Friday, July 31, 2020

क्या आप वही देते हैं जो आप अपने लिए चाहते हैं ?

क्या आप दूसरों को वही देते हैं जो आप अपने लिए चाहते हैं ?

जैसे कि प्यार, स्नेह, मित्रता, सम्मान, सहयोग, सच्चाई और ईमानदारी आदि?
यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो दूसरों से भी ऐसी उम्मीद न करें।

क्या आप अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और सम्बन्धियों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं, जिन्हें इसकी आवश्यकता है?
यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो दूसरों से भी ऐसी उम्मीद न करें।

क्या आप अपने सपने, दर्द, आँसू, आशाएं - अच्छा और बुरा समय - सुख और दुःख - हंसी और खुशी अपने मित्रों और सम्बन्धियों के साथ साँझा करते हैं?

यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो दूसरों से भी ऐसी उम्मीद न करें।

अक़्सर जब हमें दूसरों से उचित प्रेम और सम्मान - सच्चाई और ईमानदारी नहीं मिलती है तो हम उदास और दुखी हो जाते हैं
लेकिन हम स्वयं  - उन्हें कोई उचित प्रेम और सम्मान प्रदान नहीं करना चाहते हैं।
कारण स्पष्ट है।
क्योंकि हम सोचते हैं कि हम उनके प्यार और सम्मान के लायक हैं, लेकिन वे हमारे प्रेम और सम्मान के लायक नहीं हैं।

हम भूल जाते हैं कि प्यार और सम्मान एक तरफा नहीं -  दो तरफा मार्ग है।
हम जो देते हैं वही हमारे पास लौट कर आता है।
यदि हम दूसरों का अनादर करेंगे तो वही हमारे पास लौट कर वापस आएगा।
इसलिए - सावधान रहें और ध्यान रखें कि हम दूसरों को क्या दे रहे हैं। 
यदि हम प्रेम और सत्कार चाहते हैं तो प्रेम और सत्कार ही पेश करें। 
                                          ' राजन सचदेव '

Do you offer others what you ask for yourself?

Do you offer to others what you ask for yourself? 
Such as love, affection, friendship, respect, understanding,  cooperation, truthfulness, and honesty, etc.?
If you don’t, then do not expect the same from others.

Do you extend a helping hand to friends, relatives, or even strangers who might be needing it?
If you don’t, then do not expect the same from others.

Do you share your dreams, pain, tears, fantasies - good and bad times - good fortune, joy, and laughter with others?
If you don’t, then do not expect the same from others.

We usually become unhappy when we do not get proper respect, truth, and honesty from others. 
But at the same time - we do not want to provide the same to them.
The reason is simple.
Because we think that we deserve their love and respect, but they are not worthy of our respect. 
We forget that love and respect is a two-way street. 
Whatever we give comes back to us.
If we disrespect others, then that is what will come back to us. 
Therefore, be mindful of what we offer to others. 
                                               ' Rajan Sachdeva '

Thursday, July 30, 2020

Walking is the Best Exercise

Walk Away from arguments that lead you to nowhere but anger.
Walk Away from people who deliberately put you down.
Walk Away from thoughts that reduce your worth.
Walk Away from failures and fears that stifle your dreams.
The more you Walk Away from things that poison your mind, the happier your life will be.
So, Walk Away from Anguish and Anxiety --Towards Happiness.        
Walk away from false hopes and pride - towards peace of mind.
                                     Shanti - Peace - Shanti

Wednesday, July 29, 2020

Ye Duniya

Ye duniya buton - shaah kaaron* ki duniya   
Ye duniya haseen chaand taaron ki duniya 
Ye phoolon kee duniya, bahaaron ki duniya 
Ye rangeen dilkash nazaaron ki duniya 

Kaheen jhoomtay baada-khvaaron ki duniya 

Kaheen cheekhtay gham kay maaron ki duniya        
Kaheen leedron - taabe-daaron ki duniya  
Kaheen bebason kee, laachaaron ki duniya 

Kaheen falsafee kay idaaron* ki duniya    
Kaheen mazahabon ki diwaron ki duniya 
Manidr, Maseet, Gurudwaron ki duniya 
Dilon me gehari daraaron ki duniya 

Khalihaan daftar bazaaron ki duniya 
Kaheen hukmraan-ahalkaaron ki duniya 
Ameer-e-shehar, taajdaaron ki duniya 
Vo oonchi meenaron, mazaaron ki duniya 

