तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ
उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना कि फलाँ मेरी जगह बैठ गया
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस *
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया - बैठ गया
" तहज़ीब हाफ़ी "
नशिस्तें - बैठने की जगह, सीट, आसन
मख़्सूस = ख़ास, आरक्षित, Reserved
* महबूब की महफ़िल में किसी के लिए कोई खास जगह आरक्षित (Reserved) नहीं होती
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया - बैठ गया
🥀🥀🙏🏻🥀🥀
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteWah wah Thanks ji
ReplyDelete👌👌👌👌👌
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