Thursday, November 12, 2015

Diwali -- A Different View


पटाखों की दुकान से कुछ दूर अपने हाथों में 
मैने उसे कुछ सिक्के गिनते देखा

एक गरीब बच्चे ​की ​​सूनी ​आखों मे
​कल ​मैने दिवाली को मरते देखा

थी चाह उसे भी ​- कि वो ​नए कपडे पहने 
मगर ​पुराने कपड़ों को उसे साफ करते देखा

हम करते है सदा अपने ​दुख ​की नुमाईश
​मगर उसे ​चुप ​-चाप ​दुख​​ सहते देखा

जब मैने ​पूछा,​ "बच्चे, ​कुछ ​चहिये तुम्हे"?​ 
मुस्कुराते हुए उसका सर मैंने "ना" में हिलते देखा ​

​वो यूं तो उम्र ​में - था ​​अभी ​बहुत ​छोटा 
उसके अंदर इक ​'बड़े-आदमी' को पलते देखा

​कल ​रात सारे शहर ​के ​दीपों की लौ ​में 
उसके बेबस से ​चेहरे ​को ​मैंने हँसते ​देखा

हम चाहते हैं सदा शान से ज़िंदा रहना 
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा

लोग कहते है, त्योहार होते है ​खुशियों ​के ​वास्ते ​
पर मैने उसे मन ही मन ​घुटते ​और तरस्ते देखा

​                    आखिर ऐसा ​क्यों ? 

थोडी सी खुशी किसी गरीब बच्चे को दे के देखो
आपको ​भी ​खुशी मिलेगी..!!!

                 Author: Unknown 


Help Poor children...................

कर के देखो ……… बहुत अच्छा लगेगा 

नोट : इसके लेखक का नाम तो मालूम नहीं मगर इस नज़्म के भाव बहुत सुंदर लगे
         मैंने चंद लाईनों में-  क़ाफ़िया मिलाने के लिए - कुछ लफ्ज़ बदल दिए हैं 
           With apologies from the original writer.  

                             ( राजन सचदेव )





1 comment:

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