Tuesday, November 18, 2014

Des me Pardesi​ देस में परदेसी



कुछ साल पहले की बात है  ​....... 
  
जब मै अमेरिकन सिटिज़न बनने के बाद पहली बार भारत 
​जा रहा था तो मुझे बताया गया कि पहली यात्रा में  पुराना cancelled पासपोर्ट भी साथ रखना ज़रूरी है 
देहली पहुँचने पर जब मैंने अपना पुराना पासपोर्ट, वीजा और नया अमेरिकन पासपोर्ट कस्टम अधिकारी के सामने रखा तो उन्होंने entry stamp लगाने के बाद एक अजीब अंदाज़ से मुझे देखा और पासपोर्ट ​वापिस ​थमाते हुए बोले -
"वाह साहिब​!​
अपने ही देस में परदेसी बन ​कर आये हो "
मै एक खिसयानी सी हंसी के साथ उनका धन्यवाद करके बाहर आ गया।
लेकिन भवन पहुंचने तक पूरे रास्ते उनकी बात ​मन में खटकती रही 
​​ अगले दिन भी मैं उस पर विचार करता रहा तो अचानक ख्याल आया कि अक़सर अध्यात्म (spirituality) में भी हमारे साथ ऐसा ही होता है 

हम जानते हैं​ और अकसर ​कहते भी हैं ​कि ये दुनिया परदेस है और हमारा,
यानी आत्मा का असली 'देस' परमात्मा है।  
फिर भी हमारा अधिकतर समय परदेस​ यानी संसार में ही गुजरता है और कभी कभी हम अपने देस ​अर्थात परमात्मा के ध्यान में कुछ देर के लिए विजिट करने चले जाते हैं। मगर परदेसी बन कर ही जाते हैं​, ​और​ परदेसको साथ ही ले कर जाते हैं। 

परमात्मा​ के ध्यान में भी परदेस​, ​यानी संसार की सुख सुविधाएं ही मांगते हैं।  

​घर में शादी थी ​तो सोचा कि शादी के लिए कपड़े और बाकी सामान लेने के लिए भारत जाना ठीक रहेगा। 
चूँकि इस यात्रा का प्रयोजन केवल कपड़े इत्यादि सामान लाना ही था सो एक आध हफ्ते में जल्दी से सब सामान इकठ्ठा करके वापिस आ गए। 
क्या हम सत्संग और सुमिरन में भी सिर्फ परदेस के लिए सामान  इकठ्ठा करने के लिए ही जाते हैं ? 

 वाह रे मनुआ वाह।  
 देस तो गया - मगर परदेसी बन कर 
 और लौट आया 
 परदेस के लिए​ कुछ साज़ो सामान ले कर 
 सागर में डुबकी लगाई तो​ थी 
​ पर लौट आया बस,​ हाथ कीचड़ से भर कर 
​                                         'राजन सचदेव'​



1 comment:

Khamosh rehnay ka hunar - Art of being Silent

Na jaanay dil mein kyon sabar-o-shukar ab tak nahin aaya Mujhay khamosh rehnay ka hunar ab tak nahin aaya Sunay bhee hain, sunaaye bhee hain...