Sunday, July 31, 2022

A lamp is not bound to a place - Chiraagh ka apnaa makaan nahin hota

Jahaan rahega vahin raushni lutaayega
Kisi chiraagh ka apnaa makaan nahin hota 
                                " Wasim Barelavi "
                         ~~~~~~~~~~~~~~
A candle or a lamp is not bound to a specific place
nor its light is confined to a particular home. 
It's the nature of the lamp that wherever it goes, 
it spreads the light and illuminates the place.

किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता

  जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा 
किसी चिराग़ का अपना मकाँ नहीं होता                         
                                वसीम बरेलवी

 जलता हुआ दीपक किसी एक विशेष स्थान से बंधा हुआ नहीं होता 
न ही इसकी रोशनी किसी ख़ास घर के लिए होती है और वहीं तक ही सीमित रहती है।
दीपक का स्वभाव है कि वह जहां भी रहता है वहां प्रकाश ही फैलाता है 
और उस स्थान को रोशन कर देता है।

Saturday, July 30, 2022

मधुर संस्मरण - आदरणीय भूपिंदर दिलवर जी मुंबई

आदरणीय भूपिंदर सिंह चुघ 'दिलवर' जी मुंबई - मधुर संस्मरण और अंतिम शब्द

आदरणीय भूपेंद्र दिलवर जी ने आज ही के दिन ठीक एक साल पहले (30 जुलाई 2021 को) अपनी शारीरिक यात्रा पूर्ण की! भले ही इस बात को एक वर्ष हो चुका है, लेकिन उनकी यादें - उनके संस्मरण हमें आज भी प्रेरणा दे रहे है और मुझे विश्वास है कि इस लेख के कुछ उदाहरण मुझे और मेरे जैसे अनेकों के लिए एक मापक सिद्ध होंगे। 

प्रस्तुत है, ऐसे ही कुछ प्रेरक प्रसंग...

यह बात आ. दिलवर जी के जीवन के अंतिम दौर की है! दिलवर जी बिमारी में अपने बिस्तर पर लेटे हुए ही अपने दिन व्यतीत कर रहे थे! शरीर में काफी थकावट आ गई थी, इस कारण उनकी देख-रेख करने के लिये परिवार के अलावा, मेल नर्स (सहायक) उनके साथ चोबिसों घंटे के लिये उपलब्ध थे। 

रात का समय हो गया था, सब सो चुंके थे! इतने मे आ. दिलवर जी की नींद खुली और वह बिस्तर से उठकर कुछ लेना चाहते थे! वो अपने सहायक को आवाज देने ही वाले थे कि उन्होंने देखा कि वह सहायक भी दिन भर की थकावट के बाद गहरी नींद मे हैं, यह देख कर दिलवर जी ने उन्हें आवाज तक नही लगाई और खुद ही वह वस्तु प्राप्त करने के लिये बिस्तरसे उतर कर खुद ही चलने की कोशीश करने लगे और उस असफल प्रयास मे वह गिर गये, जिसकी वजह से उनका हाथ फॅक्टचर हुआ और अंत समय तक वैसे ही रहा।

जरा सोचिये, वह सहायक (मेल नर्स) जो अभी कुछ ही दिनोंसे उनके  साथ जुडे थे, ज्यादा जान-पहचान भी नही थी,  उस सहायक को उस कार्य को करने की सैलरी भी मिलती थी, किंतु ऐसी स्थिति में भी दिलवर जी ने अपनी सेहत का ख्याल न करते हुए, उस सहायक के आराम के बारे मे सोचा।

कितना ऊँचा दया भाव, कितनी ऊँची मानवता उनके अंदर थी और वह तब भी बरकारार थी, जब उनका शरीर अशक्त था..

दिलवर जी दयाभाव के साथ-साथ काफी प्रॅक्टिकल भी थे, 
उदाहरण के तौर पर एक घटना याद आई !

जब उनके पास मुंबई मे कोई सज्जन सेवा के भाव से अभिभूत  हो कर आये, अति उत्साह मे दिलवर जी से कहने लगे,  "दिलवर जी, मैने सुना है, पुरातन संतो ने अपने जॉब की, व्यवसाय की कोई परवाह नहीं की और सबसे पहले भक्ति और  सेवा की! आज मैं भी अपनी जॉब छोड़कर आया हूं केवल इसलिए कि अब मैं भी पूरी सेवा निभाउंगा, अपना जीवन मिशन के, आध्यात्मिकता के नाम लगाऊंगा..."

दिलवर जी ने जब यह बात सुनी तो बिल्कुल स्पष्ट और ऊंचे स्वर में उनसे कहने लगे:-
"महात्मा, मुझे आप बताइए, क्या आप किसी पुरातन महात्मा की किसी क्रिया का बिना जाने पहचाने, अंधानुकरण (blindly follow) करना चाह रहे है ?" नही ना... क्या आपको उस समय की परिस्थितियों का कुछ अंदाजा भी है?

और ज़रा गहराई से सोचिये, सद्गुरु ने हमे चौथा प्रण क्यों दिया? क्या आप जिम्मेदारियो का निर्वाह नही करना चाहते?

 सद्गुरु हम से प्रैक्टिकल आध्यात्मिकता की अपेक्षा करते है...

जाओ, जा कर कोई और जॉब ढूंढो..औऱ याद रक्खो कि अपना जॉब या व्यापार छोड़कर कोई सेवा नही होती...

