Wednesday, May 28, 2025

तीन पहर तो बीत गये

तीन पहर तो बीत गये बस एक पहर ही बाकी है
जीवन हाथों से फिसल गया बस खाली मुट्ठी बाकी है

जग से हमने क्या पाया यह लेखा - जोखा बहुत किया 
इस जग ने हमसे क्या पाया है अब ये गिनती बाकी है

इस भाग-दौड़ की दुनिया में हमको इक पल का होश नहीं
वैसे तो जीवन सुखमय है पर फिर भी क्यों संतोष नहीं ?
सब कुछ पाया जीवन में इच्छाएं फिर भी बाकी हैं

क्या यूं ही जीवन बीतेगा क्या सांसें यूं ही ख़त्म होंगी?
क्या सदा ही दुःख और पीड़ा में ये आंखें यूं ही नम होंगी?
मन में छुपे हुए इन प्रश्नों के उत्तर भी बाकी है।

मेरी दौलत मेरी शोहरत, मेरी खुशियां, मेरे सपने
मेरा घर और मेरी दुनिया  - मेरे बच्चे, मेरे अपने 
मैं मेरी के भ्रम जाल से छुटना भी अभी बाकी है 

तीन पहर तो बीत गये बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया बस खाली मुट्ठी बाकी है।

20 comments:

  1. आपने याद दिलाया तो हमें याद आया🙏

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  2. VERY NICE DHAN NIRANKAR JI

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  3. Too good...thanks
    Ashok Chaudhary

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  4. Dhan Nirankar ji

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  5. Sooooo touching lines🙏🙏🙏

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  6. इस असलियत का सामना करना बाकी है … 🙏🏼

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  7. Thanks for the reminder.
    🙏

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  8. Very nice 👍

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  9. Very true. 🙏🙏

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  10. Amazingly profound poetry Rajanjee 🙏

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  11. Very true. Thank you ji

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  12. धन निरंकार जी, संतों उपरोक्त कविता के संदर्भ में बहुत पहले एक कहानी भी पढ़ी थी, एक नर्तकी राज दरबार में नृत्य करते समय यह वाक्य कहती है, तीन पहर तो बीत गए बस एक पहर ही बाकी है तो वहां बैठे सभी को यह वाक्य अपने ऊपर लागू हुआ लगता है, राजा का पुत्र जो राजा की हत्या करने वाला था, वो भी रुक जाता है,...इत्यादि अगर आप को याद है तो लिखना.🙏

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    1. हाँ जी ये कहानी मैंने बहुत बार संगतों में सुनाई है
      याद करवाने के लिए धन्यवाद। एक दो दिनों में दोबारा लिखने की कोशिश करुंगा।
      धन्यवाद।

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    2. ये कहानी मैंने 2020 में पोस्ट की थी
      I posted this story in 2020 and will repost it again.
      Thanks for the reminder.

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