Kaheen sangdil - aur sharaaron ki duniya       
Oonchay mahal aur chaubaaron ki duniya 
Kaheen saada-lauh, naalaazaaron ki duniya  
Sadak pay paday khaksaaron ki duniya 

Farebon ki duniya - Saraabon ki duniya       
Ye jhooti Anaaon - vaqaaron*ki duniya        
Ye duniya faraibi makkaaron ki duniya        
Ye duniya sayyaadon, ayyaaron* ki duniya  

                Ye duniya nahin meri chaahat ki duniya 

                Ye duniya nahin meri raahat ki duniya 

Suna hai magar ik makaan aur bhee hai  
Soorat ik pinhaan yahaan aur bhee hai        
Zaahir kay peechhay nihaan aur bhee hai 
Is jahaan say aagay jahaan aur bhee hai 

Suna hai vo duniya, bahut hee haseen hai 
Arsh na farsh -  na falaq na zameen hai 
Na deevaaro dar hai, na taala kaheen hai 
Hai vo khushnaseeb jo uska makeen hai       

Nafarat na ninda, na koyi nuktaachin hai

Kahaan hai vo duniya jo itni haseen hai ?

Vo duniya kaheen aasamaan pay nahin hai 

Vo duniya bhee 'Rajan' yahin hai - yahin hai
                                    ' Rajan Sachdeva '

 Buton, Shahkaron                    Beautiful faces,  Artifacts
Idaaron                                       institutions 
Sangdil                                        Stone hearted
Shararon                                    Like fire)
Sada-loh                                    Simple 
Nalazaaron                              Crying, suffering
Saraabon                                  Mirage
Anaaon, Vakaaron                 False ego, Dignity
Ayyaaron                                 Over-clever

ये दुनिया

ये दुनिया बुतों - शाहकारों* की दुनिया     *Beautiful forms and artifacts
ये दुनिया हसीं चाँद तारों की दुनिया
ये फूलों की दुनिया, बहारों की दुनिया
ये रंगीन दिलकश नज़ारों की दुनिया


कहीं झूमते बादा ख़्वारों की दुनिया
कहीं चीखते ग़म के मारों की दुनिया
कहीं लीडरों - ताबेदारों की दुनिया
कहीं बेबसों की, लाचारों की दुनिया

कहीं फ़लसफ़ी के इदारों* की दुनिया     * Institutions
कहीं मज़हबों की दीवारों की दुनिया
मंदिर मसीत गुरुद्वारों की दुनिया
दिलों में गहरी दरारों की दुनिया

खलिहान दफ़्तर बाज़ारों की दुनिया
कहीं हुक्मरां-अहलकारों की दुनिया
अमीरे-शहर, ताजदारों की दुनिया
वो ऊँची मीनारों मज़ारों की दुनिया

कहीं संगदिल -और शरारों की दुनिया    Stone hearted - Like Fire
ऊँचे महल और चौबारों की दुनिया
कहीं सादा-लौह, नालाज़ारों की दुनिया     Simple, Crying with Sufferings
सड़क पे पड़े ख़ाकसारों की दुनिया


फ़रेबों की दुनिया - सराबों की दुनिया       Mirage, False hopes
ये झूठी अनाओं - वक़ारों* की दुनिया       (मान-मर्यादा) False ego & dignity
ये दुनिया फ़रेबी मक्कारों की दुनिया
ये दुनिया सय्यादों अय्यारों* की दुनिया   *Over clever people


                         ये दुनिया नहीं मेरी चाहत की दुनिया
                        ये दुनिया नहीं मेरी राहत की दुनिया

सुना है मगर इक मकां और भी है       Place
सूरत इक पिन्हाँ यहाँ और भी है           Hidden
ज़ाहिर के पीछे निहां और भी है
इस जहां से आगे जहां और भी है


सुना है वो दुनिया बहुत ही हसीं है
अर्श न फ़र्श - न फ़लक़ न ज़मीं है
न दीवारो दर है न ताला कहीं है
वो है खुशनसीब जो इस का मकीं है              Resident


नफरत न निंदा न कोई नुक्ताचीं है
कहाँ है वो दुनिया जो इतनी हसीं है ?


वो दुनिया कहीं आसमां पे नहीं है
वो दुनिया भी 'राजन यहीं है - यहीं है
                                   ' राजन सचदेव '

यथार्थ, सर्वमान्य अथवा सार्वभौमिक अनुभव ?