आ. दिलवरजी ने कभी भी किसी मंच से यह नही कहाँ की आपके पास जितने पैसे है, दान कर दो! उन्होंने कभी किसी को कोई सेवा करने के लिए जोर-जबरदस्ती नही की। हां लेकिन खुद सेवा करके सबको प्रेरित किया, और सेवा भी ऐसे करी, कि अपनी पत्नी को भी उसका अंदाजा नही लगने दिया। उन्होंने सेवा करते समय भी मध्यमार्ग को अपना कर जिम्मेदारी के साथ तन-मन-धन की सेवा करने के लिए प्रेरित किया।

अगर भवन पर कोई मीटिंग हो ती, तो मुझे अक्सर कहते की जब मेरे आफिस का कार्य पूरा हो जाये तब ही आना, अन्यथा जब छुट्टी होती है, तब अवश्य ही समय से पहले आकर सेवा करना। परिवार को साथ ले आना, तांकि परिवार के साथ भी समय गुज़र सके और बिना किसी और चिंता के दुगने उत्साह में सेवा करते रहें।

 दिलवर जी ने प्रक्टिकलिटी (PRACTICALITY) और भावनाओं का अद्भुत संतुलन बनाया हुआ था। जब मुझे उनकी बीमारी के बारे में पता चला तो दिसंबर 2020 में कोरोना के दौर में भी मुझसे रहा नहीं गया और मैं उनसे मिलने के लिए उनके घर चला गया। 
बीमारी के बारे में पता होते हुए भी उन्होंने मुझसे बीमारी के बारे में कोई बात नही की! इसके विपरीत, वह आनेवाले समागम की सेवाओ की सुचारुता औऱ विभिन्न तैयारियों का ही ज़िक्र कर रहे थे, जब कुछ देर बैठ कर वह थक गए तो कहने लगे कि मैं लेट जाता हूं, लेकिन लेट कर भी मुझे तुमसे सेवा के बारे में बातें करनी है, तुम रुक जाओ। ऐसी परिस्थितिमें भी उनका जज़्बा अपनी चरम सीमा पर था।

कुछ दिनों बाद जब उनकी हालत ज्यादा बिगड़ी, तो उन्हें वेंटिलेटर लगाना पड़ा, उन्होंने ज़िन्दगी जीने की, तबीयत में सुधार लाने की पूरी कोशिश की, हर सम्भव उपचार पद्धति भी उन्होंने परिवारजनों की मदद से अपनाई।
किन्तु जब उन्हें अंदर से अहसास हो गया, कि मेरे बिस्तर पर पड़े रहने से न केवल मुझे बल्कि अन्य सभी को तकलीफ हो रही है तो उन्होंने 24 जुलाई 2021 को एक संदेश भिजवाया, वह सन्देश जो का त्यों आपके समक्ष सादर प्रस्तुत है:

Dhan Nirankar ji
Please ask saints to stop praying for me to get well it may delay things. 
Please all of you pray to Nirankar to end my suffering and pain specially from breathlessness even if it means merging in Nirankar.
Full family is prepared.
Datar mehar karo pain and suffering end kar do thank you ji. 
🙏🏻
Dilvar

यह उनके अंतिम शब्द थे, यह उनका अंतिम मैसेज था...
ऐसा संदेश उनके व्हाट्सएप द्वारा मिलते ही, मेरे पैरों तले की जमीन खिसक गई, बुद्धि जैसे कुंठित हो गई। 

फिर दूसरे  ही दिन से, उनकी तबीयत और भी बिगड़ी औऱ एक हफ्ते से भी कम समय में वह 30 जुलाई को सूर्य उगने से पूर्व ही अपना शरीर त्याग कर परम सत्ता में विलीन हो गए...

उनके आखरी शब्द औऱ आख़री प्रार्थना भी निरंकार सद्गुरु ने मान ली, जैसे उन्हें इजाजत दे दी हो...

किन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है, जब तक वह जिंदा रहे, तब तक रोज उनके घर पर संतो-महात्माओं का तांता लगा रहा, उन्होंने सब को इशारों में ही खुशी के गीत गाने को कहा, गुरू-महिमा, हरि-महिमा वह सुनते रहे, हालांकि वह अब उठकर नाच नहीं पा रहे थे, लेकिन उनके चेहरे की मुस्कान, हाव भाव अभी भी उसी मस्ती में चूर दिख रहे थे। इतने गहरे आघात होने के बाद भी उनके पास शिकायत का कोई स्वर नही था, बस सकारात्मकता के साथ अविरल बहने वाला शुक्राने का गीत था, आनंद था... परमानंद ...ये अवस्था मुझे बिल्कुल वैसी ही अवस्था महसूस हुई, जिसे संत ज्ञानेश्वर जी ने अमृतानुभव में लिखा

म्हणोनि ज्ञानदेव म्हणे। अनुभवामृतें येणें।
सणु भोगिजे सणें। विश्वाचेनि।।

(ज्ञानदेव कहे, अमृत अनुभव प्राप्त करें - विश्व को (जीवन को) एक महोत्सव की तरह मनाइये)
                    (लेखक: अमित चव्हाण, मुंबई )

Friday, July 29, 2022

बस कंडक्टर सी ज़िंदगी Life like a bus conductor

बस कंडक्टर जैसी ये लगती है ज़िंदगी 
जाना तो है कहीं नहीं पर सफ़र है हर रोज़ 

Bus conductor jaisi ye lagti hai zindagi 
Jaana to hai kahin nahin par safar hai har roz
            ~~~~~~~~~~~~~~~

Life seems to be like a bus conductor
Nowhere to go - yet the journey is every day

Thursday, July 28, 2022

नींद रात भर नहीं आती Can't sleep at night - Neend nahin aati

कुछ लोगों को नींद तो रात भर नहीं आती 
लेकिन उनका ज़मीर हर वक़्त सोया रहता है !!

Kuchh logon ko neend to raat bhar nahin aati
Lekin un ka zameer har vaqt soyaa rehtaa hai 
                   ~~~~~~~~~~~~~~

Some people may not get any sleep at night
But their conscience is sleeping all the time !!

Wednesday, July 27, 2022

I am not sad because ये दुःख नहीं Ye dukh nahin یہ دکھ نہیں کہ

ये दुःख नहीं कि मुझे अपनी जुस्तजू भी नहीं 
अज़ाब ये है कि अब इसकी आरज़ू भी नहीं 
                                  " फ़रहत शहज़ाद  "

Ye dukh nahin ki mujhay apni justajoo bhi nahin 
 Azaab ye hai ki ab is ki aarzoo bhi nahin 
                     " Farhat Shehzad "
             ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
It's not that I am sad because I am not searching for my (Real) self - 
not trying to find who I am. 
My grief is that now I do not even have a desire for it. 

