कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए -- बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं - हम बे-ज़ार बैठे हैं
नजीबों का अजब कुछ हाल है इस दौर में यारो
जिसे पूछो यही कहते हैं - हम बेकार बैठे हैं
बहुत आगे गए -- बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं - हम बे-ज़ार बैठे हैं
नजीबों का अजब कुछ हाल है इस दौर में यारो
जिसे पूछो यही कहते हैं - हम बेकार बैठे हैं
कहाँ गर्दिश फ़लक की चैन देती है सुना 'इंशा'
ग़नीमत है कि हम-सूरत यहाँ दो-चार बैठे हैं
"इंशा अल्लाह ख़ान इंशा" निकहत-ए-बाद-ए-बहारी = बसंत रुत में - बहार में चलने वाली हवा की ख़ुशबू
बे-ज़ार = निराश, परेशान, दुखी
नजीब = कुलीन, सच्चे, नेक, उदार, निष्कपट, प्रशंसनीय, प्रशंसा-योग्य इत्यादि
गर्दिश = घूमना, चक्कर, क़िस्मत का फेर, समय का परिवर्तन, दुर्भाग्य, बदक़िस्मती वग़ैरा
ग़नीमत है = यही बड़ी बात है कि हमारे जैसे दो चार दोस्त मित्र अभी बैठे हैं
🙏🙏🙏👌👌👌👌
ReplyDeleteReconciliation & resultant satisfaction,equivalent to endurance is the way out.......
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ReplyDelete🙏🙏
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