Sunday, October 20, 2024

तेरा चुप रहना

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना कि फलाँ मेरी जगह बैठ गया 

बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस *
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया - बैठ गया
                   "  तहज़ीब हाफ़ी " 

नशिस्तें        -  बैठने की जगह, सीट, आसन 
मख़्सूस        =  ख़ास, आरक्षित,  Reserved 

*  महबूब की महफ़िल में किसी के लिए कोई खास जगह आरक्षित (Reserved) नहीं होती
    जो भी इक बार जहाँ बैठ गया - बैठ गया 

4 comments:

विडंबना - The Irony

कल जो शहर में करता था सांप के काटे का इलाज आज उसी के तहखाने से सांपों के ठिकाने निकले                             " अज्ञात लेखक " ...