Thursday, March 31, 2022

किसको मिले हैं अपनी तबीयत के चार दिन کس کو میل ہیں

मर्ज़ी किसी से वक़्त ने पूछी कहाँ कभी
किसको मिले हैं अपनी तबीयत के चार दिन ?

  مرضی کسی سے وقت نے پوچھی کہاں کبھی 
کس کو میل ہیں اپنی طبعیت کے چار دن 

Who has enjoyed four perfect days?

Marzi kisi say vaqt nay poochhi kahaan kabhi
Kis ko milay hain apni tabeeyat kay char din ?

Time never asks anyone what they want - about their heart's desire.
Who has enjoyed four perfect days of his choice?

Note:
Four days is a metaphor in Indian ideology for
Adolescence, Childhood, Youth, and old age

Wednesday, March 30, 2022

न पीर से पूछो - न फ़क़ीर से पूछो

न किसी पीर से पूछो - न फ़क़ीर से पूछो
अपने बारे में ख़ुद अपनी ही ज़मीर से पूछो


क्योंकि आपके बारे में आप से बेहतर कोई नहीं जानता।
लोग आपके बारे में वही जानते हैं जो आप बाहर से दिखते हैं या दिखना चाहते हैं।
असल में आप क्या हैं - ये सिर्फ आप ही जान सकते हैं - दूसरा कोई नहीं।

इसलिए - अगर आप वाकई स्वयं को जानना चाहते हैं तो कभी अकेले बैठ कर
अपने मन को पढ़ने की कोशिश करें। 
ईमानदारी से अपने विचार - अपनी इच्छाओं और भावनाओं को समझने की कोशिश करें 
ऐसी आलोचनात्मक दृष्टि से अपने आप को देखें जैसे आप दूसरों को देखते हैं। 
जिसे शास्त्रों में साक्षी-भाव कहा गया है। 
अर्थात अपने आप से बाहर निकल कर एक दर्शक की तरह निष्पक्ष रुप से स्वयं को जानने और समझने का यत्न करें।
इस से अच्छा और कोई तरीका नहीं हो सकता अपने आप को जानने का।
                          न किसी पीर से पूछो - न फ़क़ीर से पूछो
                        
अपने बारे में ख़ुद अपनी ही ज़मीर से पूछो
                                                              " राजन सचदेव "

Na Peer say poochho na Fakeer say (Don't ask a wise - nor a mystic)

          'Na kisi Peer say poochho - Na Fakeer say poochho
          Apnay baaray me khud apni hee zameer say poochho

Don't ask any Peer (wise) - don't ask a Fakir (a mystic)
If you really want to know yourself - 
then ask your own heart - your own conscience.

Because no one knows you better than yourself.
People know about you only as they see you from the outside - 
or how you want to be seen by others.
Only you can see who you really are - no one else can.

Therefore, if you truly want to know yourself, then occasionally sit alone and try to read your own mind.
Try to understand your own thoughts, desires, and feelings - sincerely and honestly.
Look at yourself as critically as you see others.

This is called Sakshi-Bhaav in the scriptures 
Meaning just witnessing - without any preconceptions and predispositions.
That is trying to know and understand yourself objectively like an observer 
- without any bias or inclinations - without prejudice or preference.
There can be no better way than this to know yourself.
          'Na kisi Peer say poochho - Na Fakeer say poochho
           Apnay baaray me khud apni hee zameer say poochho'
                                     ' Rajan Sachdeva "

Tuesday, March 29, 2022

Buddhi Gyaan say yukt rahay (The intellect full of wisdom)

Buddhi Gyaan say yukt rahay 
Man aham bhaav say mukt rahay 
Aur karm sadaa upyukt rahay  
                    To jeevan sehaj saral sadaa aanandit rehtaa  hai 

Jo apnay kaam mein vyast rahay 
Jo milaa hai us men trapt rahay 
Aur apnay aap mein mast rahay 
                  To us ka jeevan shaant - chintaa mukt rehtaa  hai 

Jo moh maaya mein grast rahay  
Auron kay sukh say trast rahay  
Nij svaarth mein aasakt rahay 
                      To us ka jeevan - aanand say rikt rehtaa  hai 

Eeshvar ka aabhaas rahay 
Man mein bhakti ka vaas rahay  
Aur sumiran svaas svaas rahay 
                      To moh maaya kay jaal say virakt rehtaa  hai 

Jo har rang mein ik rang rahay 
Man mein na koyi tarang rahay 
Har samay prabhu kay sang rahay 
                    'Rajan' voh param aanand mein anurakt rehtaa hai
                                               " Rajan Sachdeva "

                         English Translation 

The intellect full of wisdom -
The Mind free from ego
And doing proper Karma 
           Such life is simple, sincere, and blissful

Those who keep busy with their work
Always content with what they have
and enjoy the company of their own-self
        Their life always remains calm and worry-free

Those- who are absorbed in Maya - the worldly illusions
Feel sad and despaired from the happiness of others
Always thinking of only their self-interests
              Their life is always devoid of peace and joy

Those - who, all around, feel the presence of God
Whose mind is filled with pure devotion 
Every breath they breathe in remembrance of the Lord
        Their life remains detached from the traps of Maya.