Justajoo   = Search  तलाश 
Azaab    =   Distress, Pain, Agony, anguish, grief, कष्ट, दुःख 

یہ دکھ نہیں کہ مجھے اپنی جستجو بھی نہیں
عذاب یہ ہے کہ اب اس کی آرزو بھی نہیں 
                          - فرحت شہزاد  -  

Tuesday, July 26, 2022

I kept walking मैं चलता रहा Mein chaltaa rahaa

डर तो लगा था फ़ासला देखकर
पर मैं चलता रहा रास्ता देखकर
ख़ुद-ब-ख़ुद ही नज़दीक आती गई
मेरी मंज़िल  मेरा हौसला देखकर

Dar to lagaa tha faaslaa dekh kar 
Par main chaltaa rahaa raasta dekh kar 
Khud-ba-khud hee nazdeek aati gayi
Meri manzil meraa hauslaa dekh kar
                 ~~~~~~~~~~~~~
Initially, there was some fear after seeing the distance, 
but I kept walking. 
Seeing my courage  - the destination itself came closer to me.

Bad Attitude बुरा स्वभाव

Bad temper - Bad attitude is like a flat tire
Can't go anywhere unless it is changed.

बुरा स्वभाव - बुरा रवैया एक पंक्चर - फ्लैट टायर की तरह होता है
जब तक इसे बदला न जाए  -  कहीं जा नहीं सकते 

Monday, July 25, 2022

मित्रों और सहयोगियों का चुनाव

कुछ लोग आपको शांत और प्रसन्न-चित्त देख कर आपकी शांति भंग करने का प्रयत्न करेंगे 
और आपको उलझनों में डाल कर छोड़ देंगे।

और कुछ लोग आपको अस्त-व्यस्त - चिंताग्रस्त और टुकड़ों में बिखरा हुआ देखेंगे - 
तो आपको प्रेमपूर्वक शांति के मार्ग की ओर ले जाएंगे।

अपने दोस्तों, मित्रों एवं सहयोगियों का चुनाव सावधानी और बुद्धिमानी से करें ।

Choosing Friends and associates

Some people will find you in peace and leave you in pieces.

Some people will find you in pieces and lead you to peace.

Some people - 
Seeing you calm, content, and cheerful - will try to disturb your serenity and leave you sad and confused.

And some people - 
if they find you troubled, anxious, and torn to pieces - will lovingly lead you to the path of peace and happiness.

Choose your friends and associates carefully and wisely.

Sunday, July 24, 2022

The sun hasn't set yet, the evening is still there -- Abhi sooraj nahin dooba

                             Scroll down for the English translation

Bahut nikleen magar ik hasrat-e-nakaam baaki hai 
Hamaaray sar navard-e-shauq ka ilzaam baaki hai 

Bahut seekhay,bahut samjhay, bahut padh leen kitaaben bhi 
Samajhnaa Raah-e-Haq ka par abhi paighaam baaki hai 

Abhi nafrat, kudoorat dil say rukhsat ho nahin paayi 
Abhi nazron mein oonch aur neech, khaas-o-aam baaki hai 

Abhi chhotay baday ka farq dil say mit nahin paaya 
ki har ik shakhs ko denaa abhi ikraam baaki hai 

Hazaaron baar waaiz say suni 'us duniya' kee baaten 
Vo utray gaib say jo Rooh mein ilhaam - baaki hai 

Bahut parvaaz kar lee hai zameen-o-aasmaanon kee 
Jahaan miltaa ho dil ko chain bus vo baam baaki hai 

Bahut dauday hain paanay manzilen ta-umr ham yaaro 
Bas ab to aakhiri ik manzil-e-aaraam baaki hai
 
Abhi Taab-o-Tavaan hai, hosh hai, haathon mein bhi dam hai 
Abhi dekho suboo-e-zindagi mein jaam baaki hai

Chalo Anjaam den 'Rajan' usay -  jo kaam baaki hai 
Abhi sooraj nahin doobaa abhi kuchh shaam baaki hai 
                                    " Rajan Sachdeva "

                    English Translation:

Though a lot has been fulfilled - one unfulfilled desire still remains.

The charge of being a wanderer in the realms of desires still hangs on my head. 


Learned a lot, apprehended a lot, and read a lot of books too

Comprehending the message of Rah-e-Haq - the path of Truth is yet to be accomplished.


Still, the hatred, ill-will, and feelings of animosity have not been removed from the heart.

The status of high-and-low, special-and ordinary people still remains in sight. 


Still, The difference between higher and lower (people) has not been erased from the mind.

We have yet to give equal respect and honor to everyone. 


Thousands of times - we have heard the talks about 'that world' from priests and preachers.

But listening to the intuition that comes from the Higher-Above still remains.


So many flights have been taken on the earth and in the skies -

But the (own) Terrace, where peace of mind can be achieved, is still to be visited. 


Have been running all life long to reach many destinations - O friends.

What is left now - is the destination of the final resting place.


Still, there is energy and resilience (in the body) - 

consciousness is still there - and the hands also have the strength.

There is still a cupful left in the flask of life. 


Let's accomplish the unfinished work - that is still left to be done.

The sun hasn't set yet - some evening still remains. 


                    Meanings of some Urdu words

Hasrat-e-Naakaam = Unfulfilled desires 

Navard-e-Shauq = Wanderer of desires 
Raah-e-Haq = Path of Truth, Righteousness, the ultimate path of enlightenment
Kudoorat = Malice, Ill-will, Animosity
Rukhsat = Departure, Valediction, Farewell, Gone, left 
Ikaraam = Respect, Honor, Regard
Waaiz =   Preacher, Preist, Maulavi, Wise person etc.
Ghaib say = From the Unknown, From the other world, from Inconceivable, unexplainable, etc.
Ilham = Intuition received from higher above - from God, spirit, or universe, etc. 
Parvaaz = flight, to fly
Baam =   Rooftop, Terrace, Balcony 
Ta-Umr = All life, Life-long 
Taab-o-Tavaan = Energy, and Resilience - Ability to apply and resist force. 
Suboo    =  Flask, Pitcher, Jug
Jaam = Cup, glass
Suboo-e-Zindagi mein = in the flask of life
Anjaam = Completion, Fulfilment