हम सभी जानकारियों से भरे इस नए युग मे जी रहे हैं  
जहाँ इंटरनेट, हर तरह की हर विषय की जानकारी से भरपूर है । 
जिसके कारण हमें यह आभास होता है कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं एवं सबके संपर्क में हैं। 
आज इतनी विशाल दुनियां भी छोटी और सिमटी हुई प्रतीत होती है।
हमें लगता है कि हम यह जानते हैं कि पूरी दुनिया भर में क्या हो रहा है। हर चीज़ और हर विषय की जानकारी हम कुछ ही क्षणों में इन्टरनेट से प्राप्त कर सकते हैं।  
पंरतु ध्यान से देखें तो यह भी समझ में आता है कि हर विषय पर उपलब्ध जानकारी बेशक विस्तृत तो है, लेकिन विसंगत भी है। 
प्राय यह तय करना अत्यंत कठिन हो जाता है कि क्या ठीक है और क्या गलत? कौन सही है और कौन गलत?
शायद, एक ही तर्कसंगत जानकारी जिसके  ऊपर हम निश्चयात्मक रुप से निर्भर रह सकते हैं, वह है - व्यक्तिगत अनुभव - हमारा अपना निजी अनुभव। 
किंतु यह भी समझने वाली बात है कि हर व्यक्ति का निजी अनुभव भी उसके स्वभाव एवं दृष्टिकोण - और पूर्वाग्रह अर्थात पुराने अनुभवों पर निर्भर करता है। हम संसार की हर वस्तु को अपने अपने ढंग से देखने और समझने की कोशिश करते हैं। हर इंसान के पास दुनियां को देखने का अपना ही एक निराला ढंग होता है। 
इसलिए दुनियां में घटने वाली प्रत्येक घटना - प्रत्येक प्रसंग का अनुभव भी हर प्राणी का अलग अलग हो सकता है।
यहां तक कि एक ही व्यक्ति का एक ही प्रकार की घटना का अनुभव, परिस्थिति के बदलने के साथ भी बदल सकता है।
इसलिए सोचने वाली बात यह है कि क्या किसी एक व्यक्ति का, किसी घटना या किसी व्यक्ति के बारे में किया हुआ वैयक्तिक, निजी अनुभव सच्चा-सर्वसम्मत - सर्वमान्य अनुभव कहा जा सकता है?
यदि दूसरे का अनुभव पहले व्यक्ति के अनुभव से भिन्न हो तो उसे सार्वभौमिक अनुभव कैसे कहा जा सकता है?
क्या सच में कुछ ऐसा है जिसे यथार्थ - सर्वमान्य एवं सार्वभौमिक अनुभव कहाँ जा सके?
ये संभव नहीं है। 
एक ही परिस्थिति होते हुए भी सब का अनुभव हमेशा एक जैसा नहीं हो सकता।  
इसलिए दूसरों के अनुभव को गलत सिद्ध करने की कोशिश करते हुए अपने अनुभव को उन पर थोपना अच्छा नहीं होता। 
                                                  ' राजन सचदेव '

Tuesday, July 28, 2020

The True Universal Experience?

We live in the information age.
Net is overloaded with all kinds of information on every topic, every subject. 
We feel that people are connected - that the world has become smaller. 
We think that everyone knows what is happening everywhere else in the world. 
But then again, there is so much different and contradictory information available on every subject, that it is hard to know what is right and what is wrong - or who is right and who is wrong.
The only valid information we may rely upon might be our own personal experience. 
But then again - our personal experiences also depend on our own observations and perceptions of the events - by comparing them with our previous experiences. 
We all have different choices and different ways of looking at things. Therefore, every incidence could be perceived and experienced differently by each individual. 
In fact, a person may even experience the same incidence differently under different circumstances.
Can someone's personal experience about something or some person really be called a universal True-Experience?