In every situation - who remain the same
Do not let their mind wither and wane 
Always thoughtful of the Lord's grace
       Their life is immersed in supreme bliss - always
                                                             "Rajan Sachdeva "
                                                             
Yukt                 = Connected, Associated
Upyukt               = proper, Appropriate 
Vyast                   = Busy
Trapt or Tript  =   Satisfied
Grast                =  Absorbed, Engrossed, 
Trast                =   Tormented, Troubled, Despaired, Distressed, grieved
Aasakt              = Attached, Indulged, Immersed, Engrossed, Infatuated
Rikt                   =  Empty, Without, Devoid of
Virakt              = Detached, Away, Unconcerned, Neutral, Recluse
Anurakt          =  Absorbed, Immersed, Joyous 

बुद्धि ज्ञान से युक्त रहे - मन अहम भाव से मुक्त रहे

बुद्धि ज्ञान से युक्त रहे 
मन अहम भाव से मुक्त रहे 
और कर्म सदा उपयुक्त रहे 
           तो जीवन सहज सरल सदा आनंदित रहता है 

जो अपने काम में व्यस्त रहे
जो मिला है उसमें तृप्त रहे 
और अपने आप में मस्त रहे 
              तो उसका जीवन शांत - चिंता मुक्त रहता है 

जो मोह माया में ग्रस्त रहे
औरों के सुख से त्रस्त रहे
निज स्वार्थ में आसक्त रहे
             तो उसका जीवन -आनंद से रिक्त रहता है

ईश्वर का आभास  रहे
मन में भक्ति का वास रहे
और सुमिरन स्वास स्वास रहे
          तो मोह माया के जाल से विरक्त रहता है 

जो हर रंग में इक रंग रहे 
मन में न कोई तरंग रहे 
हर समय प्रभु के संग रहे 
           'राजन ' वह परम आनंद में अनुरक्त रहता है 
                                                             " राजन सचदेव "

Sunday, March 27, 2022

क्या आप किसी बंगले या फ्लैट में रहते हैं ?

अगर हम सोचते है कि हम किसी मकान, बंगले, डुप्लेक्स या फ्लैट में रहते हैं तो हमारा ये सोचना ग़लत है ।
वास्तव में हम अपने मन और चित्त में रहते हैं।
वही हमारा स्थायी निवास है। हम अपना अधिकतर समय वहीं - यानि अपने मन में ही बिताते हैं।
और वहां कोई स्केयर फीट या स्केयर गज की कोई संकीर्णता और बाध्यता भी नहीं है। 
यह एक असीमित क्षेत्र - एक विशाल भवन है।
और क्या आप जानते हैं ?
आपके कमरे, बालकनी, गैरेज और बरामदे कितने भी सुव्यवस्थित क्यों न हों -
जीवन तभी अच्छा और सुंदर हो सकता है जब मन व्यवस्थित हो - 
जब मन में संजो कर रखी हुई हर चीज साफ़ सुथरी हो - 
हर भावना सुंदर हो।

लेकिन यही वह जगह है जहां हम अक़्सर गंदगी रहने देते हैं - 
सफाई नहीं करते - 
बल्कि कई बार तो स्वयं ही इसे गंदगी से भर लेते हैं -
अगर कभी कोई गंदगी दिखाई भी दे तो उसे साफ़ करने की कोशिश नहीं करते।
मन के एक कोने में पछतावा भरा पड़ा है - तो एक कोठरी में फ़िज़ूल आशाएं और उम्मीदें -
मेज पर बिखरे हुए दूसरों से तुलना और ईर्ष्या के काग़ज़ - 
अलमारी में संभाल कर रखे हुए दूसरों की गलतियों के दस्तावेज़ और कालीन के नीचे छुपा कर रखे हुए अपने रहस्य - 
कहीं कुछ यादों की बोतलों से पुरानी रंजिशें निकल कर बह रही हैं तो किसी पतीले में से क्रोध उबल कर बाहर आ रहा है - 
हर जगह बेचैनी और चिंताएं बिखरी हुईं हैं - 
दीवारों पर लोभ और लालच की मक्खियां बैठी हैं - 
किसी कोने से नफरत की बू आ रही है तो कहीं वैर विरोध की अँधियाँ चल रही हैं।

अगर प्रसन्न रहना है तो ये ज़रुरी है कि अपने मन रुपी घर को साफ़ रखा जाए।
इन सब चीज़ों से बच के रहा जाए।

लेकिन अपने इस 'असली घर' को साफ रखने के लिए हम कोई नौकर या हाउस-कीपर नहीं रख सकते। 
बाहर से किसी को सफाई करने के लिए नहीं बुला सकते।
न ही कोई दूसरा आदमी जादू की इक छड़ी हिला कर हमारे मन को साफ़ कर सकता है।
ये काम तो हमें स्वयं ही करना पड़ेगा।                       
                                                          ' राजन सचदेव '

We live in our minds

We don't live in bungalows, duplexes, or flats. 
We live in our minds.

Yes, that's our permanent residence. 
And there are no constraints of square feet there. 
It's a vast space with an unlimited area. 
And you know what! 
No matter how well-organized your rooms, balconies, garages, and verandas are - 
life is good only when things are sorted there - in your mind.

