Friday, July 16, 2021

शेर और लोमड़ी

जंगल में रहने वाली एक लोमड़ी के पिछले दोनों पैर कटे हुए थे। 

पास ही झोंपड़ी में रहने वाला एक साधू कभी कभी उस लोमड़ी को देखता और हैरान होता कि वो अभी तक कैसे जीवित है ? 
दौड़ना तो क्या - वो तो चल भी नहीं सकती - वो शिकार कैसे करती होगी? उसे भोजन कैसे मिलता होगा ?

एक दिन, उसने लोमड़ी को रेंगते हुए देखा। जो अपने आगे के दो पैरों के सहारे अपने शरीर को खींचते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।
ये देखने के लिए कि वो अपना भोजन कैसे और कहां से प्राप्त करेगी, वो साधू भी उसके पीछे पीछे चलने लगा। लेकिन सामने से एक शेर को आते देख कर वो जल्दी से झाड़ियों के पीछे छुप गया। 
शेर के पंजों में एक नया शिकार था। वहीं जमीन पर लेट कर - जितना वो खा सकता था, उसने खाया और बाकी वहीं छोड़ कर चला गया - जिसे खा कर लोमड़ी ने अपना पेट भर लिया।
अगले दिन भी उस ने देखा कि उसी शेर के द्वारा लोमड़ी को फिर से भोजन मिल गया।

वह साधू सोचने लगा: "अगर इस लोमड़ी की इस रहस्यमय तरीके से देखभाल हो रही है - यदि इस के भोजन का प्रबंध उस अदृश्य - उच्च एवं महान शक्ति द्वारा किया जा रहा है जिसे सर्वशक्तिमान ईश्वर कहा जाता है, तो अवश्य ही वह मेरे लिए भी मेरा दैनिक भोजन प्रदान करेगा।

ये सोच कर वह अपनी झोंपड़ी के एक कोने में बैठ गया - और प्रार्थना करते हुए अपने भोजन की प्रतीक्षा करने लगा।
लेकिन कुछ देर बीतने पर भी कुछ नहीं हुआ। भोजन नहीं मिला।
पूरा दिन प्रार्थना करते हुए और भोजन की प्रतीक्षा करते हुए बीत गया।
मगर फिर भी कुछ नहीं हुआ। 
कहीं से भी उसके लिए भोजन नहीं आया । 

लेकिन उसने धैर्य नहीं खोया। 
उसे विश्वास था कि परमेश्वर एक दिन उसकी प्रार्थना ज़रुर सुनेंगे और उसे भोजन प्रदान करेंगे।
दिन बीतते गए - वो दुर्बल होता चला गया। उसका शरीर एक कंकाल सा बनके रह गया।

एक दिन, अर्ध-मूर्छना की सी हालत में उसने एक आवाज सुनी - जो कह रही थी:
"अरे मूर्ख - तुमने देख कर भी सत्य को नहीं देखा - तुम भूल गए और रास्ते से भटक गए - सत्य को देखो और समझने को कोशिश करो !
असहाय विकलांग लोमड़ी की नकल करने की बजाय, तुम्हें उस शेर का अनुसरण करना चाहिए था - जिसने न केवल अपने भोजन के लिए प्रयत्न किया बल्कि दूसरों को - किसी असहाय और विकलांग को भी भोजन प्रदान किया।"

अतीत में, मैं भी ऐसी प्रार्थना करता था, हे प्रभु - कृपा करो कि संसार में कोई भूखा नंगा न रहे - कोई बेघर न हो। 
और प्रार्थना के बाद अपने जीवन में व्यस्त और मग्न हो जाता था।
आज मैं सही मार्गदर्शन और शक्ति के लिए प्रार्थना करता हूं कि अगर हो सके तो मैं किसी के काम आ सकूं - किसी का भला कर सकूं।

पहले मैं सोचता था कि अरदास और प्रार्थना परिस्थितियों को बदल देगी, लेकिन अब समझ आई कि प्रार्थना परिस्थिति नहीं - बल्कि हमारे विचार बदलने में सहायता करती है। हमें वो काम करने और उन परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए जो हम कर सकते हैं। 
और जो हम नहीं कर सकते - जिन परिस्थितियों को बदलना सम्भव न हो - जो हमारी सामर्थ्य से बाहर हों - उन्हें स्वीकार कर लेना ही अरदास और प्रार्थना का असल उद्देश्य है।
                                           ' राजन सचदेव '  

5 comments:

  1. प्रेणादायक प्रसंग , एक नई दिशा मे अरदास का मतलब समझ आया

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  2. Parvinder Pal SinghJuly 16, 2021 at 11:00 PM

    True , basic nature works with pure wisdom. Choice makes the difference .

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