Monday, September 20, 2021

मधुर संस्मरण - शहंशाह बाबा अवतार सिंह जी

बाबा अवतार सिंह जी - जिन्हें सब प्रेम और श्रद्धा से शहंशाह जी कह कर बुलाया करते थे - 17 सितंबर 1969 के दिन अपने नश्वर शरीर को त्याग कर निरंकार में विलीन हो कर निराकार रुप हो गए। 

जब मुझे ये समाचार मिला तब मैं कैथल, हरियाणा में था - जहाँ मैंने हाल ही में एक शिक्षक के रुप में अपनी पहली नौकरी शुरु की थी। 
समाचार मिलते ही हम कुछ लोग कैथल के प्रमुख महात्मा श्री दलीप सिंह जी तथा उनके परिवार के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गए और रात को संत निरंकारी कॉलोनी में पहुँच गए।
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मुझे बचपन से ही हिंदू धर्मग्रंथों में गहरी दिलचस्पी थी और सत्य को खोजने की तीव्र जिज्ञासा भी थी। जब मैं तेरह वर्ष का था तब मुझे हाई स्कूल में एक मित्र के माध्यम से बाबा अवतार सिंह जी के संपर्क में आने का सौभाग्य मिला।
उन्होंने स्वयं मुझे ब्रह्मज्ञान प्रदान किया और मेरे मन पर हमेशा के लिए एक अमिट छाप छोड़ गए। मेरे मन में हमेशा उनके लिए बेहद सम्मान - प्रेम और श्रद्धा रही है और आज भी है। मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे अनेक बार व्यक्तिगत रुप से भी उनका प्रेम और आशीर्वाद मिलता रहा था।
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जब उस दिन मैंने निरंकारी भवन में उनका निष्चल शरीर पड़ा देखा, तो मेरी आंखों से अश्रु बहने लगे।
ज्ञानी जोगिंदर सिंह जी मेरे पास ही खड़े थे। 
मेरी अश्रुपूर्ण आँखें देख कर उन्होंने कहा -
"राजन जी! आप तो ज्ञानी हैं - आप तो जानते हैं कि यह सिर्फ एक शरीर है और शरीर चाहे किसी का भी हो - वो नाशवान ही होता है। 
शहनशाह जी हमारे साथ ही हैं - उनकी विचारें याद हैं न - वो अक्सर कहा करते थे कि शरीर गुरु नहीं होता - गुरु तो वह ज्ञान है जो उस शरीर में है। शरीर आते जाते रहते हैं - रुप बदलते रहते हैं - शरीर आते हैं और चले जाते हैं - इसलिए केवल सर्वशक्तिमान निरंकार का ध्यान करो - उसी पर अपना ध्यान केंद्रित करो - मेरे नश्वर शरीर पर नहीं "!

ज्ञानी जी ने आगे कहा कि "हमें याद रखना चाहिए कि शहनशाह जी ने हमें क्या सिखाया और समझाया था। हम 'निरंकारी हैं - निरंकार के उपासक हैं - इसलिए हमें शरीरों में आसक्ति रखने की बजाय उनकी दी हुई शिक्षाओं पर चलना चाहिए।"

ज्ञानी जी की बातों से मन को ढारस मिला और शहनशाह जी का निरंकार के प्रति सिखाया हुआ दृष्टिकोण फिर से परिपक्व हो गया। 

लेकिन फिर भी -- आज भी  शहनशाह जी का दिव्य, और तेजस्वी चेहरा अक़्सर आँखों के सामने आ जाता है और उनका प्रेम एवं उनके उपदेश कभी भुलाए नहीं जा सकते।
वह हमेशा मेरे हृदय में रहे हैं और हमेशा रहेंगे।
                                      ' राजन सचदेव '

जल सेवा - फ़िरोज़पुर 1963 

शहंशाह जी के साथ मोगा सत्संग में 
(संत अमर सिंह जी और निहाल सिंह जी की बगल में)
मोगा (पंजाब) 1963 

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