अभी सूरज नहीं डूबा अभी कुछ शाम बाकी है

बहुत निकलीं मगर इक हसरत-ए-नाकाम बाकी है 
हमारे सर नवर्द-ए-शौक़ का इलज़ाम बाकी है 

बहुत सीखे,बहुत समझे, बहुत पढ़ लीं किताबें भी 
समझना राह-ए-हक़ का पर अभी पैग़ाम बाकी है 

अभी नफ़रत, कुदूरत दिल से रुख़सत हो नहीं पाई 
अभी नज़रों में ऊँच और नीच, ख़ास-ओ-आम बाकी है 

अभी छोटे बड़े का फ़र्क़ दिल से मिट नहीं पाया 
कि हर इक शख़्स को देना अभी इकराम बाकी है 

हज़ारों बार वाइज़ से सुनी 'उस दुनिया' की बातें 
वो  उतरे ग़ैब से जो रुह में इल्हाम  - बाकी है 

बहुत परवाज़ कर ली है  ज़मीन-ओ-आस्मानों की
जहां मिलता हो दिल को चैन बस वो बाम बाकी है

बहुत दौड़े हैं पाने मंज़िलें ता-उम्र हम यारो 
बस अब तो आख़िरी इक मंज़िल-ए-आराम बाकी है 

अभी ताब-ओ-तवां है, होश है, हाथों में भी दम है 
अभी देखो  सुबू-ए-ज़िंदगी में जाम बाकी है 

चलो अंजाम दें 'राजन ' उसे जो काम बाकी है 
अभी सूरज नहीं डूबा अभी कुछ शाम बाकी है 
                             " राजन सचदेव "

हसरत-ए-नाकाम   =  अधूरी लालसा, अपूर्ण इच्छा  
नवर्द-ए-शौक़       =  इच्छाओं की नगरी में भटकता राही 
राह-ए-हक़           = सत्य की राह - धर्म का पथ - ईश्वर का मार्ग 
कुदूरत                 = हृदय की मैल, मलीनता, दुर्भावना, बुरा सोचना, दुश्मनी का भाव 
रुख़सत                =   विदा 
इकराम                =   आदर, सत्कार, सम्मान, प्रतिष्ठा 
वाइज़                  =  उपदेशक, प्रचारक, पुजारी, मौलवी, विद्वान इत्यादि 
ग़ैब से       =  अज्ञात से, परलोक से, दूसरी दुनिया से, परोक्ष से, अचिंतनीय, समझ से बाहर, अकथनीय इत्यादि 
इल्हाम     =  प्रभु की और से मिला संदेश, अज्ञात से मिला निर्देश, अंतरात्मा की आवाज़ 
परवाज़    =   उड़ान 
बाम        =    छत, बाल्कनी 
ता-उम्र     =   सारी उम्र - उम्र भर 
अंजाम      =    पूर्णता 
ताब-ओ-तवां  =    शक्ति और सहन-शक्ति 
सुबू         =       मटकी,सुराही, घड़ा, जग इत्यादि 
जाम        =      प्याला, कप 
सुबू-ए-ज़िंदगी में    =   जीवन रुपी घड़े या मटके में 

Saturday, July 23, 2022

अभी कुछ शाम बाकी है

चलो अंजाम दें उसको अभी जो काम बाकी है 
अभी सूरज नहीं डूबा अभी कुछ शाम बाकी है 

अभी ताब-ओ-तवां है होश है हाथों में भी दम है 
अभी 'राजन ' सुबू-ए-ज़िंदगी में जाम बाकी है 
                                         " राजन  सचदेव  "

ताब-ओ-तवां   =  ताक़त , शक्ति और  सहनशक्ति 
                    Ability to apply and resist force

Still some Time is Left - Abhi kuchh Shaam Baaki hai

Chalo Anjaam den us ko abhi jo kaam baaki hai 
Abhi sooraj nahin doobaa abhi kuchh shaam baaki hai 

Abhi Taab-o-tavaan hai, hosh hai, haathon mein bhi dam hai 
Abhi 'Rajan' suboo-e-zindagi mein jaam baaki hai
                                    " Rajan Sachdeva "

  English Translation:

Let's accomplish the unfinished work - that is still left to be done.
The sun hasn't set yet - there's still some evening left.

Still, there is energy and resilience (in the body) - 
consciousness is still there - and the hands also have the strength.
There is still a cupful left in the flask of life. 

Suboo    =  Flask, Pitcher, Jug

Thursday, July 21, 2022

अगर हमारे हाथ में होता Agar hamaaray haath me hota

तुम्हारी किस्मत लिखना गर हमारे हाथ में होता 
तो ज़िंदगी की हर ख़ुशी तुम्हारे नाम लिख देते 

ग़म का साया भी तुमको न छू पाता कभी 'राजन ' 
तुम्हारे चेहरे पे मुस्कान सुबहो -शाम लिख देते 
                                     " राजन सचदेव "

Tumhari kismat likhna gar hamaaray haath may hota 
To zindagi ki har khushi tumharay naam likh detay 

Gham ka saaya bhi tum ko na chhoo paataa kabhi 'Rajan'
Tumhaaray chehray pay muskaan subah-o-shaam likh detay
                           " Rajan Sachdeva " 

Wednesday, July 20, 2022

Though heat is in the sun -Tapish sooraj mein hai तपिश सूरज में है लेकिन

तपिश सूरज में है लेकिन ज़मीं को तपना पड़ता है 
निगाहें जुर्म करें तो दिल को ही तड़पना  पड़ता है 

Tapish sooraj mein hai lekin zameen ko tapnaa padtaa hai 
Nigaahen jurm karain to dil ko hee tadapanaa padtaa hai
                         ~~~~~~~~~~~~~~~~~
Though heat is in the sun - 
But it's the earth that has to burn.
Though eyes are deviant & mischievous 
yet, it's the heart that has to suffer.  