Is there really such a thing that can be called a universal True-Experience?
                                                ' Rajan Sachdeva '

Sunday, July 26, 2020

विचार भी बंधन का कारण हैं

कर्म की तरह विचार भी बंधन का कारण हैं।  

जब तक हम किसी भी विचार से बंधे रहते हैं, या किसी विचारधारा से जुड़े रहते हैं, तो सीमित होते  हैं। 
जब मन में कोई भी विचार न हो - अगर हम निर्विचार हो जाएँ - तो असीम हो जायेंगे। 

विचार से ही तो कर्म पैदा होता है। पहले मन में विचार उत्पन होता है फिर वह कर्म का रुप लेता है।   
विचार चाहे कोई भी हो, अच्छा या बुरा - बाँध लेता है।  

जैसे एक शांत निर्मल सरोवर में हम चाहे एक पत्थर का टुकड़ा फेंकें या सोने का टुकड़ा, दोनों से ही उस सरोवर में लहरें उठने लगेंगी। 
और टुकड़ा जितना बड़ा और भारी होगा उतनी ही गहरी लहरें उत्पन होंगी। उतनी ही ऊपर उठेंगी और उतनी ही देर तक रहेंगी। 
अब वो टुकड़ा चाहे पत्थर का हो या चांदी का या सोने का उससे क्या फर्क पड़ेगा ?

मन रुपी सरोवर भी यदि निर्विचार हो, तभी पूर्ण रुप से शान्त और निर्मल हो सकता है। 

लेकिन निर्विचार होना यदि असम्भव नहीं तो अत्यन्त कठिन तो अवश्य ही है।
बहुत मुश्किल है कि मन में कोई भी विचार न उठे - निर्विचार हो जाए। 
लेकिन इन्हें कम करने की कोशिश तो की ही जा सकती है। 

अभ्यास के साथ, धीरे धीरे मन को कुछ देर के लिए तो मौन किया ही जा सकता है।  

और सब से ज़्यादा ज़रुरी बात ये है, कि यदि विचार से छुटकारा नहीं हो सकता तो इतना ध्यान तो रहे कि कहीं हम किसी पुराने या निरर्थक विचार के साथ बंधे न रह जाएं। 
मन की खिड़कियाँ एवं दरवाजे खुले रखें ताकि ताज़ी हवा की तरह - नए और ताजे विचार मन में प्रवेश कर सकें।
                                               ' राजन सचदेव '

Thoughts can also become the cause of bondage

Just like the actions, our thoughts can also become the cause of our bondage.
For all the time that we keep ourselves restricted to thoughts, concepts, or rigid ideologies, we keep limiting ourselves for that long.
And the moment mind is devoid of thoughts or becomes thoughtless, that's when one becomes infinite.

The mind is the breeding ground for thoughts, and thoughts, in turn, are the breeding ground for actions (Karma). 

If thought is the cause, then actions are the effect.
Whatever may be the thought, good or bad, it keeps us bonded/entangled.
In a calm and immaculate lake, if we throw a stone or a piece of gold, it is bound to create ripples. Larger the stone or piece of gold, the larger will be the magnitude and intensity of the ripples. 
The quality of the thing is immaterial - whether it is a stone or a piece of silver or gold. 
Similarly, every thought also has its effects on the mind.
If the mind is devoid of thoughts, then only it can stay absolutely calm and immaculate. 
But it is extremely difficult - if not impossible - to stay aloof of a single thought or become completely thoughtless. 
However, one can try to reduce the flux of thoughts - slowly and steadily with practice.
What is more important is - that if we cannot restrain or get rid of all thoughts completely, then we must at least try not to fall prey and stay bonded to any basic irrelevant futile thoughts. 
Therefore, the most significant point to be borne in mind is that one needs to keep the doors and windows of our minds open for the advanced and fresh thoughts to seep into our minds.
                                               ' Rajan Sachdeva '

Thursday, July 23, 2020

समाज को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए ?

एक सज्जन ने किसी विद्वान से पूछा कि समाज को आगे बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए ?
विद्वान ने बहुत सीधा और सरल जवाब दिया कि -
टांग के बदले लोगों के हाथ खींचो - समाज स्वयं ही आगे बढ़ने लगेगा।     

अक़्सर मन में दबी हुई ईर्ष्या की भावना के कारण हम किसी को आगे बढ़ता देख नहीं पाते - इसलिए किसी न किसी प्रकार से उन्हें आगे बढ़ने से रोकने का प्रयत्न करते हैं - उन्हें अपने नीचे दबा कर रखने का कोई न कोई तरीक़ा ढूंढ़ते रहते हैं।  

समाज को ऊँचा उठाने के लिए समाज के हर व्यक्ति को व्यक्तिगत तौर पर ऊँचा उठाना आवश्यक है। 
समाज लोगों से मिल कर बनता है - समाज अपने आप में कुछ नहीं है - यह व्यक्तियों के - लोगों के समूह का नाम है।  
लोगों के बिना समाज का अपना कोई आस्तित्व नहीं होता 
इसलिए व्यक्तिगत रुप से लोगों को ऊपर उठाए बिना समाज को आगे ले जाना अथवा ऊपर उठाना असंभव है। 

समाज का भला करना है तो लोगों की टांग खींच कर उन्हें नीचे दबा कर रखने की जगह उनके हाथ पकड़ कर उन्हें ऊपर उठाएं या उन्हें और ऊँचा उठने में उनकी सहायता करें। अन्यथा हमारा समाज भी उत्थान की जगह पतन की ओर ही अग्रसर होता रहेगा। 
                             ' राजन सचदेव ' 

What should we do to uplift society?

