Tuesday, May 27, 2025

भिक्षा पात्र भर सकता है

भिक्षा का पात्र तो भरा जा सकता है 
लेकिन इच्छा का पात्र कभी नहीं भरता 

जीवन की ज़रुरतें तो पूरी हो सकती हैं 
लेकिन इच्छाएं नहीं। 
अंततः संतोष से ही सुख का अनुभव हो सकता है 

क्योंकि एक इच्छा पूरी होती है, तो दूसरी पैदा हो जाती है।
और ये अंतहीन सिलसिला जीवन पर्यन्त चलता रहता है - 
इच्छा और तृष्णा कभी तृप्त नहीं होतीं। 
ये एक ऐसा चक्र है जिसमें हर व्यक्ति उलझ कर रह जाता है।

जीवन में सच्चा सुख बाहर से नहीं - भीतर से आता है 
और वह केवल संतोष से ही प्राप्त हो सकता है। 
           " राजन सचदेव " 

4 comments:

  1. कठिन पर अटल सत्य

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  2. Very true. Bahut hee Uttam aur shikhshadayak Bachan ji.🙏

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  3. Very true Rajanjee 🙏

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