Monday, July 18, 2022

भज गोविन्दम - मोह मुद्गर - श्लोक # 2

                    मूढ जहीहि धनागमतृष्णां कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम् । 
                    यल्लभसे निजकर्मोपात्तं वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥ २ ॥
                                           (भज गोविन्दम - मोह मुद्गर - श्लोक 2)

हे अज्ञानी - मूढ़ इन्सान ! अत्यधिक धन संचय की लालसा को त्याग दो। 
अपनी बुद्धि और विचारों को सत्य, पर केंद्रित करो - और मन को वैराग्य की ओर मोड़ो।
अपने निज कर्म से जो मिले - निष्कपट और ईमानदार कार्य के माध्यम से जो प्राप्त हो - 
उसी में प्रसन्न और संतुष्ट रहो ।
             ~~~~~~~~~~
इस श्लोक में विचार करने के लिए कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं।
यहां शंकराचार्य ऐसा नहीं कह रहे हैं कि धन कमाना बुरा है - अनैतिक या पाप है - 
न ही वह ये कह रहे हैं कि धन एवं सांसारिक जीवन को त्याग दिया जाना चाहिए। 

वो ये कह रहे हैं कि धन-संचय की प्यास - ज़्यादा से ज़्यादा धन इकठ्ठा करने की अभिलाषा और लालच करना मूर्खता है - क्योंकि कुछ भी स्थायी नहीं है। हर प्राणी इस संसार से खाली हाथ ही जाता है - सब कुछ यहीं छोड़ जाता है।
इसलिए धन के लोभ और संपत्ति के मोह का त्याग करो।

भले ही शंकराचार्य स्वयं एक संन्यासी थे - उन्होंने संसार का त्याग कर दिया था और  भिक्षा के माध्यम से - भिक्षा में जो भोजन मिलता - उसी से अपना निर्वाह करते थे। 
लेकिन फिर भी वे सभी को सन्यासी या साधु बनने की सलाह नहीं देते।
वे कहते हैं - कि नेक कार्य करो। अपने शुद्ध सात्विक और ईमानदार कार्य से जो कुछ भी मिलता है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए।
दूसरे शब्दों में - किसी को धोखा न दें - धन कमाने के लिए गलत साधनों को न अपनाएँ, और लालची न बनें।

ईशोपनिषद में भी ऐसा ही कहा गया है:
                       "मा गृधः कस्य स्विद्धनम "
 अर्थात - किसी की संपत्ति मत छीनो -  जो किसी और का है - जो तुम्हारा नहीं है उस पर अपना अधिकार मत जताओ।

वेदों के अनुसार, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए  - संसार से मुक्त होने के लिए दो मार्ग हैं।
एक है संन्यास मार्ग - संसार का त्याग और केवल सत्य एवं वास्तविकता पर ध्यान। 
दूसरा है गृहस्थ मार्ग - संसार में एक गृहस्थ के रुप में रहते हुए भी मन को सत्य पर केंद्रित रखना।

शंकराचार्य ने अपने लिए पहला मार्ग चुना।
लेकिन  इस श्लोक में वह उन लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं जिन्हों ने दूसरा रास्ता - अर्थात गृहस्थ मार्ग को चुना है। जो संसार में भी रहना चाहते हैं - और संसार से मुक्त भी होना चाहते हैं।
उनके लिए शंकराचार्य कह रहे हैं कि :
उचित - निष्कपट, सच्चे और ईमानदार तरीके से धन कमाओ। 
अपने निज कर्म से जो प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रह कर प्रसन्नता पूर्वक अपना जीवन यापन करो।
दूसरों का धन छीनने का यत्न न करो  ।
लालची मत बनो - आसक्तियों को छोड़ो - 
और अपनी बुद्धि और मन को सत्य के प्रति समर्पित करो।
                                                      ' राजन सचदेव ''
संस्कृत शब्दों के अर्थ:
मूढ़  = अज्ञानी, भ्रांतिपूर्ण
जहीही = छोड़ दो -  त्याग दो
धन-आगम तृष्णां = लोभ - धन संचय की प्यास
कुरु सद-बुद्धिं = शुद्ध विचार रखें, सही निर्णय लें
मनसि वितृष्णाम  = मन विरक्त रहे 
यल्लभसे निज कर्मो-पातम् = अपने स्वयं के सच्चे कर्म से प्राप्त किये हुए 
वित्तम तेन विनोदय चित्तम  - ऐसे धन से ही हृदय को प्रसन्न और सन्तुष्ट रखो। 

Bhaj Govindam - Moh Mudgar Verse 2

           Moodh Jaheehi Dhan-Aagam Trishnaam
           Kuru Sad-Buddhim Mansi Vitrishnaam 
           Yallabhsay Nij Karmo-Paatam
           Vittam Taina Vinodaya Chittam
                              (Bhaj Govindam - Moh Mudgar Verse 2)

O ignorant! Let go of your thirst to amass wealth.
Make the right decision - Divert your intellect and thoughts toward the Truth, the Real - and your mind to dispassion and detachment. 
Whatever you get through your sincere & honest actions - from your own work - 
Be happy and content with that. 
             ~~~~~~~~~~~~
There are several vital points in this verse to consider. 
In this verse, Shankracharya is not saying that earning wealth is evil, immoral, or sinister - or to give up worldly life. 
He says the thirst for hoarding - accumulating amass wealth is foolishness - because nothing is permanent. Everyone leaves this world empty-handed. 
Therefore, give up the Greed for wealth and attachment to possessions. 

Even though Shankracharya was a Sanyasi - a monk - he had renounced the world and begged for his food - as all monks do. Yet, he does not advise everyone to become a Sanyasi or a monk. 
He says - to be content with whatever you earn through your sincere & honest actions. 
In other words, do not cheat - do not embrace the wrong means of making money, and do not be greedy. 
The same has been said in the Ishopanishad:
         "Ma Gridhah Kasya Sviddhnam" 
 Do not snatch someone else's possessions - that, what belongs to someone else - not to you.

According to the Vedas, there are two ways to achieve the goal - to be free from the Samsara. 
One is Sanyas Marg - renounce the world and focus on Reality only.
Second is Grahasth Marg - living in the world as a household - yet keeping the mind focused on Reality.

