आत्मनो मोक्षार्थम् जगत् हिताय च
(ऋग्वेद)
आत्म अर्थात अपने मोक्ष - और जगत के हित यानी कल्याण के लिए कार्य करो।
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ऋग्वेद का यह महावाक्य मानव जीवन का एक संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
इस महा वाक्य के अनुसार मानव जीवन के दो उद्देश्य हैं
पहला, आत्म-साक्षात्कार एवं मोक्ष के लिए प्रयास करना
और दूसरा जगत हिताय - अर्थात दूसरों के कल्याण के लिए - जगत की बेहतरी और उत्थान के लिए काम करना।
इस मंत्र के अनुसार जीवन में इन दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करना आवश्यक है।
वेद और उपनिषद हमें इन दो रास्तों में से किसी एक को चुनने के लिए नहीं कहते -
बल्कि इन दोनों पर एक साथ चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
आध्यात्मिक विकास का अर्थ संसार का त्याग नहीं - बल्कि जागरुकता और करुणा के साथ जीवन जीना है।
मोक्ष, या मुक्ति का अर्थ है आंतरिक स्वतंत्रता - अर्थात अहंकार, स्वार्थ और भय के बंधन से मुक्ति।
जब तक मन पर अहंकार और स्वार्थ हावी है - जब तक हम केवल स्व-केंद्रित इच्छाओं से बंधे हैं -
जब तक हम भय की क़ैद में ग्रस्त हैं - तब तक न तो हम सही मायने में स्वतंत्र अथवा मुक्त हैं
और न ही हम दूसरों के लिए कोई सार्थक और भलाई का काम करने में सक्षम हैं।
इन आंतरिक अवरोधों को दूर करके ही हम सच्ची शांति का अनुभव कर सकते हैं।
और उस आंतरिक शांति से ही निस्वार्थ भाव से जगत की सेवा करने की शक्ति प्रवाहित होती है।
वेद और उपनिषद हमे मोक्ष प्राप्ति के साथ साथ दूसरों के लिए प्रकाश और सेवा का स्रोत बनने की भी प्रेरणा देते हैं।
- राजन सचदेव -
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ReplyDelete🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteThe meaning of Moksha and Jan Hitaye together is so deep, every word is well placed, I was able to read slowly in one breath. Thank you Rajan Ji...I am amazed at your writing skills, a nice read produces an inner peace
ReplyDeleteThank you
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