And that's where we keep things messy - regrets piling up in one corner, expectations stuffed in a closet, secrets under the carpet, worries littered everywhere, comparisons spilled on the table, complexes leaking from an old bottle, and grudges stinking in a box. 
Be aware. 
For this 'real home' of yours, you can't outsource housekeeping. 
You got to do it yourself.
                                                      (From Dr. V. Bajaj - Chicago)

नमक और काली मिर्च की शीशियाँ

कुछ दोस्त एक स्थानीय कैफे में लंच के लिए गए।
ऑर्डर देने के बाद, उन्होंने देखा कि उनके टेबल पर रखे नमक के शेकर (शीशी ) में काली मिर्च थी 
और काली मिर्च के शेकर में नमक भरा हुआ था।

उन्हों ने सोचा कि जब तक खाने का इंतज़ार कर रहे हैं , तो क्यों न उन शीशियों को प्लेटों में खाली करके दुबारा सही शेकर (शीशियों) में भर दिया जाए?
उन्होंने वेटर को बुलाया और उससे दो खाली प्लेट, नैपकिन और एक चम्मच लाने को कहा।

वेटर ने आश्चर्य से उनकी तरफ देखा।
उसे असमंजस में देख कर एक मित्र ने कहा कि देखो - 
यहां जिस शेकर पर काली मिर्च लिखा है उसमें नमक है और नमक के शेकर में काली मिर्च है। ....."
लेकिन इससे पहले कि वह अपनी बात खत्म कर पाते, वेटर ने बीच में ही टोक कर कहा -- ओह - सॉरी - माफ़ कीजिये।

वह मेज पर झुका - दोनों शीशियों के ढक्कन खोले और बदल दिए ।

अचानक वहां सन्नाटा छ गया । 
सारे दोस्त एक दूसरे की तरफ हैरानी से देखने लगे।

अक़्सर हमारे जीवन की अधिकांश समस्याओं के लिए भी सरल उपाय होते हैं
लेकिन हमारी सोच कभी-कभी सरल समाधानों को बहुत जटिल बना देती है।

Salt and Pepper

Few friends went out for lunch at a local cafe.
After placing the order, they discovered that their salt shaker contained pepper, and the pepper shaker was full of salt.
While waiting for their food, they decided to swap the contents of the two bottles by emptying them on two different plates or napkins and filling them again in the appropriate bottles.
They called the waiter and asked him to bring two empty plates, napkins, and a straw or a spoon.
The waiter looked at them strangely - wondering why they needed those things.
They said, "We couldn't help noticing that the pepper shaker contains salt and the salt shaker contains pepper..."
But before they could finish, the waiter interrupted & said,
"Oh -- sorry about that."
He leaned over the table, unscrewed the caps of both bottles, and switched them.
There was dead silence.

For most problems in our lives, there are simple solutions, 
But our minds sometimes complicate the simple solutions.
                                                     (From Ram Nagrani ji - USA)

Saturday, March 26, 2022

Duniya ik Ajab ...The world I see.. ​दुनिया इकअजब सराए

​दुनिया इकअजब सराए फ़ानी देखी
हर चीज़ यहाँ की आनी जानी देखी
जो आ के न जाए वो बुढ़ापा देखा
जो जा के न आए वो जवानी देखी

             ' अनीस लखनवी ' (1803–1874)


Duniya ik ajab Saraaye-Faani dekhi
Har cheez yahan ki aani jaani dekhi
Jo aa kay na jaaye woh budhapa dekhaa
Jo jaa kay na aaye - woh jawaani dekhi

                       ' Mir Anees Lakhnavi ' (1803–1874)
    
                                  English Translation

The world I see is a strange, deviant kind of inn -

Everything (and everyone) we see here comes and goes. 

(Nothing is for keeping)

Saw the old age - which once comes- never goes away.

And the youth - once it's gone, never comes back. 


Saraaye --- Free travelers lodge or inn where travelers & visitors can stay for a few days.
Faani - Perishable


Friday, March 25, 2022

जब कोई समस्या पेश आये

अगर आपके जीवन में किसी व्यक्ति - किसी परिस्थिति
अथवा किसी विचारधरा से कोई समस्या पेश आती है
तब  या तो उस समस्या का समाधान खोज कर उसे दूर करने की कोशिश करें
या स्वयं उस व्यक्ति और उन परिस्थितियों से दूर हो जाएँ
लेकिन समस्या के साथ जीने की कोशिश न करें ।
क्योंकि समस्या के साथ जीते रहने से तो मन में हमेशा तनाव ही बना रहेगा

When you face a problem

When you face a problem 
Then - Either Solve the problem
Or leave the problem 
But do not live with the problem.
Living with the problem will always cause anxiety and restlessness in mind.

Thursday, March 24, 2022

125 Years old Swami Sivanand receives Padma Shri












125 Years old Swami Sivanand receives Padma Shri Award
for his contribution in the field of Yoga
His greatness shows in his humility as well
when the Yoga Guru,  Bows To PM and President 
Before Receiving Padma Shri

Born on 8 August 1896, Swami Sivananda has dedicated his life to the welfare of human society.
He is chasing that mission till today to serve the underprivileged in different parts of the country - in North East India, at Varanasi, Puri, Haridwar, Nabadwip and so on, according to the Rashtrapati Bhavan document on Padma awardees.
For the last 50 years, Swami Sivananda has been serving 400-600 leprosy-affected beggars with dignity at Puri by personally meeting them at their hutments.

