हम जीवन में बहुत सी बातें सुनते हैं -
लेकिन हम उन्हें वैसे नहीं सुनते जैसे वे वास्तविकता में होती हैं —
हम वो सुनते हैं जैसे हम हैं - या जो हम सुनना चाहते हैं ।
हर शब्द हमारी अपनी धारणा और हमारी समझ से छनकर आता है।
हम जो भी सुनते हैं उसे अपनी धारणा, अपनी समझ और अपनी उस समय की मनःस्थिति के अनुसार उसका अर्थ निकाल कर उसकी व्याख्या करते हैं।
उदाहरण के तौर पर भगवद् गीता में भगवान कृष्ण के उपदेश को ही ले लें।
इसे तीन लोगों ने - अर्जुन, धृतराष्ट्र और संजय ने सुना।
संवाद के अंत में अर्जुन ने प्रणाम किया और कहा:
नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत |
स्थितोऽस्मि गतसन्देह: करिष्ये वचनं तव ||
(भगवद् गीता अध्याय 18 - श्लोक 73)
हे अच्युत - हे कृष्ण - आपकी कृपा से मेरा मोह दूर हो गया है, मुझे ज्ञान की उपलब्धि हो गई है।
अब मैं ज्ञान में स्थित और संशय मुक्त हूँ। और आपके वचनानुसार ही कार्य करुंगा।
लेकिन धृतराष्ट्र की सोच कुछ और थी।
उसकी सोच अर्जुन की सोच से अलग थी।
उसने सोचा कि अर्जुन तो युद्ध न करने और हार मानने को तैयार था लेकिन कृष्ण ने चालाकी से उसे युद्ध के लिए राजी कर लिया।
और तीसरा संजय -
उस ने गीता का उपदेश - कृष्ण और अर्जुन का सारा वार्तालाप धृतराष्ट्र को सुनाया -
लेकिन वह स्वयं उससे अछूता - अविचलित और अप्रभावित रहा।
उसे कुछ भी छू नहीं पाया - उसके लिए कुछ भी नहीं बदला।
शब्द वही थे - संदेश भी वही था
लेकिन फिर भी तीन अलग अलग परिणाम।
एक के लिए कृष्ण मुक्तिदाता थे।
दूसरे के लिए वे चालाक नीतिवान थे।
और तीसरे को कोई भी फर्क नहीं पड़ा।
इससे पता चलता है कि ज्ञान की समझ और उपयोगिता प्राप्तकर्ता पर निर्भर करती है।
ज्ञान की शक्ति केवल शब्दों में नहीं, बल्कि इसे ग्रहण करने वाले के हृदय और मन में निहित है।
यही ज्ञान का वास्तविक स्वरुप है।
ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है कि ज्ञान को कैसे समझा और प्रयोग किया जाता है।
जीवन में ज्ञान का अर्थ और उपयोगिता पूरी तरह से श्रोता या प्राप्तकर्ता की धारणा, समझ और मनःस्थिति पर निर्भर करती है।
" राजन सचदेव "
"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"
ReplyDelete100%agree
ReplyDeleteबहुत सुंदर और वास्तविकता
ReplyDeleteIt is like water in a receptacle. It will take the form of the vessel. 🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteThanks Uncle Ji for analysis
ReplyDelete🙏
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