आओ ग़ैरियत की ये दीवारें गिरा दें
फ़र्क़ अपने और बेगानों के मिटा दें
मिल के अब बसाएं एक प्रेम की दुनिया
नफरतों - क़दूरतों के परदे हटा दें
लेकिन ये इक तरफ़ से तो हो नहीं सकता
दोनों ओर से ही हाथ बढ़ना चाहिए
न कोई बैरी है - न दुश्मन - न बेग़ाना
हर किसी के दिल में ऐसा जज़्बा चाहिए
सबको अपने जैसा ही गर देख पाएंगे
तंग-दिली से अगर ऊपर उठ जाएंगे
हर तरफ सदा जो मोहब्बत की आएगी
'राजन' फिर ये धरती ही जन्नत हो जाएगी
" राजन सचदेव "
ग़ैरियत = अलगाव की भावना, अजनबीपन, परायापन
सदा = पुकार, आवाज़, ध्वनि
👌👌👌👌🙏🙏🙏
ReplyDeleteExcellent .Bahut hee Uttam Rachana Uttam bhav ji .🙏
ReplyDeleteJaidev
Dhan nirankar ji 🙏🙏
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