दुश्मनों की झोली में भी फूल भर के देख
मिलते नहीं हैं मोती किनारे पे बैठ कर
ऐ दिल समंदरों में तू गहरे उतर के देख
मायूस न हो इस क़दर काँटों को देख कर
खिलते हुए ये फूल भी तो रहगुज़र के देख
मंज़िल भी मिल जाएगी, तू बेसबर न हो
ऐ दिल ज़रा अभी तो नज़ारे सफर के देख
राह में क़ुदरत के नज़ारे ठहर के देख
ये रंग बदलते हुए शामो सहर के देख
मौसमे ग़ुल में कभी कलियों को खिलते देख
ये हुस्ने माहताब - ये जलवे अबर के देख
तूफानों में सम्भलना भी इन से सीख ले
ये दूब की हलीमी, हौसले शजर के देख
है मुख़तलिफ़ एहसास का मजमूआ ज़िंदगी
है वस्ल की ख़ुशी तो कभी ग़म हिजर के देख
दुनिया सुधारने की फिक्र छोड़ दे यारा
दुनिया भी सुधर जाएगी तू ख़ुद सुधर के देख
औरों के हर इक काम पे रखता है तू नज़र
ऐ दोस्त अपने दिल में भी इक दिन उतर के देख
दूसरों की ग़लतियाँ आसां है देखना
तू ऐ दिले नादान - हुनर हर बशर के देख
वक़्त से पहले कभी कुछ भी नहीं मिलता
तू छोड़ दे शिकायतें और सबर कर के देख
मंज़िलों का मिलना भी मुश्किल नहीं ऐ दोस्त
चल के ज़रा तू साथ किसी राहबर के देख
आएगा हर शय में फिर नूरे-ख़ुदा नज़र
तू अपने दिल के आईने को साफ़ कर के देख
मदहोशी में मिलती है तस्कीन किस क़दर
ये राज़ होश की कभी हद से गुज़र के देख
खुलता नहीं है राज़े-दिल चेहरे को देख कर
पीछे छुपा है क्या ज़रा इस चश्मेतर के देख
अब तो बदल चुकी है ज़माने की रस्म-ओ-राह
बदले हुए हैं लोग भी अब इस शहर के देख
कितने सितम सहे मगर फिर भी दुआएं दीं
ऐ दोस्त -हौसले ज़रा मेरे जिगर के देख
अच्छा रहा जहान-ए-रंग-ओ-बू का ये सफ़र
अब रास्ते 'राजन' ज़रा अगले सफ़र के देख
" राजन सचदेव "
हुस्ने माहताब = चाँद की सुंदरता
अबर = बादल
दूब = घास
शजर = वृक्ष, पेड़, दरख़्त
मुख़तलिफ़ = अलग अलग
मजमूआ = संयोजन, मिश्रण, मिला हुआ
जहान-ए-रंग-ओ-बू = रंग बिरंगी - ख़ुशबूदार
अति सुंदर है जी कविता।
ReplyDeleteWah ji Wah 🌺 ✍️
ReplyDeleteAti Sundar
ReplyDelete13th line from the last,,,,, "kisi rehbar ke dekh" ko agar aapji "Is rehbar ke dekh" Likhte to pankti aur khubsurat ho jati,,,, baki daas ko baksh dena ji 🙏
ReplyDeleteDhan nirankar ji 🙏
Beautiful and inspiring poetry. Much thanks to share with us!!
ReplyDeleteThank you, Shunya ji
Deleteकिसी दोस्त को ये कविता भेजूं तो हो सकता है वो बुरा मान जाए, कहे मुझ पर क्यों ऊँगली उठाई दोस्त, ऐसा क्या और कब तुमने मुझमे देखा?
ReplyDelete“दोस्त" की जगह अगर मैं ये कविता अपने ऊपर यूँ लिखता तो कोई भी बुरा नहीं मानेगा और संदेश भी पहुँच जायेगा:
ऐ मेरे मन जिंदगी में कभी ये भी कर के देख
दूसरों की ग़लतियाँ आसां है देखना
Deleteतू ऐ दिले नादान - हुनर हर बशर के देख
दूसरों की तरफ देख ही मत, बस अपनी तरफ देख ,
Deleteतेरी खुद की राह ठीक होनी चाहिए ……
तू ख़ुद संभल जायेगा तो दूसरा भी ठीक हो जायेगा - ऐसी भावना के साथ सब सोचें और करे तो सवाल ही नहीं किसी को समझाना पड़े
बहुत बार सुना है ये:
तू अपनी नेमेड तेन्नु होरां नाल की …..
भई जो बुरा मानेंगे उन्हें मत भेजो
Deleteखामखा हर बात पे इतराज़ क्यों
आपके सुझाव के लिए धन्यवाद ......
Deleteलेकिन इस ग़ज़ल की बहर और वज़न के अनुसार 'ऐ मन' या 'मेरे मन' शब्द सही नहीं बैठ सकता।
दूसरा - अगर आप मेरी दृष्टि से देखेंगे तो यहाँ "ऐ दोस्त"से भाव "ऐ मेरे मन' ही है -- क्योंकि भगवद गीता के अनुसार मन ही सबसे अच्छा मित्र है और मन ही शत्रु भी है। (भगवद गीता 6-5)
महात्मा जी - मैं कोई शायर नहीं हूँ लेकिन फिर भी अपनी समझ के अनुसार कुछ शब्दों को जोड़-तोड़ कर कुछ लिखने का प्रयास करता रहता हूँ। अगर आप इस बहर और वज़न का ध्यान रखते हुए इसमें संशोधन कर सकते हैं तो अवश्य ही कृपा करें।
धन्यवाद
राजन सचदेव
👍👍🎊 wah जी wah 👍🙏
ReplyDeleteVERY BEAUTIFUL COMMENT IN FUTURE DHAN NIRANKAR JI
ReplyDeleteUltimate uncle ji
ReplyDeleteKeya baat hai ji. Beautiful 👌❤️🙏🙏
ReplyDeleteBuddha bless you 🙏🏼
ReplyDeleteVery nice ji - Dhan Nirankar ji 🙏🏽
ReplyDeleteWah! Bahut khubshoorat
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल राजन जी, मुख्तलिफ मोज़ू पर खूबसूरत सकारात्मक ख्यालात को इतनी सादगी में बयान करने के लिए।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया 🙏💝
इस हौसला-अफ़ज़ाई के लिए आप जी का भी तहे दिल से शुक्रिया।
Deleteआप की langauage कहती है कि आप ख़ुद भी शायर हैं - अगर अपना शुभ नाम भी लिख देते तो और भी अच्छा होता 🙏🏽🙏🏽
AI DOST JINDGI MEIN YE BHI KR KE DEKH ..
ReplyDeleteYE TO KMAL HEE KR DIYA HAI . APJI KEE SHAYRI TO GZB KEE HAI DEVTA JEE ..BAHUT BAHUT BAHUT HEE SUNDER HAI ..EK AMAR RCHNA UTRI HAI YE GAIB SE APJI KEE PRVAZ DVARA MERE HZOOR ..DHAN HAIN APJI ..LAKHON SIJDE APJI K PAVAN CHRNO MEIN DEVTA JEE 👣👏👏🌹🌹