खोज में तुम जिस की यूं दर दर भटकते हो
हर किसी के आगे यूं माथा रगड़ते हो
देखो - वो महबूब कण कण में समाया है
है नज़र का दोष जो उसको देख न पाया है
बैठ कभी एकांत में जब गुनगुनाओगे
अपने दिल में ही उसे बैठा तुम पाओगे
(लेखक अज्ञात - नामालूम)
Bhai Wah!!
ReplyDeleteAfter long time, I look forward to read ur blogs daily
ReplyDeleteBeautiful🙏
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