Someone asked a wise man:
What should we do to uplift our society? 
The wise man replied: 
Hold people's hands to lift them up - instead of pulling their legs to hold them down. 

Often, because of the feeling of jealousy buried in our minds, we cannot see others rising up - so in some way or the other, we try to stop them from moving forward. We keep on looking for new ways to keep them under us. 

However, to elevate a society, it is essential to uplift every person individually. 
Society is made up of people.
Society is nothing in itself - it is the name of a group of people.
Without people, society has no existence of its own.

Therefore, it is impossible to move forward or uplift any society without uplifting its people on their personal level. 
If the society is to be improved, instead of pulling the legs of the people - its members and workers - and holding them down, lift them up by holding their hands - and help them to rise even further higher. 
Otherwise, our society will also be moving towards decline instead of upliftment.
                               'Rajan Sachdeva'

Wednesday, July 22, 2020

शून्यता - The Emptiness

अगर बीच में शून्यता ना हो, तो अक्षर नहीं बन सकते । 
यदि अक्षरों के बीच शून्यता ना हो, तो शब्द नहीं बन सकते। 
अगर शब्दों के बीच शून्यता  ना हो, तो वाक्य नहीं बन सकते। 

केवल दीवारों और छत के होने से ही मकान नहीं बन जाता -
दो चार दीवारों को एकसाथ जोड़ कर उस पर छत डाल दें तो वो मकान नहीं कहलाता न ही रहने के क़ाबिल हो सकता है। 
एक मकान में रहने के लिए शून्यता या यूँ कहें कि खाली जगह का होना भी ज़रुरी है । 

इसी प्रकार हम देखते हैं कि संसार की हर दो चीज़ों के बीच शून्यता छुपी हुई है। 
हमारे चलने फिरने के लिए भी आस पास खाली जगह का होना आवश्यक है। 
जितनी ज़्यादा खाली जगह होगी हम उतना ही ज़्यादा दूर सफर तय कर पाएंगे।

ध्यान से विचार करने पर हमें ये पता चलेगा कि हमारे मन के आवारा विचारों के बीच में भी शून्यता होती है। 
और जितने ज़्यादा लम्बे समय के लिए ये शून्यता रहती है, हम उतना अधिक शांत और आनंदित महसूस करते है। 

इस मन की शून्यता के प्रति और इस शून्यता में जागृत रहकर जीने को ही निराकार ईश्वर की अनुभूति में जीना कहा जाता है। 
हमें निरंतर इस निराकार ईश्वर की अनुभूति में जीने का अभ्यास करते रहना चाहिए ताकि मन में शांति बनी रहे। 

                                                       ' राजन सचदेव ' 

The Emptiness

The letters cannot be formed if there is no void in the middle.
Words cannot be formed if there is no void between the letters.
If there is no emptiness between words, then sentences cannot be formed.
Mere walls and roofs do not make a house.
If you put two or four walls together and put a roof over it, then it can not be called a house.
To live in a house, it is also essential to have some emptiness in it.

Similarly, we see that there is emptiness - nothingness in between every two things in the world.
It is necessary to have empty space around, for us to walk or even to live.
The more space we have, the more we will be able to travel the farther.

After careful observation, we will come to know that usually there is a gap - some nothingness, even between the two thoughts in our minds.
And the longer this gap - this emptiness lasts, the more calm, peaceful,  and joyful we feel.