                             (Info & photo from the web)

मूर्ख भी विद्वान बन सकता है

एक मूर्ख या कम-समझदार इंसान भी विद्वान बन सकता है
अगर उसे अपनी मूर्खता - या अपनी कमअक्ली का एहसास हो जाए
और अगर वो ईमानदारी से आगे बढ़ने और सीखने की कोशिश करे 
तो अवश्य ही वह विद्वान एवं प्रतिभाशाली बन सकता है।

दूसरी तरफ एक विद्वान इंसान भी मूर्ख हो जाता है
जब वह ये सोचने लगता है कि वह एक प्रतिभाशाली है - 
जब उसे अपनी विद्वता और प्रतिभा का अहंकार होने लगता है ।

क्योंकि सत्य का ज्ञान इंसान को विनम्र बनाता है - अभिमानी नहीं।

A Fool can become a Genius

“A Fool can become a Genius 
when he understands he is a Fool.

And a Genius becomes a Fool 
when he thinks he is a Genius.”
                                                    ~ Abdul Kalam

Wednesday, March 23, 2022

The grass looks greener on the other side

The grass will always look greener on the other side -
 in someone else's lawn
Until you start watering and taking care of your own lawn. 

दूसरों के घर के बाहर लॉन में उगी हुयी घास हमेशा ज़्यादा हरी और अच्छी दिखती है 
और वो तब तक बेहतर दिखती रहेगी 
जब तक आप अपने लॉन में  पानी देना 
और उस की  देखभाल करना शुरु नहीं करेंगे। 

Tuesday, March 22, 2022

It is better to look ahead भविष्य की तैयारी करें

It is better to look ahead and prepare for a better future 
than keep looking back at the past and regretting it.

अतीत को देखकर पछताते रहने से बेहतर है कि आगे देखें 
और एक अच्छे भविष्य की तैयारी करें।

Monday, March 21, 2022

When you don't feel the need to impress people

When you reach such a state of mind that you don't feel the need to impress people - or please anyone -
understand that you are very close to being Jeevan-Mukt.

जब आप ऐसी मानसिक अवस्था में पहुंच जाएं कि आपको लोगों को  प्रभावित करने -
और किसी को खुश करने की कोई ज़रुरत महसूस न हो  - 
 तो समझ लेना कि आप जीवन-मुक्त अवस्था के बहुत क़रीब हैं 
                                                     " Rajan Sachdeva " 

Saturday, March 19, 2022

How do you know if you are rich?

When I was doing my B Tech, there was a professor who used to teach us ‘Mechanics’.
His lectures used to be very interesting since he had an interesting way to teach and explain the concepts.
One day, in the class, he asked the following questions:
1. What is Zero?
2. What is Infinity?
3. Can Zero and Infinity be the same?

We all thought that we knew the answers and we replied as follows:
Zero means nothing.
Infinity means a number greater than any countable number.
Zero and Infinity are opposite and they can never be the same.

He countered us by first talking about infinity and asked, 
How can there be any number which is greater than any countable number?
We had no answers.

He then explained the concept of infinity in a very interesting way, which I remember even after more than 35 years.
He said that imagine that there is an illiterate shepherd who can count only up to 20.
Now, if the number of sheep he has less than 20 and you ask him how many sheep he has, he can tell you the precise number (like 3, 5, 14, etc.).
However, if the number is more than 20, he is likely to say “Too Many”.

He then explained that in science infinity means ‘too many’ (and not uncountable) and in the same way zero means ‘too few’ (and not nothing).
As an example, he said that if we take the diameter of the Earth as compared to the distance between Earth and Sun, the diameter of earth can be said to be zero since it is too small.
However, when we compare the same diameter of the earth with the size of a grain, the diameter of the earth can be said to be infinite.
Hence, he concluded that the same thing can be Zero and Infinite at the same time, depending on the context, or your matrix of comparison.

The relationship between richness and poverty is similar to the relationship between infinity
and zero.
It all depends on the scale of comparison with your wants.
If your income is more than your wants - you are rich.
If your wants are more than your income - you are poor.

I consider myself rich because my wants are far less than my income.
I have become rich not so much by acquiring lots of money, but by progressively reducing my wants.
If you can reduce your wants, you too can become rich at this very moment.
                                        Taken From the web
                              Courtesy of Dr. V. Bajaj - Chicago

Friday, March 18, 2022

Eat More Colors - Happy Holi

 


वो गुलाब बन के खिलेगा क्या How can one bloom like a rose

वो गुलाब बन के खिलेगा क्या
जो चिराग बन के जला न हो
                          
बशीर बद्र • 

Vo gulaab ban kay khilegaa kyaa 
Jo chiraagh ban kay jalaa na ho   
                               (Bashir Badra)

How can one bloom like a rose?
If it has not burned like a candle before 


Holi - The festival of Colors

 


Blessings given by elders 
and well wishes by loved ones have no color
But when they bring color - 
Life gets filled with colors of joy and happiness.

Wishing you a very Happy Holi - the festival of colors

Thursday, March 17, 2022

Story of Holika Dehan with its meaning

According to Bhaagvat Purana, there was a king named Hiranyakashyap. 
Like many other demons and Asuras, he also had the intense desire to become immortal.
He performed some hard Tapa (penances) until he was granted a boon by Lord Brahmaa.

