वास्तव में हम अपने मन और चित्त में रहते हैं।
वही हमारा स्थायी निवास है। हम अपना अधिकतर समय वहीं - यानि अपने मन में ही बिताते हैं।
और वहां कोई स्केयर फीट या स्केयर गज की कोई संकीर्णता और बाध्यता भी नहीं है।
यह एक असीमित क्षेत्र - एक विशाल भवन है।
और क्या आप जानते हैं ?
आपके कमरे, बालकनी, गैरेज और बरामदे कितने भी सुव्यवस्थित क्यों न हों -
जीवन तभी अच्छा और सुंदर हो सकता है जब मन व्यवस्थित हो -
और क्या आप जानते हैं ?
आपके कमरे, बालकनी, गैरेज और बरामदे कितने भी सुव्यवस्थित क्यों न हों -
जीवन तभी अच्छा और सुंदर हो सकता है जब मन व्यवस्थित हो -
जब मन में संजो कर रखी हुई हर चीज साफ़ सुथरी हो -
हर भावना सुंदर हो।
लेकिन यही वह जगह है जहां हम अक़्सर गंदगी रहने देते हैं -
लेकिन यही वह जगह है जहां हम अक़्सर गंदगी रहने देते हैं -
सफाई नहीं करते -
बल्कि कई बार तो स्वयं ही इसे गंदगी से भर लेते हैं -
अगर कभी कोई गंदगी दिखाई भी दे तो उसे साफ़ करने की कोशिश नहीं करते।
मन के एक कोने में पछतावा भरा पड़ा है - तो एक कोठरी में फ़िज़ूल आशाएं और उम्मीदें -
अगर कभी कोई गंदगी दिखाई भी दे तो उसे साफ़ करने की कोशिश नहीं करते।
मन के एक कोने में पछतावा भरा पड़ा है - तो एक कोठरी में फ़िज़ूल आशाएं और उम्मीदें -
मेज पर बिखरे हुए दूसरों से तुलना और ईर्ष्या के काग़ज़ -
अलमारी में संभाल कर रखे हुए दूसरों की गलतियों के दस्तावेज़ और कालीन के नीचे छुपा कर रखे हुए अपने रहस्य -
कहीं कुछ यादों की बोतलों से पुरानी रंजिशें निकल कर बह रही हैं तो किसी पतीले में से क्रोध उबल कर बाहर आ रहा है -
हर जगह बेचैनी और चिंताएं बिखरी हुईं हैं -
दीवारों पर लोभ और लालच की मक्खियां बैठी हैं -
किसी कोने से नफरत की बू आ रही है तो कहीं वैर विरोध की अँधियाँ चल रही हैं।
अगर प्रसन्न रहना है तो ये ज़रुरी है कि अपने मन रुपी घर को साफ़ रखा जाए।
इन सब चीज़ों से बच के रहा जाए।
लेकिन अपने इस 'असली घर' को साफ रखने के लिए हम कोई नौकर या हाउस-कीपर नहीं रख सकते।
अगर प्रसन्न रहना है तो ये ज़रुरी है कि अपने मन रुपी घर को साफ़ रखा जाए।
इन सब चीज़ों से बच के रहा जाए।
लेकिन अपने इस 'असली घर' को साफ रखने के लिए हम कोई नौकर या हाउस-कीपर नहीं रख सकते।
बाहर से किसी को सफाई करने के लिए नहीं बुला सकते।
न ही कोई दूसरा आदमी जादू की इक छड़ी हिला कर हमारे मन को साफ़ कर सकता है।
ये काम तो हमें स्वयं ही करना पड़ेगा।
न ही कोई दूसरा आदमी जादू की इक छड़ी हिला कर हमारे मन को साफ़ कर सकता है।
ये काम तो हमें स्वयं ही करना पड़ेगा।
' राजन सचदेव '
वाह साहेब वाह ❤️❤️❤️ अंदरुनी घर 🌿🙏🏻
ReplyDeleteso beautifull and so true.
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteSelf introspection
This is great❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
ReplyDeleteFantastic ji beautifully explained ji bless ji��
ReplyDeleteBeautiful. Thank you JI _/\_
ReplyDelete