लुब्धमर्थेन गृहणीयात -स्तब्धमञ्जलिकर्मणा
मूर्ख छन्दोऽनुवृत्तेन यथार्थत्वेन पण्डितम्
(चाणक्य नीति )
मूर्ख छन्दोऽनुवृत्तेन यथार्थत्वेन पण्डितम्
(चाणक्य नीति )
लालची व्यक्ति को धन और महंगे गिफ़्ट इत्यादि देकर वश में किया जा सकता है।
क्रोधित - ज़िद्दी और अभिमानी व्यक्ति को हाथ जोड़ कर - विनम्र भाव से शांत कर के वश में किया जा सकता है। 
मूर्ख व्यक्ति को उसकी प्रशंसा करके - उस की मर्ज़ी के अनुसार बर्ताव कर के उसे अपने वश में कर सकते है - 
और अपनी इच्छानुसार काम करवा के उस से फ़ायदा उठा सकते हैं। 
(लेकिन) पंडित अर्थात ज्ञानी एवं विद्वान् व्यक्ति को यथार्थ तत्व - 
अर्थात केवल सत्य एवं मूलभूत तत्व की बात करके ही वश में अर्थात प्रसन्न किया जा सकता है - (अन्यथा नहीं ) 
Note:
           कुछ स्थानों पर  "स्तब्धमञ्जलिकर्मणा  "  के स्थान पर " क्रुद्धमञ्जलिकर्मणा   " लिखा है लुब्धम           =  लोभी, लालची 
अर्थेन            = धन दे कर 
स्तब्धं  = हठी घमंडी अभिमानी     क्रुद्धं  =  क्रोधी   
अंजलि          = जुड़े हुए हाथ अर्थात हाथ जोड़ कर 
छंद अनुवृत्तेन =  प्रशंसा - अनुसार बर्ताव  अर्थात चापलूसी करके
यथार्थ            =       सत्य 
तत्व              = मूलभूत तत्व 
पंडित           =  ज्ञानी, विद्वान 
uttam bachan
ReplyDeleteNice bachan mahapurso ji🌹🌹👏🏾👏🏾
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