अक़्सर हसरतों और अधिक इच्छाओं का बोझ भी हमें थका देता है।
इच्छाएं और ज़रुरतें कम हों तो मन संतुष्ट और प्रसन्न रहता है।
सिर्फ दूसरों से ही नहीं बल्कि अपने आप से भी अधिक अपेक्षाएं रखने से मन में बेचैनी बनी रहती है।
अपेक्षाएं कम हों तो जीवन सार्थक और आनंदमयी हो जाता है।
" राजन सचदेव "
True but not that easy though.
ReplyDeleteGreat article ji! How one can spot the balance between over expectations and optimal expectations when it comes to keeping expectations for ourselves?
ReplyDeleteBeautiful 🌷
ReplyDeleteVery nice
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