Shankracharya chose the first Marg for himself. 
In this verse, however, he is trying to guide those who choose the second path - the Grahasth Marg. 
Those who want to stay in the world - and also want to become free of Samsara. 
To them, he says: 
Earn your living by proper, sincere, and honest means, and be content with what comes your way. 
Do not seize others' belongings. 
Do not be greedy - let go of attachments - and devote your intellect and mind to the Truth.
                                                      ' Rajan Sachdeva '
Meaning of Sanskrit words:
Moodh  =   Ignorant, Delusional
Jaheehi  =  Give up, Let go
Dhan-Aagam Trishnaam = Greed - Thirst to accumulate wealth
Kuru Sad-Buddhim  = Have pure thoughts, Make the right decision
Mansi Vitrishnaam = Be detached in your mind
Yallabhsay   = Whatever you receive - whatever comes your way
Nij Karmo-Paatam  = Through your own sincere work
Vittam Taina   = with that money
Vinodaya Chittam  = Be happy, content in your heart

मूढ जहीहि धनागमतृष्णां कुरु सद्बुद्धिं मनसि वितृष्णाम् । 
यल्लभसे निजकर्मोपात्तं वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥ २ ॥

A Crack in a Wall - दीवार में दरार

A Crack in a Wall -
                The Wall will Fall 
A Crack in a Relationship 
                  will Build a Wall 

दीवार में दरार आ जाए  
             तो दीवार गिर जाती है 
रिश्तों  में दरार आ जाए 
            तो दीवार बन जाती है 

Sunday, July 17, 2022

Whenever you feel sad and lonely जब आप अकेला और उदास महसूस करें

Whenever you feel sad and lonely - 
whenever you think that no one cares about you -
Just remember - 
    There are billions of cells in your body 
                and all they care about is - you - only you.

जब कभी आप अपने आप को अकेला और उदास महसूस करें -
जब भी आपको लगे कि किसी को भी आपकी परवाह नहीं है -
तो उस वक़्त इतना याद रखना  -
   कि आपके शरीर में अरबों कोशिकाएँ हैं
जो सिर्फ - और सिर्फ आप के लिए ही काम करती हैं 
                  जिन्हें परवाह है - तो सिर्फ आपकी। 

Saturday, July 16, 2022

Absorb what is useful

Absorb what is useful
                 and discard what is useless 
                                     Add your experience
Mix all these ingredients 
      and cook them on the skillet of practice.  

Friday, July 15, 2022

When you feel you are losing जब लगे कि सब ख़त्म होता जा रहा है

When you feel you are losing everything - 
That everything is coming to an end -
Then Look at the trees.

They lose their leaves every year -
But they still stand tall 
and wait for the spring - 
      for the better days to come.

जब कभी आपको लगे कि सब कुछ हाथ से छूटा जा रहा है 
सब खो रहा है - सब ख़त्म होता जा रहा है 
तो पेड़ों को देख लिया करो।

वो हर साल अपने पत्ते खो देते हैं - 
हर साल उनके पत्ते झड़ जाते हैं 
लेकिन फिर भी वो सीधे खड़े रहते हैं 
और वसंत का - अच्छे दिनों के आने का इंतजार करते हैं।

आशिक़ हैं मगर Though in love - Aashiq hain magar

आशिक़ हैं मगर इश्क़ का दावा नहीं करते
हम दर्द की दौलत का दिखावा नहीं करते

तूने हमें ठुकराया राहे -इश्क़ में सौ बार
पर तुझसे ऐ फ़लक़ हम शिकवा नहीं करते

हैं यार की महफ़िल में जो मख़मूर-ए-मोहब्बत
दिल को कभी मिन्नतकशे -मीना नहीं करते
                                  (अज्ञात लेखक - नामालूम)

Aashiq hain magar ishq ka daavaa nahin kartay 
Ham dard kee daulat ka dikhaava nahin kartay 

Tu nay hamen thukraaya raah-e-ishq mein sau baar 
Par tujh say ae falaq ham shikvaa nahin kartay 

Hain yaar ki mehfil mein jo makhmoor-e-mohabbat 
Dil ko kabhi minnat kash-e-meena nahin kartay 
                               (Writer unknown)
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

We usually lose the beauty and charm of the poetry through translation into other languages 
But still... 
  English translation for those who do not understand Hindi and Urdu ---
                  
Though in love - I don't boast about it
Nor do I broadcast the pain I feel.

Though you rejected my way - 
my sentiments of love hundreds of times 
Yet, I do not complain - O Heavens (God).

Those who are deeply absorbed in love -
do not need any other intoxication in life. 

Thursday, July 14, 2022

न हंस के सीखे हैं न रो के सीखें हैं Neither by laughing - nor by crying

न हम कुछ हंस के सीखे हैं - न हम कुछ रो के सीखें हैं 
जो कुछ थोड़ा सा सीखे हैं -  किसी के हो के सीखें हैं 

Na ham kuchh hans kay seekhay hain 
Na ham kuchh Ro kay seekhay hain 
Jo kuchh thodaa saa seekhay hain - 
Kisi kay ho kay seekhay hain 
                         ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Neither have I learned by laughing - 
nor have I learned anything by crying
Whatever little I have learned - 
I have learned by belonging to someone - 
            - By being in love 

Words, Meanings, and Perceptions

In the ancient Indian system, the human race was classified into three categories - 
Dev - Daanav, and Maanav.

Dev means provider - rich and resourceful but good-natured, kind-hearted people with a Satvik attitude. Generous - Righteous and virtuous - pure and benevolent.
Daanav means people of demonic nature - thieves, robbers, etc. - who snatched the wealth of others and enjoyed inflicted pain on others.
And the third - Maanav - the ordinary middle-class people.

There is a legend in the Puraanas that once all the three communities - Deva, Daanav, and Maanav sent their representatives to Prajaapati Brahmaa for guidance.
When they reached there, Prajapati was about to leave.
After bowing down to Prajapita Brahmaa with respect, they requested him to give them some guidance - some instructions for their communities. So that they can enhance and uplift their lives.
Prajaapati saw them and uttered only one word - D (pronounced as 'The')
and left.

Everyone was confused - no one understood what it meant.
But Prajaapati had already left.
Disappointed, the three representatives went back to their respective places.

When the people of their communities asked them what were the teachings- instructions given by Prajaapati Brahma ji to them? 
They replied that he had said only one word - 'D (the) - nothing else.
The elders and leaders of the communities thought there must be some hidden meaning behind this word. Otherwise, Prajaapati would not have said it.
Scholars were called and asked to find out the meaning of the word.

