Saturday, July 30, 2022

मधुर संस्मरण - आदरणीय भूपिंदर दिलवर जी मुंबई

आदरणीय भूपिंदर सिंह चुघ 'दिलवर' जी मुंबई - मधुर संस्मरण और अंतिम शब्द

आदरणीय भूपेंद्र दिलवर जी ने आज ही के दिन ठीक एक साल पहले (30 जुलाई 2021 को) अपनी शारीरिक यात्रा पूर्ण की! भले ही इस बात को एक वर्ष हो चुका है, लेकिन उनकी यादें - उनके संस्मरण हमें आज भी प्रेरणा दे रहे है और मुझे विश्वास है कि इस लेख के कुछ उदाहरण मुझे और मेरे जैसे अनेकों के लिए एक मापक सिद्ध होंगे। 

प्रस्तुत है, ऐसे ही कुछ प्रेरक प्रसंग...

यह बात आ. दिलवर जी के जीवन के अंतिम दौर की है! दिलवर जी बिमारी में अपने बिस्तर पर लेटे हुए ही अपने दिन व्यतीत कर रहे थे! शरीर में काफी थकावट आ गई थी, इस कारण उनकी देख-रेख करने के लिये परिवार के अलावा, मेल नर्स (सहायक) उनके साथ चोबिसों घंटे के लिये उपलब्ध थे। 

रात का समय हो गया था, सब सो चुंके थे! इतने मे आ. दिलवर जी की नींद खुली और वह बिस्तर से उठकर कुछ लेना चाहते थे! वो अपने सहायक को आवाज देने ही वाले थे कि उन्होंने देखा कि वह सहायक भी दिन भर की थकावट के बाद गहरी नींद मे हैं, यह देख कर दिलवर जी ने उन्हें आवाज तक नही लगाई और खुद ही वह वस्तु प्राप्त करने के लिये बिस्तरसे उतर कर खुद ही चलने की कोशीश करने लगे और उस असफल प्रयास मे वह गिर गये, जिसकी वजह से उनका हाथ फॅक्टचर हुआ और अंत समय तक वैसे ही रहा।

जरा सोचिये, वह सहायक (मेल नर्स) जो अभी कुछ ही दिनोंसे उनके  साथ जुडे थे, ज्यादा जान-पहचान भी नही थी,  उस सहायक को उस कार्य को करने की सैलरी भी मिलती थी, किंतु ऐसी स्थिति में भी दिलवर जी ने अपनी सेहत का ख्याल न करते हुए, उस सहायक के आराम के बारे मे सोचा।

कितना ऊँचा दया भाव, कितनी ऊँची मानवता उनके अंदर थी और वह तब भी बरकारार थी, जब उनका शरीर अशक्त था..

दिलवर जी दयाभाव के साथ-साथ काफी प्रॅक्टिकल भी थे, 
उदाहरण के तौर पर एक घटना याद आई !

जब उनके पास मुंबई मे कोई सज्जन सेवा के भाव से अभिभूत  हो कर आये, अति उत्साह मे दिलवर जी से कहने लगे,  "दिलवर जी, मैने सुना है, पुरातन संतो ने अपने जॉब की, व्यवसाय की कोई परवाह नहीं की और सबसे पहले भक्ति और  सेवा की! आज मैं भी अपनी जॉब छोड़कर आया हूं केवल इसलिए कि अब मैं भी पूरी सेवा निभाउंगा, अपना जीवन मिशन के, आध्यात्मिकता के नाम लगाऊंगा..."

दिलवर जी ने जब यह बात सुनी तो बिल्कुल स्पष्ट और ऊंचे स्वर में उनसे कहने लगे:-
"महात्मा, मुझे आप बताइए, क्या आप किसी पुरातन महात्मा की किसी क्रिया का बिना जाने पहचाने, अंधानुकरण (blindly follow) करना चाह रहे है ?" नही ना... क्या आपको उस समय की परिस्थितियों का कुछ अंदाजा भी है?

और ज़रा गहराई से सोचिये, सद्गुरु ने हमे चौथा प्रण क्यों दिया? क्या आप जिम्मेदारियो का निर्वाह नही करना चाहते?

 सद्गुरु हम से प्रैक्टिकल आध्यात्मिकता की अपेक्षा करते है...

जाओ, जा कर कोई और जॉब ढूंढो..औऱ याद रक्खो कि अपना जॉब या व्यापार छोड़कर कोई सेवा नही होती...