Therefore, to live in peace - we should keep practicing to spend more time in this state of emptiness of the mind - and to remain awake in this state of nothingness is called “Realization or Gyan and it’s perpetual awareness. 
                                              'Rajan Sachdeva '

Tuesday, July 21, 2020

The road is never straight

The road is never straight - it usually has many turns and bumps. 
By using the steering wheel, we turn our vehicle according to the road and reach our destination.  
Similarly, there are many diversions and ups and downs in everyone's life. 
However, by firmly holding the steering wheel of Gyana - taught by the Sadguru - by meditating and doing Sumiran of Almighty Nirankar according to the Gyan we received, we can reach our destination - our goal to attain Moksha.
                                              Courtesy of Bachitar Pal Singh ji
                                                                        (Kathua - J&K)

सड़क कभी सीधी नहीं होती

सड़क कभी भी बिल्कुल सीधी नहीं होती, उसमें कई मोड़ होते हैं|
परन्तु गाड़ी के स्टेयरिंग का इस्तेमाल करके हम सड़क के अनुसार मुड़ जाते हैं व अपनी मंजिल पर पहुँच जाते हैं|

इसी तरह जिंदगी में भी मोड़ हैं, उतार-चड़ाव हैं|
सद्गुरु के दिए हुए ग्यान रुपी स्टीयरिंग को थामे हुए -- 

जो ज्ञान मिला है उसके अनुसार ध्यान और सुमिरन करते हुए हम अपने जीवन की मंजिल प्राप्त कर सकते हैं|
                           
 (बचित्र पाल जी कठुआ - जे & के - के सौजन्य से)

Monday, July 20, 2020

Spent whole life searching for the keys

Spent whole life searching for the keys -
And finally, it turned out that the house of God is always open.
There is no lock ever !!!

But alas! 
We never tried to look towards that way and kept on searching everywhere for the key.

Never thought that the God who is all-pervading -
That if there is no empty place without Him - 
Then where will the door and lock be - and how?
                                            ' Rajan Sachdeva '

पूरी ज़िंदगी लगा दी चाबी खोजने में

पूरी ज़िंदगी लगा दी चाबी खोजने में
और अंत में ये पता चला -
कि परमात्मा का घर तो हमेशा ही खुला रहता है 
वहां कभी कोई ताला लगा ही नहीं !!!

लेकिन अफ़सोस - 
कि हमने कभी उस तरफ देखने की कोशिश ही नहीं की 
और इधर उधर चाबी ढूंडने में ही लगे रहे। 

कभी ये सोचा ही नहीं कि जो ईश्वर सर्व-व्यापक है - 
कोई जगह जिस से ख़ाली है ही नहीं 
तो भला दरवाजा और ताला कहाँ - और कैसे होगा ?

Thursday, July 16, 2020

Let your Light Shine

Let your light shine so brightly that others can see their way out of the dark.
Share what you know - so others can learn and benefit from your knowledge and experience.
Just as a candle does not lose its light by lighting another candle, you don't lose your knowledge by sharing it with others. 
In fact, the more you share, the more knowledge you gain.
Because firstly, it makes you think again - to verify it thoroughly before you teach - and secondly, others may add more to your knowledge from what they know - from their personal experience. 
So - don't be afraid - share what you know generously and freely. 
It will make your life more meaningful.
                                   ' Rajan Sachdeva '

Wednesday, July 15, 2020

सीख ले दरख़्तों से हुनर Seekh lay darakhton say hunar

सीख ले दरख़्तों से हुनर रिश्तों का ऐ इंसान 
जड़ों में ज़ख्म होते हैं - टहनियां सूख जाती हैं 

Seekh lay darakhton say hunar rishton ka ae insaan
Jadon me zakhm hotay hain - tehniyaan sookh jaati hain 

Tuesday, July 14, 2020

Oye bhi chandan hoy rahay - basay jo chandan paas

        Kabeer chandan ka birvaa bhalaa, bedheyo dhaak plaas
        Oye bhi chandan hoy rahay - basay jo chandan paas
                                                               
While describing the greatness of Satsang, Sant Kabir Ji says: 
The plants and trees growing near a sandalwood tree acquire the fragrance of sandalwood and get sold at the same price as sandalwood. In the same way, those keeping the company of saints, also start acquiring saintly qualities and become like those saints. 

However, to imbibe the saintly qualities, it's essential that they have a pure heart that is free of the ego!!" 

         "Kabeer baans badaayi boodeya - eyon mat boodhahu koy
            Chandan kai nikatay basay - baans sugandhi na hot "

Bamboo does not acquire the fragrance of sandalwood despite growing around a sandalwood tree.
Firstly - the way it grows, always straight, as if full of ego - it may break but never bends - and secondly because it has knots in it, it does not allow the fragrance of sandalwood to permeate itself.
Therefore, sandalwood has no impact on Bamboo!! 

