तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
झूठी प्रशंसा मन में अहंकार पैदा करती है और आगे बढ़ने से रोकती है।
दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव हमें अपने जीवन में सुधार लाने और आगे बढ़ने के मार्ग में बाधा बन जाता है ।
हमें लगता है कि अब हमें और कुछ भी सीखने या करने की ज़रुरत नहीं हैं।
दूसरी ओर - यदि वास्तविक - वैध, और सकारात्मक आलोचना को स्वीकार करके उस पर ईमानदारी से विचार किया जाए तो वह त्रुटियों को सुधारने में मदद कर सकती है और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।
दूसरी ओर - यदि वास्तविक - वैध, और सकारात्मक आलोचना को स्वीकार करके उस पर ईमानदारी से विचार किया जाए तो वह त्रुटियों को सुधारने में मदद कर सकती है और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।
" राजन सचदेव "
Soo good🌸🌺
ReplyDeleteRight uncle ji,
ReplyDeleteDhan nirankar uncle ji