जान पड़त हैं काक पिक बसंत ऋतु के माहिं
(दोहा: अब्दुल रहीम )
काक = कौवा
पिक = कोयल
रहीम कहते हैं कि जब तक कौआ और कोयल बोलते नहीं हैं, तब तक वे दोनों एक जैसे ही दिखते हैं — दोनों ही काले होते हैं।
लेकिन जब वसंत ऋतु आती है और ये बोलते हैं, तब पता चलता है कि कौन कोयल है और कौन कौवा।
16वीं शताब्दी के कवि रहीम का यह कालातीत दोहा व्यक्ति के वास्तविक चरित्र को प्रकट करने में वाणी और अभिव्यक्ति के महत्व पर प्रकाश डालता है।
यह दोहा सद्वाणी, विवेक और आत्मपहचान की ओर संकेत करता है कि इंसान की पहचान उसके रंग-रुप या बाहरी दिखावे से नहीं होती, बल्कि उसकी वाणी (बोलचाल) और व्यवहार से होती है।
जैसे कोयल की मधुर वाणी और कौवे की कर्कश ध्वनि उन्हें एक दूसरे से अलग करती है, वैसे ही व्यक्ति की असली पहचान उसकी वाणी - बोलचाल, भाषा और आचरण से होती है।
वाणी आंतरिक चरित्र का सच्चा प्रकटीकरण है।
आप क्या कहते हैं और किस ढंग से कहते हैं - आपकी भाषा - आपके शब्द और अभिव्यक्ति - अर्थात बात कहने का लहज़ा आपके आंतरिक स्वभाव को परिभाषित करता है।
जिस इन्सान की वाणी और व्यवहार में विनम्रता होती है उसके प्रति लोगों के मन में स्वयंमेव ही प्रेम और श्रद्धा का भाव उत्पन्न होने लगता है।
" राजन सचदेव "
" राजन सचदेव "
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