Having received that boon, he became very egotistic and ordered everyone in his kingdom to worship him.
However, his son Prehlad refused to do so.
He said none other than Ram* (the Almighty God), which is Omnipresent and all-pervading - prevalent in the earth, waters, and the sky is worthy of worship.

It made Hiranyakashyap extremely angry, and he made several attempts to kill Prehlad - his own son.
But every time, he was miraculously saved.
After failing several attempts, King Hiranyakashayap called upon his sister Holika for help.

According to the story, Holika had a special cloak - a garment that prevented her from being harmed by fire.
She proposed that she would sit on a bonfire wearing that cloak while holding young Prahlad on her lap.
She knew that she would not be harmed by the fire, but Prehlad will burn.

However, as the fire roared, the garment flew away from Holika and fell over Prahlad - covering him completely. Therefore, Holika was burnt to death, and Prehlad came out unharmed.

Like all other ancient Hindu stories, regardless of whether it is a true story or not - it has a deeper, symbolic - metaphorical meaning.

Holika was a demon - a person with evil thoughts.
But she was always able to cover her evil intentions by wearing her special cloak - the mask of goodness.
Meaning - a cover of charity with a smiling face and charming personality that would prevent her from the fire of people's anger.

However, when she faced the fire of the people's test along with Prehlad - her cover was blown away.
Everyone saw her face without the mask, and the goodness and truthfulness of Prehlad became evident to all.
She lost, and Prehlad came out unharmed.

We often see these kinds of scenarios in our life as well.
Many people pretend to be genuinely good - to be saints - by hiding their real intentions behind the masks of sainthood and charity. 
They think that they cannot be harmed by anyone - because they are wearing that special cloak - mask of goodness over their face - which will save them from the fire of people's anger.
But, when real Saints like Prehlad appear on the scene, the falsehood is blown away - and the Truth prevails.

When we understand the hidden meanings and messages behind these stories, the celebration of these festivals makes more sense and becomes beneficial to all.
                                      ' Rajan Sachdeva '

             * Sarveshu Ramtay iti Raamah
(That - which is all-pervading - prevalent everywhere - and in everyone, is called Rama)

होलिका-दहन - एक प्रेरणा दायक कहानी

भागवत पुराण के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक एक राजा था जिसे अन्य कई राक्षसों और असुरों की भांति अमर होने की तीव्र इच्छा थी।
इस इच्छा को पूरा करने के लिए उसने तपस्या की और अंततः उसे भगवान ब्रह्मा द्वारा अमरत्व का वरदान मिल गया।

उस वरदान को पाकर वह अत्यंत अहंकारी हो गया और उसने अपने राज्य में सभी को अपनी पूजा करने का आदेश दिया।

लेकिन उस के पुत्र प्रहलाद ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि वह एक सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान ईश्वर के अलावा और किसी की उपासना नहीं करेंगे।
हिरण्यकश्यप बहुत क्रोधित हुआ, और उसने अपने ही पुत्र प्रहलाद को मारने के कई प्रयास किए।
लेकिन प्रहलाद हर बार चमत्कारिक रुप से बच गया।
कई प्रयासों में विफल होने के बाद, राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को मदद के लिए बुलाया।

कहानी के अनुसार, होलिका के पास एक विशेष ओढ़नी थी - एक ऐसा शॉल था जिसे ओढ़ने के बाद आग उसे जला नहीं सकती थी।

वह अपनी गोद में युवा प्रह्लाद को बिठा कर जलती हुई आग पर बैठने को तैयार हो गई - इस विचार से कि उसे तो आग से कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन प्रह्लाद जल जाएगा।
लेकिन जैसे ही आग भड़की, वह शॉल होलिका के तन से उड़ कर प्रह्लाद के ऊपर गिर गया और उसे पूरी तरह से ढँक दिया।
इस तरह होलिका तो जलकर भस्म हो गई, और प्रह्लाद को कोई आंच नहीं आई।

अन्य सभी प्राचीन हिंदू कहानियों की तरह - इस कहानी के पीछे भी कुछ गहरे, प्रतीकात्मक अर्थ हैं।

होलिका एक दानव वृति की स्त्री थी - बुरे विचारों वाली।
लेकिन वह अपने विशेष शॉल के साथ अपने बुरे इरादों को छुपाने में सक्षम थी।
शॉल - अर्थात बाहर से अच्छाई का आवरण। वह अपने चेहरे पर अच्छाई का मुखौटा पहन लेती थी और लोगों के क्रोध की आग से बच जाती थी।

लेकिन जब उसे प्रहलाद के साथ परीक्षण की आग का सामना करना पड़ा तो उसका आवरण उड़ गया। सभी ने उसके असली रुप को - नकाब के बिना उसके असली चेहरे को देख लिया और प्रह्लाद की सच्चाई और पवित्रता सबके सामने स्पष्ट हो गई।

हमें भी अक्सर अपने आस पास इस प्रकार के कई दृश्य देखने को मिलते हैं ।
बहुत से लोग - जो वास्तव में स्वार्थी, लालची और अहंकारी हैं लेकिन सबके सामने अच्छे होने का ढोंग करते हैं - संत होने का दावा करते हैं।
दान इत्यादि अच्छे कर्मों का आवरण ओढ़ कर - मुख पर सरलता और भोलेपन का मुखौटा पहन कर अपने वास्तविक इरादों को छिपाने में सफल हो जाते हैं।

