Friday, January 24, 2020

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं

                                 पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं 
                                              (राम चरित मानस)

जो दूसरों पर निर्भर है, पराधीन है - वह कभी स्वप्न में भी प्रसन्न नहीं रह सकता।
चाहे हम दूसरों के गुलाम हों या स्वयं अपनी मान्यताओं एवं स्वभाव के आधीन हों - हम विकसित नहीं हो सकते।
पूर्व अधिग्रहित मान्यताएँ हमें प्रतिबंधित और कैद में रखती हैं - हमें विकसित नहीं होने देतीं।
पुरानी धारणाओं से मुक्त हो कर ही हम नए विचारों को अपना सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।

3 comments:

अकेले रह जाने का ख़ौफ़ Fear of being alone (Akelay reh jaanay ka Khauf)

हम अकेले रह जाने के ख़ौफ़ से  अक़्सर नाक़दरों से बंधे रह जाते हैं           ~~~~~~~~~~~~ Ham akelay reh jaanay kay khauf say  Aqsar na-qadron sa...