बहुत बार हमें अपने जीवन में कुछ प्रतिकूल घटनाओं और परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
आमतौर पर, हम बिना सोचे-समझे जल्दबाज़ी में जवाब दे देते हैं और आवेग में आकर कोई प्रतिक्रिया भी कर देते हैं।
परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं -
लेकिन हम उन विभिन्न परिस्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया करें- यह हमारे नियंत्रण में - हमारे कंट्रोल में है।
ये हमारे हाथ में है कि हमारी प्रतिक्रिया बिना सोचे समझे आवेग के साथ हो या ज्ञानपूर्वक - सोच समझ कर परिस्थिति का विश्लेषण करने के बाद।
बेशक यह बात इतनी आसान तो नहीं है - लेकिन फिर भी हम अगर हम प्रैक्टिस करें तो अभ्यास के साथ अपनी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करना सीख सकते हैं।
बचपन से ही मैंने कुछ ऐसे प्रचारकों और विद्वानों को देखा कि जब कुछ ऐसी परिस्थितयां सामने आईं - जब उनसे उनकी मान्यताओं और ज्ञान के बारे में कुछ अनचाहे सवाल किये गए या उन्हें चंद लोगों की असहमति का सामना करना पड़ा तो उन्होंने बड़े कठोर और रुखे तरीके से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। ज़ाहिर है कि उन लोगों पर इस बात का प्रभाव अच्छा नहीं पड़ा।
बाद में, जब जम्मू-काश्मीर और पंजाब में मुझे स्वतंत्र रुप से प्रचार करने का अवसर मिला तो मुझे उन घटनाओं की याद रही और मैंने निश्चय किया कि प्रचार के दौरान कभी भी इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए।
इसलिए, सत्संग के बाद लोगों से वार्तालाप के लिए मिलने से पहले मैं हमेशा मन ही मन में ये बात दोहरा लेता कि -
"बातचीत के दौरान असहमति भी होगी - कुछ लोग बेतुके सवाल भी पूछ सकते हैं - ये ज़रुरी नहीं कि सब लोग मेरी बात से सहमत होंगे और जो कहूंगा वो मान ही लेंगे - हो सकता है कि कुछ लोग रुखेपन से बात करें और असभ्यता से पेश आएं - लेकिन मुझे परेशान नहीं होना है - क्रोध नहीं करना है । शांतिपूर्वक और धैर्य से उनके सवालों का जवाब देने की कोशिश करनी है और हमारे मिशन और हमारी विचरधारा के बारे में उनकी आशंकाओं को शांति से समझा कर संतुष्ट करना है ।"
पहले से ही इस तरह अपने आप को तैयार कर लेने का बहुत फ़ायदा हुआ और फिर कभी वार्तालाप के दौरान प्रतिकूल सवालों और कठोर बातों का सामना करने में ज़्यादा मुश्किल नहीं हुई।
और अगर कुछ लोग फिर भी प्रसन्न और संतुष्ट नहीं हुए तो प्रसन्न मुद्रा में दोस्ताना तरीके से ये कह कर विदा ले ली कि अच्छा - कभी फिर मिलेंगे और आगे बात करेंगे।
मुद्दा यह है कि अभ्यास के साथ हम ये सीख सकते हैं कि प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ शांति से कैसे निपटना है -
बिना सोचे समझे आवेगपूर्ण प्रतिक्रिया करने की बजाए उन्हें किस तरह शांति से संभालना है।
परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं -
लेकिन हमारी प्रतिक्रिया - हमारा निर्णय और दृष्टिकोण हमारे अपने नियंत्रण में हैं।
' राजन सचदेव '
बिलकुल विवेकपूर्ण और व्यवहारिक
ReplyDeleteशत प्रतिशत सही🙏
ReplyDeleteDhan Nirankar Ji
ReplyDeleteज्ञान से की गई प्रतिक्रिया का परिणाम सही होता है। खुद भी शांत, और दूसरे को भी सुख।