उन्हें लगता है कि जनता अथवा लोग उनका कोई नुकसान नहीं कर सकते।
लेकिन जब प्रहलाद जैसे सच्चे महात्माओं का आगमन होता है तो ऐसे लोगों का झूठ प्रकट होते ही उनका शासन समाप्त हो जाता है।
और सत्य की विजय होती है।
                                              ' राजन सचदेव '



Happy Holi to All - With Colors of Oneness

                            HAPPY HOLI TO ALL


WITH COLORS OF ONENESS 


                                    May there be 

                       Love, Harmony, and Oneness

                                     Among all




Monday, March 14, 2022

Life is a journey

Life is a journey with problems to solve, and lessons to learn  
but most of all - to experience and to enjoy. 
Every event, every incident may provide us with a new experience. 
Learning from them and keep on moving forward toward the goal -
is the purpose of this journey. 

It might be hard sometimes, but it is worth trying. 
To achieve the desired destination, we must continue to strive on the straight path. 
And remember - No one can walk for us.
We must undertake our journey by ourselves. 
                       'Rajan Sachdeva ' 

Saturday, March 12, 2022

Praise and Criticism

Realizing and identifying the truth hidden in criticism 
and the lies hidden in praise can solve many problems.

False praise creates ego 
and arrogance in our minds and prevents us from moving forward. 
The feeling of being superior to others becomes an obstacle in the way of improving and moving forward in our life.
We feel like we don't need to learn or do anything anymore.

On the other hand – accepting and giving honest consideration to genuine, valid, and positive criticism can help correct our mistakes and fallacies. 
It can become a source of inspiration for us to move forward.
                                                       ' Rajan Sachdeva ' 

प्रशंसा एवं आलोचना

यदि प्रशंसा मे छुपे हुए झूठ और आलोचना मे छिपे हुए सत्य को पहचान लिया जाए
तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

झूठी प्रशंसा मन में अहंकार पैदा करती है और आगे बढ़ने से रोकती है।

दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव हमें अपने जीवन में सुधार लाने और आगे बढ़ने के मार्ग में बाधा बन जाता है । 
हमें लगता है कि अब हमें और कुछ भी सीखने या करने की ज़रुरत नहीं हैं।

दूसरी ओर - यदि वास्तविक - वैध, और सकारात्मक आलोचना को स्वीकार करके उस पर ईमानदारी से विचार किया जाए तो वह त्रुटियों को सुधारने में मदद कर सकती है और आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है।

                                                               " राजन सचदेव "

Friday, March 11, 2022

Grief दुःख

दुःख अक्सर सलाह नहीं - 
सहारा मांगता है

Grief often asks for support - 
not advice

Thursday, March 10, 2022

If you can't find a companion

If you can't find the right companion to walk with, then walk alone
- like an elephant roams alone in the forest.

It's better to be alone instead of being with people who hinder your progress.

अगर कोई अच्छा साथी न मिले

अगर साथ चलने के लिए कोई अच्छा साथी न मिले -
तो अकेले चलिए - जैसे हाथी जंगल में अकेला ही घूमता है

जो आपकी प्रगति में बाधा डालें उन लोगों के साथ चलने की बजाय 
अकेले रहना ही बेहतर है 

New vs old generation

Quite often, we hear phrases such as -
"Our ancestors - the older generations were liberal in their thoughts - But now ---"

Interestingly, every generation has thought the same way. 
They all thought that the old, ancient times were better than now - that the older generations had more love and cooperation among them. They respected and supported each other without being envious and jealous. 

But if we read history, we learn that jealousy is a part of human nature. 

                    Humans are competitive by nature.
We find many stories of envy and bitterness between some highly learned and devoted disciples of great Gurus - or even between the great sages & Gurus themselves.

Here is one such instance from the Story of the great sage Adi Shankracharya, the chief exponent of ‘Advaita’ (Non-dualism) philosophy, who imparted the illusionary nature of the universe and taught to live beyond the body.

One day, Adi Shankracharya asked Sureshvar - one of his four senior disciples - to write a commentary - on one of his works. 
The other three disciples - Padamapad, Totak, and Hastamalik became jealous - thinking that they were not less intelligent. 
They even questioned their Guru - why he had not chosen any of the other three? 

Adi Shankracharya said - If I cannot find consensus among just four of you, then how are we to spread Vedic thought all over India in one voice? 
"Our ancestors were liberal in their thoughts" - he said.
They were not jealous - that is how Vedas were written and preserved. 
But now I see it may not".

So, you see - Even Adi Shankracharya in his time thought that older times were better.

Then Shankracharya explained to them that experience is higher than knowledge. 
That is the reason he chose Sureshvar.

The disciples said they were not jealous. 
They also sincerely want to spread the message of their Guru, the Truth, enthusiastically.
Shankracharya, The Guru, said, you all have different talents. 
Go and spread the Gyana in your own ways but without envying others and becoming a hurdle in their way.

There are several other similar stories about disputes between great ancient Hindu sages such as Vashisht Muni and Vishvamitra – 
disputes and rivalries between brothers and families of Sikh Gurus.
There were disagreements and fights for the leadership - immediately after the passing of Prophet Mohammad in Islamic history etc.

