Tuesday, November 9, 2021

इन्सां को पीर कर दिया

            इक बात सिखाई हमें आँखों के नीर ने
            इन्सां को पीर कर दिया, इन्सां की पीर ने


इस शेर में एक ही शब्द 'पीर का दो अलग-अलग भाषाओं से दो अलग-अलग अर्थों के साथ 
कितना सुंदर प्रयोग किया गया है।

दूसरी पंक्ति में पहला  'पीर' फारसी से लिया गया है - जिस का अर्थ है विद्वान - ज्ञानी एवं समझदार। 
और दूसरा पीर - बृज भाषा से लिया गया है - जिसे हिंदी में पीड़ और पीड़ा कहा जाता है 
जिसका अर्थ है - दर्द।

दर्द और पीड़ा भी एक अच्छे शिक्षक की तरह बहुत कुछ सिखा सकते हैं - समझदार और विद्वान बना सकते हैं - यदि कोई सीखने का इच्छुक हो।

प्रतिकूल परिस्थितियों को स्वीकार करना - विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य रखना और शांत रहना ऐसे गुण हैं जो व्यक्ति को महान बना देते हैं। इन्हीं गुणों के कारण 
विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए भी संत कबीर जी, तुलसी दास, मीरा और रविदास इत्यादि महान संतों और गुरुओं के रुप में उभरे।
गुरु नानक ने भी कहा था :
                  "दुख दारु सुख रोग भया - जा सुख ताम न होई"

 अर्थात - कभी कभी 
दुख ही दवा बन जाता है - कष्ट ही निदान बन जाते हैं और जीवन में नए द्वार - सफलता के नए रास्ते खोल देते हैं। 

जबकि जीवन की सुख-सुविधाएं कभी कभी एक विकृति - एक बीमारी की तरह इंसान को आगे बढ़ने से रोकने का कारण बन जाती हैं। 
अक्सर सुख और ऐश्वर्य के जाल में फंस कर इंसान अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है
और दुःख - प्रभु की तरफ ले जाता है। 
                                                         ' राजन सचदेव '

नीर - पानी, (आंखों का नीर - आंखों में आंसू)
पीर - (फारसी) बुद्धिमान, संत, गुरु, एक बुजुर्ग व्यक्ति
पीर - (हिंदी, ब्रज-भाषा) दर्द, पीड़ा

3 comments:

  1. आप जी ने सच कहा कि दुख से हम सीख सकते हैं - यदि हम सीखने के इच्छुक हों तो।

    ReplyDelete
  2. दुःख - प्रभु की तरफ ले जाता है। 💐✳️💐✳️💐✳️

    ReplyDelete
  3. Dhan Nirankar.
    Beauty is in the eyes of beholder.
    And knowledge is in the explanation of Guru. 🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete

कामना रुपी अतृप्त अग्नि

                  आवृतं ज्ञानमेतेन ज्ञानिनो नित्यवैरिणा |                   कामरुपेण कौन्तेय दुष्पूरेणानलेन च ||                            ...