सोचना, दुश्मनी का भाव
रुख़सत = विदा
इकराम = आदर, सत्कार, सम्मान, प्रतिष्ठा
वाइज़ = उपदेशक, प्रचारक, पुजारी, मौलवी, विद्वान इत्यादि
ग़ैब से = अज्ञात से, परलोक से, दूसरी दुनिया से, परोक्ष से, अचिंतनीय, समझ से बाहर, अकथनीय इत्यादि
इल्हाम = प्रभु की और से मिला संदेश, अज्ञात से मिला निर्देश, अंतरात्मा की आवाज़
परवाज़ = उड़ान
बाम = छत, बाल्कनी
ता-उम्र = सारी उम्र - उम्र भर
अंजाम = पूर्णता
ताब-ओ-तवां = शक्ति और सहन-शक्ति
सुबू = मटकी,सुराही, घड़ा, जग इत्यादि
जाम = प्याला, कप
सुबू-ए-ज़िंदगी में = जीवन रुपी घड़े या मटके में
Wah! Bahut khub
ReplyDeleteLajwaab ❤️
ReplyDeletewah ji🙏🏻👍👍
ReplyDeleteGreat ji kamal ka izhare sachai
ReplyDeleteWah ji wah 🙏 JK
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