Similarly, the one who is full of ego - who is self-absorbed and has knots of jealousy and hatred in his heart - who has turned heartless under the influence of ego - despite being in the company of saints is incapable of acquiring any saintly qualities. 
Ego is the biggest roadblock on the path of Spirituality !!
                                            ' Rajan Sachdeva '

ओय भी चंदनु होइ रहे बसे जु चंदन पासि

                   कबीर चंदन का बिरवा भला - बेड़ियो ढाक पलास
                          ओइ भी चंदनु होइ रहे बसे जु चंदन पासि
                                                          संत कबीर जी

संगत की महानता का वर्णन करते हुए गुरु कबीर जी कहते हैं कि जिस तरह चंदन के पेड़ के आस पास उगने वाले पेड़ों में भी चंदन की सुगंधि चली जाती है - वो भी उस सुगंध से भर जाते हैं और चंदन के ही भाव बिकते हैं।

उसी तरह संतों का संग करने वालों में भी संतों जैसे गुण आने लगते हैं - वो भी संत बन जाते हैं।
लेकिन संतों जैसे गुण अपनाने के लिए मन का निर्मल और अभिमान रहित होना ज़रुरी है। 


                         कबीर बांसु बडाई बूडिआ इउ मत बूड़हु कोय
                              चंदन कै निकटे बसै बांसु सुगंधु न होय

जैसे बांस चंदन के निकट रह कर भी उसकी सुगंध ग्रहण नहीं कर सकता। उसमें चंदन की सुगंध प्रवेश नहीं कर सकती। क्योंकि एक तो वो सीधा अर्थात अकड़ में रहता है - टूट जाता है मगर झुकता नहीं और दूसरा उस में गांठें होती हैं - इसलिए चंदन के निकट रह कर भी बांस उसकी सुगंध ग्रहण नहीं करता। उसमें चंदन की सुगंध प्रवेश नहीं कर सकती। उसके ऊपर इसका तनिक भी असर नहीं पड़ता।

इसी प्रकार जो अभिमान में - अकड़ में रहता है और जिस के मन में द्वेष की गांठें हैं - जिसके मन में अपने बड़प्पन का मान भरा हुआ है - जिसका मन अभिमान के कारण कठोर हो चुका है वो बांस की तरह संतों के निकट रह कर भी उनकी सुगंध - उनके गुण ग्रहण नहीं कर सकता।
अध्यात्म के मार्ग में अहंकार सबसे बड़ी बाधा है।
                                                        ' राजन सचदेव '


Monday, July 13, 2020

Fight the Darkness

To fight the darkness 
               do not draw your sword
                                                   Light a candle
                                        'Zarathustra'

Thursday, July 9, 2020

What is Parmaarth

Vriksh kabahun na phal bhakhen - Nadi na sanchay neer
Parmaarth kay kaarnay - Saadhun dharaa shreer 
                                                   'Kabeer Ji'

Meaning:
Trees never eat their own fruits or flowers.
Rivers never save the water of their flowing stream for themselves - they do not drink their own water.
Similarly, The Sadhus - the great people live for others - not just for themselves. 

According to Kabir ji, Paramarth means Tyaag - sacrifice.
A Saadhu is one who is blessed with this quality.

The scriptures refer to human life as Karma-Yoni (Rationally Active life form) - not a Bhog-Yoni (Based on Instinctive Action and reaction). 
Apart from human beings, all animals and birds, etc., are known as Bhog-Yoni. They do not have the faculty of logical thinking - they can neither uplift themselves nor others.
Like humans - animals, birds, and other creatures cannot make any new invention - cannot create any better means to improve their life. 
Only humans have got this gift - skill and ability.

Therefore - Kabir ji says that after attaining human life, one should help and serve the poor, needy, and oppressed. 
This is the quality of Saints and Sages.

However, the Saints and Mahatmas of today collect money from poor followers and build big palaces for themselves, and are seen traveling in high-priced, expensive cars. 
Today our mindset is limited to material wealth, selfish motives, and sensual pleasures only.

Rahim, a famous Hindi poet said:
             Jyon jal baadhay naav may - Ghar may baadhay daam 
                    Dono haath uleechiye yahi Sajjan kau kaam 

If the water comes in the boat - and if one gets too much money - (more than enough for his needs) - Then emptying the boat - giving the excessive amount to the needy, is what the great and wise people do. 