आ. दिलवरजी ने कभी भी किसी मंच से यह नही कहाँ की आपके पास जितने पैसे है, दान कर दो! उन्होंने कभी किसी को कोई सेवा करने के लिए जोर-जबरदस्ती नही की। हां लेकिन खुद सेवा करके सबको प्रेरित किया, और सेवा भी ऐसे करी, कि अपनी पत्नी को भी उसका अंदाजा नही लगने दिया। उन्होंने सेवा करते समय भी मध्यमार्ग को अपना कर जिम्मेदारी के साथ तन-मन-धन की सेवा करने के लिए प्रेरित किया।

अगर भवन पर कोई मीटिंग हो ती, तो मुझे अक्सर कहते की जब मेरे आफिस का कार्य पूरा हो जाये तब ही आना, अन्यथा जब छुट्टी होती है, तब अवश्य ही समय से पहले आकर सेवा करना। परिवार को साथ ले आना, तांकि परिवार के साथ भी समय गुज़र सके और बिना किसी और चिंता के दुगने उत्साह में सेवा करते रहें।

 दिलवर जी ने प्रक्टिकलिटी (PRACTICALITY) और भावनाओं का अद्भुत संतुलन बनाया हुआ था। जब मुझे उनकी बीमारी के बारे में पता चला तो दिसंबर 2020 में कोरोना के दौर में भी मुझसे रहा नहीं गया और मैं उनसे मिलने के लिए उनके घर चला गया। 
बीमारी के बारे में पता होते हुए भी उन्होंने मुझसे बीमारी के बारे में कोई बात नही की! इसके विपरीत, वह आनेवाले समागम की सेवाओ की सुचारुता औऱ विभिन्न तैयारियों का ही ज़िक्र कर रहे थे, जब कुछ देर बैठ कर वह थक गए तो कहने लगे कि मैं लेट जाता हूं, लेकिन लेट कर भी मुझे तुमसे सेवा के बारे में बातें करनी है, तुम रुक जाओ। ऐसी परिस्थितिमें भी उनका जज़्बा अपनी चरम सीमा पर था।

कुछ दिनों बाद जब उनकी हालत ज्यादा बिगड़ी, तो उन्हें वेंटिलेटर लगाना पड़ा, उन्होंने ज़िन्दगी जीने की, तबीयत में सुधार लाने की पूरी कोशिश की, हर सम्भव उपचार पद्धति भी उन्होंने परिवारजनों की मदद से अपनाई।
किन्तु जब उन्हें अंदर से अहसास हो गया, कि मेरे बिस्तर पर पड़े रहने से न केवल मुझे बल्कि अन्य सभी को तकलीफ हो रही है तो उन्होंने 24 जुलाई 2021 को एक संदेश भिजवाया, वह सन्देश जो का त्यों आपके समक्ष सादर प्रस्तुत है:

Dhan Nirankar ji
Please ask saints to stop praying for me to get well it may delay things. 
Please all of you pray to Nirankar to end my suffering and pain specially from breathlessness even if it means merging in Nirankar.
Full family is prepared.
Datar mehar karo pain and suffering end kar do thank you ji. 
🙏🏻
Dilvar

यह उनके अंतिम शब्द थे, यह उनका अंतिम मैसेज था...
ऐसा संदेश उनके व्हाट्सएप द्वारा मिलते ही, मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई, बुद्धि जैसे कुंठित हो गई। 

फिर दूसरे  ही दिन से, उनकी तबीयत और भी बिगड़ी औऱ एक हफ्ते से भी कम समय में वह 30 जुलाई को सूर्य उगने से पूर्व ही अपना शरीर त्याग कर परम सत्ता में विलीन हो गए...

उनके आखरी शब्द औऱ आख़री प्रार्थना भी निरंकार सद्गुरु ने मान ली, जैसे उन्हें इजाजत दे दी हो...

किन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है, जब तक वह जिंदा रहे, तब तक रोज उनके घर पर संतो-महात्माओं का तांता लगा रहा, उन्होंने सब को इशारों में ही खुशी के गीत गाने को कहा, गुरू-महिमा, हरि-महिमा वह सुनते रहे, हालांकि वह अब उठकर नाच नहीं पा रहे थे, लेकिन उनके चेहरे की मुस्कान, हाव भाव अभी भी उसी मस्ती में चूर दिख रहे थे। इतने गहरे आघात होने के बाद भी उनके पास शिकायत का कोई स्वर नही था, बस सकारात्मकता के साथ अविरल बहने वाला शुक्राने का गीत था, आनंद था... परमानंद ...ये अवस्था मुझे बिल्कुल वैसी ही अवस्था महसूस हुई, जिसे संत ज्ञानेश्वर जी ने अमृतानुभव में लिखा

म्हणोनि ज्ञानदेव म्हणे। अनुभवामृतें येणें।
सणु भोगिजे सणें। विश्वाचेनि।।

(ज्ञानदेव कहे, अमृत अनुभव प्राप्त करें - विश्व को (जीवन को) एक महोत्सव की तरह मनाइये)
                    (लेखक: अमित चव्हाण, मुंबई )

8 comments:

  1. ❤❤❤🙏🙏🙏🙏

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  2. बहुत सुंदर जीवन जिकर गये है महात्मा दीलवर जी May nirankar bless that we can follow..

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  3. Thought provoking read about lifespan of Rev Dilbar ji. A day spent with Saint at Mumbai Bhawan on 15th March, 2020 is still fresh in memory. RIP Sant ji. You, for sure, has been phenomenal during your life in physical form and continue to be similar in eternity.

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  4. Shat shat NAMAN ISS MAHAN VIBHUTI KI JISNE JEETE JI POORANTAV KO PRAPT KIYA

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