कर्म की तरह विचार भी बंधन का कारण हैं।
जब तक हम किसी भी विचार से बंधे रहते हैं, या किसी विचारधारा से जुड़े रहते हैं, तो सीमित होते हैं।
जब मन में कोई भी विचार न हो - अगर हम निर्विचार हो जाएँ - तो असीम हो जायेंगे।
विचार से ही तो कर्म पैदा होता है। पहले मन में विचार उत्पन होता है फिर वह कर्म का रुप लेता है।
विचार चाहे कोई भी हो, अच्छा या बुरा - बाँध लेता है।
जैसे एक शांत निर्मल सरोवर में हम चाहे एक पत्थर का टुकड़ा फेंकें या सोने का टुकड़ा, दोनों से ही उस सरोवर में लहरें उठने लगेंगी।
और टुकड़ा जितना बड़ा और भारी होगा उतनी ही गहरी लहरें उत्पन होंगी। उतनी ही ऊपर उठेंगी और उतनी ही देर तक रहेंगी।
अब वो टुकड़ा चाहे पत्थर का हो या चांदी का या सोने का उससे क्या फर्क पड़ेगा ?
मन रुपी सरोवर भी यदि निर्विचार हो, तभी पूर्ण रुप से शान्त और निर्मल हो सकता है।
लेकिन निर्विचार होना यदि असम्भव नहीं तो अत्यन्त कठिन तो अवश्य ही है।
बहुत मुश्किल है कि मन में कोई भी विचार न उठे - निर्विचार हो जाए।
लेकिन इन्हें कम करने की कोशिश तो की ही जा सकती है।
अभ्यास के साथ, धीरे धीरे मन को कुछ देर के लिए तो मौन किया ही जा सकता है।
और सब से ज़्यादा ज़रुरी बात ये है, कि यदि विचार से छुटकारा नहीं हो सकता तो इतना ध्यान तो रहे कि कहीं हम किसी पुराने या निरर्थक विचार के साथ बंधे न रह जाएं।
मन की खिड़कियाँ एवं दरवाजे खुले रखें ताकि ताज़ी हवा की तरह - नए और ताजे विचार मन में प्रवेश कर सकें।
' राजन सचदेव '
जब तक हम किसी भी विचार से बंधे रहते हैं, या किसी विचारधारा से जुड़े रहते हैं, तो सीमित होते हैं।
जब मन में कोई भी विचार न हो - अगर हम निर्विचार हो जाएँ - तो असीम हो जायेंगे।
विचार से ही तो कर्म पैदा होता है। पहले मन में विचार उत्पन होता है फिर वह कर्म का रुप लेता है।
विचार चाहे कोई भी हो, अच्छा या बुरा - बाँध लेता है।
जैसे एक शांत निर्मल सरोवर में हम चाहे एक पत्थर का टुकड़ा फेंकें या सोने का टुकड़ा, दोनों से ही उस सरोवर में लहरें उठने लगेंगी।
और टुकड़ा जितना बड़ा और भारी होगा उतनी ही गहरी लहरें उत्पन होंगी। उतनी ही ऊपर उठेंगी और उतनी ही देर तक रहेंगी।
अब वो टुकड़ा चाहे पत्थर का हो या चांदी का या सोने का उससे क्या फर्क पड़ेगा ?
मन रुपी सरोवर भी यदि निर्विचार हो, तभी पूर्ण रुप से शान्त और निर्मल हो सकता है।
लेकिन निर्विचार होना यदि असम्भव नहीं तो अत्यन्त कठिन तो अवश्य ही है।
बहुत मुश्किल है कि मन में कोई भी विचार न उठे - निर्विचार हो जाए।
लेकिन इन्हें कम करने की कोशिश तो की ही जा सकती है।
अभ्यास के साथ, धीरे धीरे मन को कुछ देर के लिए तो मौन किया ही जा सकता है।
और सब से ज़्यादा ज़रुरी बात ये है, कि यदि विचार से छुटकारा नहीं हो सकता तो इतना ध्यान तो रहे कि कहीं हम किसी पुराने या निरर्थक विचार के साथ बंधे न रह जाएं।
मन की खिड़कियाँ एवं दरवाजे खुले रखें ताकि ताज़ी हवा की तरह - नए और ताजे विचार मन में प्रवेश कर सकें।
' राजन सचदेव '
🙏🙏🙏
ReplyDeleteआपके भाव पढ़कर निर्विचार होने का विचार बन रहा है 🙏🙏🙏🍁
ReplyDelete🍁....
Thanks A lot ji. Let me practice to leave atleast old thoughts. Also request to pl correct me if I m wrong. Satguru is always nirvichar ie Aseem.
ReplyDeleteAbsolutely correct ji.
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