One does not become good just by reading, listening, or speaking about good things. 
Human life should not be limited only to the upbringing of oneself and one's family. Helping the needy according to one's ability and capacity - contributing to charity - social and ethical works is called humanity.
                                                        'Rajan Sachdev'

वृक्ष कबहुँ न फल भखै - नदी न संचय नीर

                      वृक्ष कबहुँ न फल भखै, नदी न संचय नीर
                         परमार्थ के कारने साधुन धरा शरीर
                                                                     कबीर जी 

अर्थात:  वृक्ष कभी अपने फल फूल इत्यादि स्वयं नहीं खाते
नदियाँ कभी अपनी बहती धारा का जल अपने लिए बचा कर नहीं रखतीं - अपना जल स्वयं नहीं पीतीं 

कबीर जी के अनुसार परमार्थ का अर्थ है  - त्याग 
साधू वही है जो इन गुणों से परिभूषित हो। 

शास्त्रों में मानव जीवन को कर्म योनि कहा गया है - भोग योनि नहीं। 
मानव के अतिरिक्त सभी जीव - अर्थात पशु पक्षी इत्यादि भोग योनि कहलाते हैं। 
वे न तो अपना उद्धार अथवा उत्थान कर सकते हैं और न ही दूसरों का।
इंसान की तरह पशु पक्षी इत्यादि जीव अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कोई साधन - कोई नया आविष्कार नहीं कर सकते। 
यह कला एवं सामर्थ्य केवल मानव को मिली है।  
इसलिए - कबीर जी कहते हैं कि मानव जीवन पाकर अधिक से अधिक परमार्थ के कार्य, दीन दुखियों की सहायता और सेवा करनी चाहिए। यही साधू अर्थात सज्जन पुरुषों का काम है। 
दुर्भाग्य से आज के साधू संत एवं महात्मा लोग ग़रीबों से धन इकठ्ठा कर के अपने लिए बड़े बड़े महल बनवा लेते हैं और ग़रीबों से लिए हुए धन से खरीदी हुई अत्यंत महँगी कारों में घूमते दिखाई देते हैं। 
रहीम का कथन है -
           ज्यों जल बाढ़े नाव में - घर में बाढ़े दाम 
          दोनों हाथ उलीचिए यही सज्जन कौ काम 

आज हमारी मानसिकता निजस्वार्थ और भौतिक धनभोग एवं इन्द्रिय-सुख तक ही सीमित हो चुकी है। 
केवल अच्छा पढ़ने, सुनने अथवा कहने से ही कोई अच्छा नहीं बन जाता। मानव जीवन केवल अपने और अपने घर-परिवार के पालन पोषण तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। अपनी क्षमता व सामर्थ्य के अनुसार ज़रुरतमंदों की मदद करना - समाजिक व नैतिक कार्यों में योगदान देना ही मानवता कहलाता है। 
                                                        ' राजन सचदेव '

Sunday, July 5, 2020

Guru Poornima





 To all my Gurus 
Who taught me to be what I am

'Rajan Sachdeva'

Saturday, July 4, 2020

Art of Life

Sukh and Dukh - Happiness and Sadness - Gain and loss-
Favorable and unfavorable circumstances are Part of Life. 

But not getting overwhelmed in any situation is Art of Life.

In the Bhagavad Geeta, Lord Krishna says -

Duḥkheṣhu-Anudvigna-Manāḥ Sukheṣhu Vigata-Spṛihaḥ
Veeta-Raaga-Bhaya-Krodhaḥ  Sthita-Dheer Munir-uchyate

'One whose mind remains undisturbed amidst misery, or pleasure -
The one who is free from attachment, fear, and anger -
is called a sage with steadfast wisdom.
                                           (Bhagavad Geeta - Chapter 2 verse 56)

For such a person, life becomes a celebration.
He knows the art of living - peacefully.
                                     ' Rajan Sachdeva '

Friday, July 3, 2020

Most Important Place to Clean

Keeping the body, house, workplace, and the place of worship neat and clean is necessary - 
but the most important - most conspicuous places to keep clean and uncluttered are mind and intellect.
The intellect, based upon false information rather than on the facts, clutters our judgments. 
The imaginary - irrational concepts stored in our minds since childhood blinds our vision, and do not allow us to see the truth. 
Therefore, it's essential to clean our minds of any irrational concepts and gain proper knowledge based on the facts and commonsense to grow and progress in any field - may it be science or spirituality. 
                                                ' Rajan Sachdeva '

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...