History shows that conflicts, jealousy, and rivalries exist everywhere - in business, politics, kingdoms, or corporations – or even within families.
It proves that envy is a natural human trait - regardless of time - ancient or modern.

The older times were much better - is a common and perhaps most favorite phrase of the middle generation – that has seen some good-old part of the previous times but lives among the new generation - and cannot cope with it.

But simply talking about the old times and praising them will not change anything. 
We can not blame everything on people being jealous and competitive.
There must be something else that was different in those days. 
We need to learn from history and find out what was better in those days and why?
 
Finding the reasons - why those times were better - is the most crucial thing if we want to bring any changes for the betterment.
                                             " Rajan Sachdeva "

Tuesday, March 8, 2022

इच्छाओं का बोझ

ऐसा नहीं है कि इंसान हमेशा ज़्यादा काम करने से ही थकता है
अक़्सर हसरतों और अधिक इच्छाओं का बोझ भी हमें थका देता है। 

इच्छाएं और ज़रुरतें कम हों तो मन संतुष्ट और प्रसन्न रहता है। 

सिर्फ दूसरों से ही नहीं बल्कि अपने आप से भी अधिक अपेक्षाएं रखने से मन में बेचैनी बनी रहती है। 
अपेक्षाएं कम हों तो जीवन सार्थक और आनंदमयी हो जाता है। 
                                          " राजन सचदेव "

The burden of desires

It is not that we always get tired by working continuously or doing extra hard work.
Usually, it is the burden of desires - more wants and cravings, that exhausts us.

Having less desires, fewer cravings, and less expectations can keep us heartier and happier - content and more energetic.
Life becomes more meaningful - more peaceful when we do not have too many expectations from anyone - including ourselves.

Sunday, March 6, 2022

प्रतिक्रिया - आवेग से या ज्ञान से

बहुत बार हमें अपने जीवन में कुछ प्रतिकूल घटनाओं और परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
आमतौर पर, हम बिना सोचे-समझे जल्दबाज़ी में जवाब दे देते हैं और आवेग में आकर कोई प्रतिक्रिया भी कर देते हैं।

परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं -
लेकिन हम उन विभिन्न परिस्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया करें- यह हमारे नियंत्रण में - हमारे कंट्रोल में है। 
ये हमारे हाथ में है कि हमारी प्रतिक्रिया बिना सोचे समझे आवेग के साथ हो या ज्ञानपूर्वक - सोच समझ कर परिस्थिति का विश्लेषण करने के बाद।
बेशक यह बात इतनी आसान तो नहीं है - लेकिन फिर भी हम अगर हम प्रैक्टिस करें तो अभ्यास के साथ अपनी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करना सीख सकते हैं।

बचपन से ही मैंने कुछ ऐसे प्रचारकों और विद्वानों को देखा कि जब कुछ ऐसी परिस्थितयां सामने आईं - जब उनसे उनकी मान्यताओं और ज्ञान के बारे में कुछ अनचाहे सवाल किये गए या उन्हें चंद लोगों की असहमति का सामना करना पड़ा तो उन्होंने बड़े कठोर और रुखे तरीके से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। ज़ाहिर है कि उन लोगों पर इस बात का प्रभाव अच्छा नहीं पड़ा। 

बाद में, जब जम्मू-काश्मीर और पंजाब में मुझे स्वतंत्र रुप से प्रचार करने का अवसर मिला तो मुझे उन घटनाओं की याद रही और मैंने निश्चय किया कि प्रचार के दौरान कभी भी इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं होनी चाहिए।
इसलिए, सत्संग के बाद लोगों से वार्तालाप के लिए मिलने से पहले मैं हमेशा मन ही मन में ये बात दोहरा लेता कि -
"बातचीत के दौरान असहमति भी होगी - कुछ लोग बेतुके सवाल भी पूछ सकते हैं - ये ज़रुरी नहीं कि सब लोग मेरी बात से सहमत होंगे और जो कहूंगा वो मान ही लेंगे - हो सकता है कि कुछ लोग रुखेपन से बात करें और असभ्यता से पेश आएं - लेकिन मुझे परेशान नहीं होना है - क्रोध नहीं करना है । शांतिपूर्वक और धैर्य से उनके सवालों का जवाब देने की कोशिश करनी है और हमारे मिशन और हमारी विचरधारा के बारे में उनकी आशंकाओं को शांति से समझा कर संतुष्ट करना है ।"

पहले से ही इस तरह अपने आप को तैयार कर लेने का बहुत फ़ायदा हुआ और फिर कभी वार्तालाप के दौरान प्रतिकूल सवालों और कठोर बातों का सामना करने में ज़्यादा मुश्किल नहीं हुई। 
और अगर कुछ लोग फिर भी प्रसन्न और संतुष्ट नहीं हुए तो प्रसन्न मुद्रा में दोस्ताना तरीके से ये कह कर विदा ले ली कि अच्छा - कभी फिर मिलेंगे और आगे बात करेंगे।

मुद्दा यह है कि अभ्यास के साथ हम ये सीख सकते हैं कि प्रतिकूल परिस्थितियों के साथ शांति से कैसे निपटना है - 
बिना सोचे समझे आवेगपूर्ण प्रतिक्रिया करने की बजाए उन्हें किस तरह शांति से संभालना है।  

परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं - 
लेकिन हमारी प्रतिक्रिया - हमारा निर्णय और दृष्टिकोण हमारे अपने नियंत्रण में हैं।
                                                          ' राजन सचदेव '

Reacting with impulse or wisdom

There are times when we have to face some adverse events and situations in our lives.
Usually, we react impulsively - at the spur of the moment - without thinking.

