हम सभी जानकारियों से भरे इस नए युग मे जी रहे हैं
जहाँ इंटरनेट, हर तरह की हर विषय की जानकारी से भरपूर है ।
जिसके कारण हमें यह आभास होता है कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं एवं सबके संपर्क में हैं।
आज इतनी विशाल दुनियां भी छोटी और सिमटी हुई प्रतीत होती है।
हमें लगता है कि हम यह जानते हैं कि पूरी दुनिया भर में क्या हो रहा है। हर चीज़ और हर विषय की जानकारी हम कुछ ही क्षणों में इन्टरनेट से प्राप्त कर सकते हैं।
पंरतु ध्यान से देखें तो यह भी समझ में आता है कि हर विषय पर उपलब्ध जानकारी बेशक विस्तृत तो है, लेकिन विसंगत भी है।
प्राय यह तय करना अत्यंत कठिन हो जाता है कि क्या ठीक है और क्या गलत? कौन सही है और कौन गलत?
शायद, एक ही तर्कसंगत जानकारी जिसके ऊपर हम निश्चयात्मक रुप से निर्भर रह सकते हैं, वह है - व्यक्तिगत अनुभव - हमारा अपना निजी अनुभव।
किंतु यह भी समझने वाली बात है कि हर व्यक्ति का निजी अनुभव भी उसके स्वभाव एवं दृष्टिकोण - और पूर्वाग्रह अर्थात पुराने अनुभवों पर निर्भर करता है। हम संसार की हर वस्तु को अपने अपने ढंग से देखने और समझने की कोशिश करते हैं। हर इंसान के पास दुनियां को देखने का अपना ही एक निराला ढंग होता है।
इसलिए दुनियां में घटने वाली प्रत्येक घटना - प्रत्येक प्रसंग का अनुभव भी हर प्राणी का अलग अलग हो सकता है।
यहां तक कि एक ही व्यक्ति का एक ही प्रकार की घटना का अनुभव, परिस्थिति के बदलने के साथ भी बदल सकता है।
इसलिए सोचने वाली बात यह है कि क्या किसी एक व्यक्ति का, किसी घटना या किसी व्यक्ति के बारे में किया हुआ वैयक्तिक, निजी अनुभव सच्चा-सर्वसम्मत - सर्वमान्य अनुभव कहा जा सकता है?
यदि दूसरे का अनुभव पहले व्यक्ति के अनुभव से भिन्न हो तो उसे सार्वभौमिक अनुभव कैसे कहा जा सकता है?
क्या सच में कुछ ऐसा है जिसे यथार्थ - सर्वमान्य एवं सार्वभौमिक अनुभव कहाँ जा सके?
ये संभव नहीं है।
एक ही परिस्थिति होते हुए भी सब का अनुभव हमेशा एक जैसा नहीं हो सकता।
इसलिए दूसरों के अनुभव को गलत सिद्ध करने की कोशिश करते हुए अपने अनुभव को उन पर थोपना अच्छा नहीं होता।
' राजन सचदेव '
जहाँ इंटरनेट, हर तरह की हर विषय की जानकारी से भरपूर है ।
जिसके कारण हमें यह आभास होता है कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं एवं सबके संपर्क में हैं।
आज इतनी विशाल दुनियां भी छोटी और सिमटी हुई प्रतीत होती है।
हमें लगता है कि हम यह जानते हैं कि पूरी दुनिया भर में क्या हो रहा है। हर चीज़ और हर विषय की जानकारी हम कुछ ही क्षणों में इन्टरनेट से प्राप्त कर सकते हैं।
पंरतु ध्यान से देखें तो यह भी समझ में आता है कि हर विषय पर उपलब्ध जानकारी बेशक विस्तृत तो है, लेकिन विसंगत भी है।
प्राय यह तय करना अत्यंत कठिन हो जाता है कि क्या ठीक है और क्या गलत? कौन सही है और कौन गलत?
शायद, एक ही तर्कसंगत जानकारी जिसके ऊपर हम निश्चयात्मक रुप से निर्भर रह सकते हैं, वह है - व्यक्तिगत अनुभव - हमारा अपना निजी अनुभव।
किंतु यह भी समझने वाली बात है कि हर व्यक्ति का निजी अनुभव भी उसके स्वभाव एवं दृष्टिकोण - और पूर्वाग्रह अर्थात पुराने अनुभवों पर निर्भर करता है। हम संसार की हर वस्तु को अपने अपने ढंग से देखने और समझने की कोशिश करते हैं। हर इंसान के पास दुनियां को देखने का अपना ही एक निराला ढंग होता है।
इसलिए दुनियां में घटने वाली प्रत्येक घटना - प्रत्येक प्रसंग का अनुभव भी हर प्राणी का अलग अलग हो सकता है।
यहां तक कि एक ही व्यक्ति का एक ही प्रकार की घटना का अनुभव, परिस्थिति के बदलने के साथ भी बदल सकता है।
इसलिए सोचने वाली बात यह है कि क्या किसी एक व्यक्ति का, किसी घटना या किसी व्यक्ति के बारे में किया हुआ वैयक्तिक, निजी अनुभव सच्चा-सर्वसम्मत - सर्वमान्य अनुभव कहा जा सकता है?
यदि दूसरे का अनुभव पहले व्यक्ति के अनुभव से भिन्न हो तो उसे सार्वभौमिक अनुभव कैसे कहा जा सकता है?
क्या सच में कुछ ऐसा है जिसे यथार्थ - सर्वमान्य एवं सार्वभौमिक अनुभव कहाँ जा सके?
ये संभव नहीं है।
एक ही परिस्थिति होते हुए भी सब का अनुभव हमेशा एक जैसा नहीं हो सकता।
इसलिए दूसरों के अनुभव को गलत सिद्ध करने की कोशिश करते हुए अपने अनुभव को उन पर थोपना अच्छा नहीं होता।
' राजन सचदेव '
Satbachan ji
ReplyDeleteVery much true sir
ReplyDeleteDhan Nirankar.
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏🙏