Tuesday, December 30, 2014

गन्ने का रस Ganne Ka Ras / Sugar canes

पिछली बार भारत जाने पर, बहुत सालों के बाद गन्ने देखने और खाने का अवसर मिला। गन्ने को दांतों से छील कर, और चबा कर उसका रस पीने का भी अपना ही एक स्वाद है. 

देखने में तो वो गन्ने बहुत सुंदर नहीं थे और शायद अभी ताजे ही खेतोँ से लाए गए थे इसलिए उन पर मिट्टी भी जमी हुई थी। 

उन्हें धोते और छीलते हुए मुझे ऐसा लगा कि लोगों का जीवन भी शायद बहुत हद तक गन्ने की तरह ही होता है। 

ऊपर ऊपर से देखने पर तो शायद बहुत सुंदर ना लगें। 
लेकिन बाहरी रूप और आचरण को छील कर अगर उनके अन्दर देखें तो सभी के जीवन से कुछ न कुछ मीठा और मधुर अमृत रस प्राप्त किया जा सकता है। 

गर ख़ुदा ने बख़्शा है फितरत-शनास दिल तुझे 
तो हर किसी में हुनर देखा कर, बुरा देखा ना कर
                               'राजन सचदेव'



  

1 comment:

फ़ासला यारो है बस इक सांस का The distance is just a single breath

इस जहां और उस जहां के दरमियां - फ़ासला यारो है बस इक सांस का  ये अगर चलती रहे तो ये जहां ---- और अगर रुक जाए तो फिर वो जहां  Is jahaan aur us...