The Devas thought that they are always indulged in luxury and pleasure -
Therefore the word 'D' said by Prajaapati would mean - Daman - Repression. Suppression of excessive pleasures and desires.
They thought, Surely, Brahma ji wants us to control our lusts, passions,  and desires.

The Daanavs thought - We are evil by nature.
We often torture people, harass them - torment and loot their belongings.
D' is derived from the word Daya - Mercy.
Prajaapati has definitely instructed us to have mercy by saying this word.

And the humans thought -
We were too selfish. 
We are always engrossed in collecting and accumulating wealth for ourselves.
Therefore, the message of Prajapati for us is 'Daan' - Charity - Giving. 
Prajaapati must have asked us to rise above selfishness and give charity - to help others.
                         ~~~~~~~~~~~~~~~
In this story, the scholars from different backgrounds chose three distinctive words from the same letter D - Daman, Daya, and Daan.
Each group derived the meaning of the same word according to their own understanding, perception, and background.

Similarly, when we read the Scriptures or hear something from the Gurus, Sages, and elders, we assume our own meanings according to our own understanding and background.

Each person's circumstances might be different.
They may be passing through different phases or stages of life.
Moreover - children, young, and old people usually think differently. 
Their perception is different according to their experience. 

Instead of arguing which definition of a particular verse is correct or incorrect - we should embrace the meaning that can help us move forward and improve our life.
                                         " Rajan Sachdeva "

शब्द, अर्थ और धारणाएँ

प्राचीन काल में मानव जाति को तीन वर्गों में दर्शाया जाता था 
देव, दानव और मानव
देव अर्थात देने वाले - धनी एवं समर्थ लकिन सद्बुद्धि, सात्विक वृति वाले लोग
दानव अर्थात दैत्य वृति - दूसरों का धन छीनने वाले चोर डाकू इत्यादि 
और मानव अर्थात साधारण - सामान्य मध्यम वर्ग के लोग

एक पौराणिक कथा है कि एक बार तीनों समुदायों - अर्थात देवों, दानवों, और मानवों ने अपने अपने प्रतिनिधियों को कुछ मार्गदर्शन लेने के लिए प्रजापति ब्रह्मा के पास भेजा।

जब वे वहाँ पहुँचे, तो प्रजापति कहीं जा रहे थे।
तीनों प्रतिनिधियों ने सम्मान से प्रजापिता ब्रह्मा को प्रणाम किया और उनसे अनुरोध किया कि वे उन्हें कुछ उपदेश दें - 
उनके समुदायों के लिए कुछ निर्देश दें ताकि वे अपने जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम हो सकें।
प्रजापति ने उन्हें देखा और केवल एक शब्द कहा - ' द ' और चले गए 

सब उलझन में पड़ गए - 
किसी को भी इसका मतलब समझ नहीं आया।
लेकिन प्रजापति ब्रह्मा तो वहां से जा चुके थे। 
तीनों प्रतिनिधि निराश हो कर अपने अपने स्थान पर वापस लौट गए।

जब उनके समुदायों के लोगों ने उनसे पूछा कि ब्रह्मा जी ने उन्हें क्या उपदेश - निर्देश दिए हैं ?
तो उन्होंने उत्तर दिया कि प्रजापिता ने केवल ' द कहा था - और कुछ भी नहीं ।
सभी समुदायों के बड़े बुज़ुर्गों और नेताओं ने सोचा कि इस शब्द के पीछे ज़रुर ही कोई अर्थ छिपा हुआ होगा। अन्यथा प्रजापिता ऐसा न कहते।
विद्वानों को बुलाया गया और उनसे इस शब्द का अर्थ खोजने के लिए कहा गया।

देवों या देवताओं ने सोचा कि वे हमेशा विलासिता और सुख में लिप्त रहते हैं - 
इसलिए प्रजापिता के 'द ' शब्द का अर्थ होगा - "दमन 
अत्यधिक सुखों और वासनाओं का दमन। 
अवश्य ही ब्रह्मा जी ने हमें इच्छाओं एवं वासनाओं को नियंत्रित करने के लिए होगा।

दानवों ने सोचा - हम स्वभाव से ही बहुत क्रूर और दुष्ट हैं।
हम अक़्सर लोगों पर अत्याचार करते हैं - उन्हें तंग करते हैं - पीड़ा देते हैं 
और उनका धन और सामान इत्यादि लूट लेते हैं।
 ' द ' शब्द से बनता है 'दया '
प्रजापिता ने 'द ' कह कर अवश्य ही हमें दया करने का उपदेश दिया है।

उधर, मानवों ने सोचा कि हम अत्यधिक स्वार्थी हैं - 
हमेशा धन संचय में लगे रहते हैं - जोड़ने और इकठ्ठा करने में ही लगे रहते हैं। 
प्रजापिता ने हमें स्वार्थ से ऊपर उठ कर 'द - अर्थात 'दान करने के लिए कहा है। 
दूसरों की मदद करने के लिए कहा है।
                                               ~~~~~~~~~~~

इस कहानी में विभिन्न पृष्ठभूमि के विद्वानों ने एक ही अक्षर 'द ' से - दमन, दया, और दान - तीन अलग अलग शब्द चुने। 
एक ही शब्द का अर्थ - सब ने अपनी अपनी समझ, धारणा और पृष्ठभूमि के अनुसार किया।
इसी तरह, जब हम गुरुओं, संतों, और बुज़ुर्गों से कुछ सुनते हैं, तो हम अपनी समझ और पृष्ठभूमि के अनुसार अपने अपने मतलब निकाल लेते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थितियां अलग हो सकती हैं। 
हो सकता है वे जीवन के विभिन्न चरणों - Phases अथवा अवस्थाओं से गुजर रहे हों। 
वैसे भी बच्चों, नौजवानों और बुज़ुर्गों के सोचने का ढंग अलग होता है।

इसलिए, यह तर्क देने के बजाय कि कौन सा अर्थ सही या गलत है - 
हमें वह अपनाना चाहिए जो व्यक्तिगत रुप से हमें आगे बढ़ने और अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। 
                                          ' राजन सचदेव '

It’s not about me यह मेरे बारे में नहीं है

It’s not about me
                      It never was 
                                   and never will be

