" फ़रीदा जे तू अक़्ल लतीफ़ हैं काले लिख न लेख
अपनड़े गिरहबान में मूंह नीवां कर देख "
(शेख़ फ़रीद)
यदि तुम बुद्धिमान हो तो किसी के बारे में बुरा मत कहो - न लिखो।
सर को नीचे झुका कर अपने अंदर ही देखो
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अक़्सर हमें दूसरों में गलतियां ढूंढना और उन की बुराई करना बहुत अच्छा लगता है।
किसी की निंदा करने में हमें मज़ा आता है - आनंद मिलता है।
लेकिन शेख़ फ़रीद कहते हैं कि अगर तुम सचमुच ही अक़्लमंद हो - ज्ञानी और बुद्धिमान हो -
तो किसी की बुराई मत करो, बल्कि अपने गिरहबान में सिर झुका कर देखो।
हमें हमेशा अपने आप को - अपने अंदर ही देखना चाहिए।
हो सकता है कि वही या उस से भी अधिक दोष और कमियां हमारे अंदर भी मौजूद हों।
दूसरों में कमियां निकालने और उनकी आलोचना करने से पहले अपनी कमियों और ख़ामियों को पहचानना ही सच्चा ज्ञान है।
" राजन सचदेव "
Mann changaa to kathotee me gangaa
ReplyDeleteAbsolutely true ji..🙏
ReplyDeleteहर ब्रह्मज्ञानी की यही तालीम रही है। कबीर जी भी यही फरमाते हैं। *कबीर सबते हम बुरे, हम तज भलो सब कोये। जिन ऐसा कर बूझेआ, मीत हमारा सोये।*
ReplyDelete*अपने ही ग़रेबां में झांकें जो सभी 'रौशन'*
*कोई न किसीको गुनहगार नज़र आए।*
🙏🙏🙏
ReplyDeleteआईना जब भी उठाया करें, पहले देखा करें, फिर दिखाया करें। Usually quotes by HH Baba Hardev Singh Ji Maharaj.
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