1996 में मुझे बाबा हरदेव सिंह जी के साथ एक महीने के लिए अमेरिका और कैनेडा की प्रचार यात्रा में जाने का शुभ अवसर मिला। हालांकि सतगुरु बाबा जी के साथ जाने का यह पहला सुअवसर नहीं था लेकिन ना जाने क्यों, इस पूरे टूर में ही मेरा मन बहुत भावुक रहा। किसी भी जगह जब भी कोई भक्ति रस की रचना गाई जाती तो मेरी आँखें आँसुओं से नम हो जातीं। कोशिश करने पर भी, आंसू थे कि रुकते ही नहीं थे। पूरे टूर में यही सिलसिला चलता रहा।
एक बार कहीं एक छोटी सी पारिवारिक संगत हो रही थी। बाबा जी ने जगत गीतकार जी को एक भक्ति रचना गाने के लिए कहा। जगत जी मेरी तरफ इशारा हुए बोले "बाबा जी , जब भी मैं ये गीत गाता हूँ तो राजन जी रोने लगने लगते हैं। क्यों ना इनको थोड़ी देर के लिए बाहर भेज दें ?"
बाबा जी धीरे से मुस्कुरा दिए। लेकिन जगत जी की इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया।
मैं सोचने लगा कि अक्सर गुरु से मिलने पर लोग खुश होते हैं, नाचते हैं, गाते हैं।
लेकिन क्या कारण है कि मेरे मन में उदासी छा जाती है ? क्यों मेरी आँख में आंसू आ जाते हैं ?
अचानक मुझे साहिर लुध्यानवी साहिब का एक शेर याद आ गया :
"चंद कलियाँ निशात की चुन कर,
पहरों महवे यास रहता हूँ
तुझ से मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ "
मुझे लगा कि मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। हालांकि हर रोज़, पूरा दिन बाबा जी के साथ ही गुजरता था, फिर भी कहीं कुछ कमी थी। कुछ खालीपन सा था मन में। एक टीस सी उठती थी दिल में ....... गुरु से और क़रीब हो कर मिलने की एक तीखी तड़प सी महसूस होती थी। ऐसा लगता था कि साथ हो कर भी मैं गुरु के साथ नहीं हूँ।
और कारण खोजने पर मन में जो भाव आए उन्हें एक कविता के रूप में लिखने की कोशिश की.……
'अभी मैं दूर हूँ तुम से'
तुम को देखता हूँ तो ये आँख भर आती है क्यों
लगता है शायद अभी मैं दूर हूँ तुम से
है तमन्ना तुम मेरी हस्ती पे छा जाओ, मगर
जाने क्यों फिर भी अभी मैं दूर हूँ तुम से
दिल में बाकी हैं अभी ख़ुदग़र्ज़ियाँ, खुद-दारियाँ
शायद , इस वजहा से ही मैं दूर हूँ तुम से
चाहने पर भी खुदी को मार ना पाया हूँ मैं
और पूछता हूँ क्यों अभी मैं दूर हूँ तुम से
छोड़ दुनियादारी तेरे साथ रह सकता नहीं
मन ही नहीं, तन से भी मैं दूर हूँ तुम से
दिल में देखा ग़ौर से तो राज़ ये 'राजन' खुला
दिल में है दुनिया - तभी मैं दूर हूँ तुम से
तुम को देखता हूँ तो ये आँख भर ही जाती है
जानता हूँ , कि अभी मैं दूर हूँ तुम से
('राजन सचदेव ' सितंबर 1996)
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