यह मेरे बारे में नहीं है
                        न  कभी  था
                                     और न कभी होगा

Wednesday, July 13, 2022

गुरु पूर्णिमा - गुरु के प्रति समर्पित परंपरा


गुरु पूर्णिमा एक भारतीय और नेपाली आध्यात्मिक परंपरा है - जो आध्यात्मिक और शैक्षणिक गुरुओं के प्रति समर्पित है।
ऐसे गुरुओं के प्रति - जो स्वयं विकसित एवं  प्रबुद्ध हैं और अपने ज्ञान को बिना किसी स्वार्थ के बाँटने के लिए तैयार हैं। 

ऐसा माना जाता है कि गुरु के मार्गदर्शन के बिना व्यक्ति अंधा होता है।
बच्चे के पहले गुरु होते हैं उसके माता और पिता।
फिर अन्य गुरु भी माता या पिता का ही रुप बन जाते हैं।

शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य दो बार जन्म लेता है - जिसे द्विज के नाम से जाना जाता है।
पहला जन्म पिता और माता के मिलन से - और दूसरा - जब वह एक अच्छे और पूर्ण  गुरु द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है।

गुरु एक पिता के रुप में माँ गायत्री - अर्थात शास्त्रों की मदद से ज्ञान प्रदान करता है 
अर्थात शास्त्रों में वर्णित ज्ञान के अनुसार विस्तार से समझाता है । 
गायत्री का अर्थ है शास्त्र एवं शास्त्रोचित ज्ञान। 
दूसरे शब्दों में गुरु को पिता और शास्त्रों एवं साहित्य को माता माना गया है - 
क्योंकि गुरु - शास्त्रों और प्रामाणिक पुस्तकों की सहायता से ही पढ़ाते हैं।

गुरु पूर्णिमा का त्योहार भारत और नेपाल के हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ (जुलाई-अगस्त) के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
जैसे पूर्णिमा का चाँद पूर्णता का प्रतीक है। वैसे ही गुरु-पूर्णिमा इस विश्वास का प्रतीक है कि गुरु पूर्ण है। 

यदि हमें गुरु पर विश्वास ही न हो - तो हम उन से कुछ भी नहीं सीख सकते। 
कुछ भी सीखने के लिए हमें अपने गुरु - अपने शिक्षक पर विश्वास होना चाहिए।
अगर हमें वांछित विषय में उनके ज्ञान के बारे में संदेह है तो हम उनसे कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे ।
इसीलिए , हम हमेशा एक ऐसे गुरु को खोजने का प्रयास करते हैं, जिसे उस विषय में पूर्ण ज्ञान हो।
 और जब गुरु के ज्ञान और उनके अनुभव के बारे में हमारी जिज्ञासा शांत हो जाती है, तो हमें स्वयंमेव ही उनकी शिक्षाओं पर भी विश्वास होने लगता है।

गुरु-पूर्णिमा केवल गुरु के प्रति शिष्य की कृतज्ञता का ही प्रतीक नहीं है - 
बल्कि इस विश्वास की भी पुष्टि है कि पूर्णिमा के चाँद की तरह ही गुरु भी पूर्ण है।
लेकिन यहां एक सवाल भी उठता है - कि क्या बिना शिष्यों के कोई गुरु पूर्ण हो सकता है?

एक स्कूल में एक शिक्षक ने एक बच्चे से पूछा:
तुम्हारी उम्र क्या है ?
बच्चे ने कहा - छह साल" ।
"और तुम्हारे पापा कितने साल के हैं?"
"वह भी छह साल के हैं ।"
"ये कैसे संभव है?" शिक्षक ने पूछा।
बच्चे ने कहा - "क्योंकि मेरे जन्म के बाद ही तो वो पापा बने थे " 

कोई व्यक्ति तब तक पिता नहीं होता जब तक कि उसकी कोई संतान न हों।
वह पिता तो तभी बनता है जब उसकी संतान जन्म लेती है।
इसी तरह, एक गुरु भी तभी पूर्ण गुरु बनता है जब उसके शिष्य भी पूर्णता को प्राप्त करते हैं।

इसलिए, गुरु के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करने के लिए केवल गुरु की स्तुति गाना - उसकी प्रशंसा करना और उपहार देना ही काफी नहीं है।
गुरु की शिक्षाओं को सही ढंग से समझ कर - उन्हें आत्मसात कर के जीवन में धारण करके पूर्णता को प्राप्त करना भी ज़रुरी है ।

जिस प्रकार माता-पिता अपने बच्चों की उपलब्धियों पर प्रसन्न और गौरवान्वित होते हैं - उसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों को ऊंचाइयों और पूर्णता को प्राप्त करते हुए देखकर संतुष्ट और गौरवान्वित महसूस करते हैं।

लेकिन जो अपने शिष्यों से ईर्ष्या करता हो -  जो नहीं चाहता कि उसके शिष्य विकसित हों और पूर्णता तक पहुँचें - ऐसे गुरु को एक पूर्ण गुरु नहीं माना जा सकता।
बच्चों को समृद्ध होते देख कर माता-पिता को अपने आप में एक उपलब्धि का अहसास होता है कि उन का प्यार और बलिदान काम आया है - 
कि उन्होंने माता-पिता के रुप में अपनी भूमिका पूरी की है - अपना कर्तव्य ठीक से निभाया है।
इसी प्रकार शिष्यों को सिद्ध होते हुए और अपने समान ऊँचाइयों को प्राप्त करते हुए देखकर, गुरु को भी लगता है कि उन्होंने गुरु के रुप में अपनी भूमिका पूरी तरह निभाई है। उनका सिखाना और समझाना-बुझाना काम आया है। 

इसलिए गुरु के प्रति हमारी सच्ची कृतज्ञता तब होगी जब हम स्वयं भी पूर्णता प्राप्त करने की दिशा में - 
और सही मायने में गुरु को प्रसन्न एवं संतुष्ट करने के लिए गंभीरता से कोशिश करना शुरु कर देंगे। 
आइए - उस पूर्णिमा को प्राप्त करने के लिए हम सभी प्रभु से प्रार्थना करें और आशीर्वाद की कामना करें। 
                                                    " राजन सचदेव "

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...