Tuesday, January 23, 2024

आओ ग़ैरियत की ये दीवारें गिरा दें

आओ ग़ैरियत की ये दीवारें गिरा दें 
फ़र्क़ अपने और बेगानों के मिटा दें 
मिल के अब बसाएं एक प्रेम की दुनिया 
नफरतों - क़दूरतों के परदे हटा दें

लेकिन ये इक तरफ़ से तो हो नहीं सकता 
दोनों ओर से ही हाथ बढ़ना चाहिए 
न कोई बैरी है - न दुश्मन - न बेग़ाना 
हर किसी के दिल में ऐसा जज़्बा चाहिए 

सबको अपने जैसा ही गर देख पाएंगे 
तंग-दिली से अगर ऊपर उठ जाएंगे 
हर तरफ सदा जो मोहब्बत की आएगी 
'राजन' फिर ये धरती ही जन्नत हो जाएगी 
                  " राजन सचदेव "

ग़ैरियत   = अलगाव की भावना, अजनबीपन, परायापन  
सदा       =  पुकार, आवाज़, ध्वनि 

3 comments:

  1. Excellent .Bahut hee Uttam Rachana Uttam bhav ji .🙏
    Jaidev

    ReplyDelete
  2. Dhan nirankar ji 🙏🙏

    ReplyDelete

Easy to Criticize —Hard to Tolerate

It seems some people are constantly looking for faults in others—especially in a person or a specific group of people—and take immense pleas...