There are circumstances that might be beyond our control - 
but it's in our power to choose how to act or react in those different situations.

Reacting, either with impulse or wisdom, is in our hands.
It may not be easy, but we can learn to control impulsive reactions with practice.

When I was young, I saw some preachers and scholars who reacted impulsively in a harsh manner when they faced disagreement - when they were questioned about their beliefs and knowledge.

Later, when I got the opportunity of preaching in J&K and Punjab, I remembered those incidents and thought I should never react like that.
So, after the congregations - just before meeting people for discussions or question-answer sessions, I would always say to myself - 
"There will be some disagreements - some people might be rude and ask absurd questions, but I am not going to get upset. I will try to answer their queries and satisfy their apprehensions about the mission and my beliefs calmly to the best of my abilities."

This practice of reminding myself in advance worked in my favor. 
I was able to face some adverse moments and harsh questionings during such sessions with ease.
And if some people were still not pleased and satisfied, I would depart in a friendly manner - with a happy ending note.

The point is - that, with practice - we can learn how to handle adverse situations calmly and not react impulsively.
While our circumstances are beyond our control - our choices - decisions, and attitudes are within our control.
                                                          ' Rajan Sachdeva '

Saturday, March 5, 2022

सोच ऊँची और विशाल होनी चाहिए

सीमित और संकीर्ण सोच हमें जीवन के हर क्षेत्र में सीमित कर देती है 
और हमें ऊपर उठने नहीं देती ।
संकीर्ण सोच वाले लोग कभी आगे नहीं बढ़ सकते ।
वे न तो अपना भला कर सकते हैं और न ही किसी और का।

आगे बढ़ने और ऊपर उठने के लिए ये ज़रुरी है कि हमारी सोच ऊँची और विशाल हो।
ऐसी सोच - जो तर्क और व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित हो ।

दूसरों के ज्ञान और अनुभवों से हमें प्रेरणा तो मिल सकती है
लेकिन जब तक वह हमारा अपना अनुभव नहीं बन जाता
तब तक हमें व्यक्तिगत रुप से कोई लाभ नहीं हो सकता। 
                                            'राजन सचदेव '

It's vital to have high thinking

Limited and narrow thinking limits us in every field of life.


Narrow-minded people can never move forward and improve. 

They can neither do good to themselves nor for anyone else.


If we want to move forward and rise above - it is essential to have high and relevant thinking. 

Thinking - that is based upon logic and personal experience. 


We can always learn from other people's knowledge and experiences, but until it becomes our own experience, it can never benefit us personally.

                                    ' Rajan Sachdeva '

Sub Faislay hotay nahin sikka uchaal kay

Sub Faislay hotay nahin sikka uchhaal kay
Ye dil ka maamlaa hai zaraa dekh-bhaal kay

Mobile kay daur kay aashiq ko kya pataa
Rakhtay thay kaisay khat mein kalezaa nikaal kay

Ye keh kay nayi raushani royegi ek din
Achhay thay wahi log puraanay khyaal kay

Aandhi udaa kay lay gayi ye aur baat hai
Varnaa hum bhi pattay thay majboot daal kay

Tum say milaa pyaar - sabhi ratn mil gaye
Ab kya karengay aur samandar khangaal kay
                                         " Uday Pratap Singh "

Sikka uchhaal kay - By flipping a coin
Ratn - Jewels, Pearls
Khangaal - Stir, Churn

सब फैसले होते नहीं सिक्का उछाल के

सब फैसले होते नहीं सिक्का उछाल के
ये दिल का मामला है ज़रा देखभाल के

मोबाइलों के दौर केआशिक़ को क्या पता
रखते थे कैसे ख़त में कलेजा निकाल के

ये कहके नई रोशनी रोएगी एक दिन
अच्छे थे वही लोग पुराने ख़याल के

आंधी उड़ा के ले गई ये और बात है
वरना हम भी पत्ते थे मजबूत डाल के

तुमसे मिला है प्यार सभी रत्न मिल गए
अब क्या करेंगे और समंदर खंगाल के
                          " उदय प्रताप सिंह "

Friday, March 4, 2022

ਜੇਕਰ ਸੂਰਜ ਵਾਂਗ ਚਮਕਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ

ਜੇਕਰ ਸੂਰਜ ਵਾਂਗ ਚਮਕਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹੋ
ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੂਰਜ ਵਾਂਗੂ ਜਲਨਾ ਸਿੱਖੋ।

ਕਿਉਂਕਿ ਚਾਹੇ ਸੂਰਜ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਦੀਪਕ
ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਜਲਾ ਕੇ ਹੀ ਦੂਜਿਆਂ ਨੂੰ ਚਾਨਣ ਦਿੰਦਾ ਹੈ।

अगर सूरज की तरह चमकना चाहते हो

अगर सूरज की तरह चमकना चाहते हो
तो पहले सूरज की तरह जलना सीखो ।

क्योंकि चाहे सूरज हो या दीपक
वह स्वयं जल कर ही दूसरों को रौशनी प्रदान करता है

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...